धार्मिक

हिरन नदी सतधारा घाट में हजारों श्रद्धालुओं ने ब्रम्ह मुहूर्त में लगाई डुबकी,

कई ऋषियों की तपोभूमि हैं कुम्ही सतधारा
रिपोर्टर : मनीष श्रीवास
सिहोरा । सिहोरा ग्राम पंचायत के कुम्ही सतधारा अन्तर्गत आनें वाली हिरन नदी सतधारा घाट पर 14 जनवरी से लगने वाले विशाल मेला एवं वर्षो से चली आ रही आस्थाएँ की परम्परा को लेकर शनिवार की सुबह 4 बजे से ही 14 जनवरी को भक्तिभाव के साथ लोगों ने आस्था की डुब्की लगाई और हजारों की संख्या भी श्रद्धालुओं ने स्नान करके कुंभेश्वर महादेव के स्थान पर आकर अभिषेक, पुष्प,दीप प्रज्ज्वलित व पूजन किया । वही नीलकंठ आश्रम के दर्जनों मंदिरों में पूरे दिन पूजा अर्चना का कार्य चलता रहा । इस धर्म नगरी में भगवान के दर्शन करते हुए अपने जीवन में प्रेम, सुख, समृद्धि, व ईश्वर की आसिम कृपा की मनो कामना मागी । 14 जनवरी मकर संक्रांति के इस अवसर पर प्रशासन के द्वारा पुरानी संस्कृति व मेला की चली आ रही परंपरा की शुरूआत कराई ।
इस कुम्ही सतधारा के इतिहास को लेकर एक नजर-
स्वर्गीय जगदीश पांडे ने पिछले 5 वर्ष पूर्व बताया था कि एक किताब के अनुसार पूर्व से सतधारा घाट सप्त ऋषि, कुंभक ऋषि, नीलकंठ महाराज, बनवारी दास महाराज, बंम महाराज, बाल ब्रह्मचारी ढेलाराम, गंगागिरी, पुस्सु पंडा, शंभू दास महाराज के साथ साथ अन्य ऋषियों की पवित्र तपो भूमि मानी जा रही है। देखा जाये तो आदिकाल में इस पवित्र स्थान पर सप्त ऋषि तपस्या कर रहे थे। बेहती नर्मदा के करीब 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित एक कुंड से हिरन नदी प्रकट होकर पश्चिम की ओर बहने लगी। सप्त ऋषि तपस्या पर बैठे देख, मांँ हिरन नदी भवर का रूप लेते हुए थम गई। तत्पश्चात माँ हिरन ने प्रार्थना कर बोली जन कल्याण हेतु उद्भभव हुआ है। एसा निवेदन किया, तब सप्त ऋषियों ने निकलने की अनुमति दी और हिरन मां ब्रम्हमहूरत समय पर मकर संक्रांति के दिन दूध के साथ सात धाराओं में परिवर्तित होकर पश्चिम की ओर बहती हुई पुनः मां नर्मदा में जा मिली। बताया जाता हैं कि मा नर्मदा का दूसरा रूप या सहयोगी नदी हिरन है। तब से सतधारा घाट के नाम से लोग जानने लगे है।
आदिकाल से सात धाराओं का अद्भुत नजारा देखने के लिए दूर-दूर से लोग पैदल, हाथी, ऊंट, घोड़ा, बैलगाड़ी, रथ, आदि साधनों से इस पवित्र स्थान पर पहुंचकर एकत्र होने लगे और सात दिन तक पवित्र हिरन नदी में स्नान कर भक्ति, पूजा, तपस्या करते हैं। और अपने जीवन के लिए भक्ति, प्रेम, सुख, समृद्धि, की कामना करते थे। तभी से यहां पर मेले की परंपरा बन गयीं है। सतधारा घाट के अलावा लोकलबोर्ड घाट, बैलहाई घाट, चकदहीई घाट, पथरहा घाट, राजघाट, दुबघटा घाट आदि घाट कुम्भी रियासत के करचुर्री राजाओं के इतिहास की कहानी बता रहे हैं।

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