देश विदेशमध्य प्रदेश

दुनिया का अनोखा म्यूजियम, 30 साल में अनुपयोगी लकड़ियों से खोजी दुनिया की अनूठी वुड आर्ट

राजेश रजक, वरिष्ठ पत्रकार
रायसेन । लकड़ियों और पत्थरों से खोजी दुनिया की सजीव, निर्जीव और बिलुप्त जानवरो, पशु पक्षियों, खिलाड़ियों, भारत माता, सही सेकड़ो वुड आर्ट एवं पत्थरो पर उकरी प्राकर्तिक कलाकृति। 4 बड़े बड़े आबार्ड मिलने के बाद भी सरकार और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार, आर्टिस्ट एवं उसका म्यूजियम ।
रायसेन जिले की बौद्ध स्थली सांची विश्व मे परिचय की मौताज नही हैं। लेकिन एक कारपेंटर ने अपने बीबी बच्चों की परवाह किये वो अनूठी आर्ट को एकत्रित किया जो ऐसी लकड़ियों एवं पत्थरो से खोजी और दुनिया का अनोखा म्यूजियम बनाया जिसमे 300 से अधिक कलाकृतियों को सजोकर रखा हैं। हम बात कर रहे है मुन्नालाल विश्वकर्मा की जो कम पढ़े लिखे हैं और लकड़ी का कामकाज कर बच्चों का भरण पोषण करते थे। लेकिन जलाने बाली लकड़ी जो अनुपयोगी होती हैं उन्हीं से दुनिया की अद्भुत और बिलुप्त चीजो को उन्ही लकड़ियों और पत्थरों में खोज निकाला।300 से अधिक वुड़ आर्ट में बैठा शेर, लेटी हुई महिला, मोहन जोदड़ो कालीन वर्तन, चम्मच कटोरी, आक्टोपस, कुत्ता,नाग नागिन, डायनासोर, गुरु शिष्य, ममत्व महिला, एनाकोंडा, बाजूका, मनुष्य का गुर्दा, अवस्त्र महिला एवं महिला पुरुष जननांग, प्रेम करती आर्ट, माँ दुर्गा, भारतमाता, साधु, गणेश, शिवलिंग, कुबेर सहित सभी वुड आर्ट हैं। वहीं कृषि के प्राचीन उपकरण भी म्यूजियम में हैं।पत्थरो पर जीवाणु, विषाणु और ग्लोव, कश्मीर की बादिया, अंडा आकृत्ति, मनुष्य की फ़ोटो, माँ बच्चे को दुलार करती पत्थर पर आर्ट। 300 से अधिक आर्ट हैं जो दुनिया के म्यूजियम से इस म्यूजियम को अनोखा बनाती हैं।अभी तक 4 लिम्का आबार्ड से अन्य आबार्ड मिल चुके हैऔर देश विदेश से सांची आने वाले पर्यटक इन कलाकृतियों को देख आश्चर्य चकित होते हैं। लेकिन कहावत हैं कि दिया तले अँधेरा यही मुन्ना लाल के लिए सावित हो रही, न जिला प्रशासन का सहयोग और न ही सरकार का सहयोग।
मुन्नालाल ने 30 वर्षो में वो सब खोया जो बच्चे और पत्नी परिवार चाहता था। लेकिन दुनिया को पर्यावरण, संस्कृति को बचाने के लिए अनूठी आर्ट एकत्रित की जो दुनिया के किसी म्यूजियम में नही हैं। सुबह 5 बजे विना भोजन किये निकलते थे और शाम, या रात्रि में लकड़ियों की आर्ट लेकर आते थे। बच्चों से यही कहना कि में दुनिया के लिए अजूबा चीजे एकत्रित कर रहा हूँ जो एक अनूठा उदाहरण होगा। ऐसा ही हुए लेकिन सरकार और प्रशासन ने इस हीरे के जोहरी की कदर नही की।
जो इस निजी म्यूजियम को देखने आता हैं जो अनुपयोगी लकड़ियों और पत्थरों से जो आर्ट खोजी हैं उन्हें देख दांतो तले उंगलिया दबा लेते है। दुनिया को म्यूजियम से यह अनोखा म्यूजियम हैं लेकिन सरकार की अपेक्षाओं से दूर है।
आर्ट कला प्रेमी मानते हैं कि दुनिया की हर म्यूजियम में वो नही है जो इस निजी म्यूजियम में है जो पर्यावरण एवं उन संस्कृतियों को संजोए हुए हैं जिन्हें आने बाली पीढ़िया सिर्फ किताबो में ही पढेगी लेकिन देखने को नही मिलेगी।
मप्र सरकार को चाहिए कि 4-4 अवार्ड मिलने वाले कलाकार को कुछ आर्थिक सहयोग देना चाहिए था आज विश्व धरोहर सांची में अपने म्यूजियम का किराया भी नही चुका पा रहा है । और दुनिया के नायाब कलाओ को सजोकर रखे हुए है । मीडिया द्वारा रायसेन पूर्व कलेक्टर उमाशंकर भार्गव के संज्ञान में लाया गया लेकिन कहावत ढाक के तीन पात ही सिद्ध हुई।
सरकार युवाओ को योजनाए तो बनाती हैं लेकिन युवा उन संस्कृतियों एवं उन बस्तुओं से कोसो दूर हैं जो प्राचीन कालीन सभ्यता हैं। जो आधुनिक भारत मे देखने को नही मिलती ।

Related Articles

Back to top button