धार्मिकमध्य प्रदेश

भक्ति से मानव अच्छा इंसान बन जाता है: प्रभु नागर

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । श्रीकृष्ण की भक्ति से बुरा इंसान भी अच्छा हो जाता है जैसे गंगा में गिरा हुआ गटर का पानी गंगा बन जाता है, वैसे ही कृपा के मार्ग में, एक बार सब कुछ अर्पित करने के बाद, वे श्री कृष्ण के समान बन जाते है। श्रीकृष्ण बंधन से मुक्त वह सर्वोच्च सत्ता हैं जिसकी शरण में आने से उसे किसी बंधन का भय नहीं रहता।
उत्कृष्ट स्कूल के विशाल मैदान में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में संत श्री प्रभु नागर ने उक्त बात कही। उन्होंने बताया कि व्युत्पत्ति के अनुसार, कृष् का अर्थ है “होना,” और ना का अर्थ है “आनंद।” श्री कृष्ण “सर्व-आकर्षक” हैं, और वे गीता में अर्जुन से कहते हैं, ” हे अर्जुन, मुझसे श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है मैं ब्रह्म के उस निराकार रूप से भी बड़ा हूं। श्री वल्लभाचार्य कहते हैं, परम ब्रह्म अकेले श्री कृष्ण हैं। श्री कृष्ण सर्वोच्च व्यक्ति हैं और शाश्वत रूप से सभी दिव्य गुणों को प्रकट करते हैं। श्री कृष्ण भी रस (शुद्ध अमृत) हैं, और अपने भक्तों की प्रेमपूर्ण भक्ति का जवाब देते हैं। श्री कृष्ण एक नर्तक, एक वादक, एक अभिनेता, एक पति, एक गाय चराने वाला, मित्र और प्रेमी होने के साथ-साथ एक बांसुरी वादक भी हैं। वह अभिनय में एक विशेषज्ञ है, अर्थात वह जो दर्शाता है उसका अर्थ प्रदर्शित करने में। वह इतना अच्छा है कि जो कोई भी उनसे या उनकी लीला से संपर्क करता है, उसे एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। प्रेम, मोह इसके परिणाम हैं।
उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण और उनकी पूजा शुद्ध दिव्य नाटक (लीला) है। वह एक ही समय में खेलता है और निर्देशन करता है, उन सभी में जागृति के लिए जिनका समय आ गया है। उनके भक्तों के विभिन्न गठन हैं, फिर भी वे लगाव के सामान्य गुण को साझा करते हैं। उनके हृदय उनके राग से प्रज्ज्वलित होते हैं और उनके रस की उमंग को समाहित करते हैं। यह सब वृंदावन में समाप्त होता है , जहां श्री कृष्ण अपनी बांसुरी बजाते हैं।
ठीक 12 बजे से भागवत कथा शुरू हुई कथा के दूसरे दिन शुक्रवार को पंडाल छोटा पड़ गया पंडाल के बाहर बैठने की व्यवस्था धूप में की गई। संगीतमय पंडाल मैं प्रभुनागर ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का इतना सुंदर वर्णन किया कि लोग श्रीकृष्ण की भक्ति में मगन होकर उनके द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे भजनों पर नाचते हुए आनंदित हो रहे थे तालीयां बजा रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज की फैशन हमारी संस्कृति के लिए खतरा है जिस प्रकार के पहनावे आज चल रहे हैं। वह हमारी संस्कृति के लिए खतरा है। हमें इससे बच कर रहना है तथा हमारी संस्कृति को फ्रैंक जैसे शब्दों से बचाना है।
कथा के बीच में पंडित नागर द्वारा मधुर भजनों जैसे मेरा तार हरी से जोड़े ऐसा कोई संत मिले, सत्संग को जब लागे रे कांटो, मेरी प्रीत नहीं छूटेगी नंदलाल से। को गाया गया। जिसमें श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर नाचने लगे। कथा के शुरू में मुख्य यजमान हरिकेश राय और संतोष राय ने व्यासपीठ की पूजा अर्चना की।

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