धार्मिक

श्रीमद् भागवत, गीता, रामायण आदि धर्म ग्रंथ मनुष्य को भगवान से मिलाने का कार्य करते है पडित ब्रह्मचारी जी महाराज

जव तक इंसान की मन, वाणी व क्रियाए एक नही होगी तव तक भगवान की प्राप्ति होंना संभव नही है
सिलवानी। ग्राम साईखेड़ा के श्री लक्ष्मीनारायण बड़ा मंदिर में चल रही भागवत कथा के छटवे दिवस पर पंडित ब्रह्मचारी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत, गीता, रामायण आदि धर्म ग्रंथ मनुष्य को भगवान से मिलाने का कार्य करते है उन्होंने कहा कि परमात्मा इंसान के प्राणों का स्वामी होता है। ऋषि, मुनियों, साधु संतो आदि महापुरुषों की शरण में जाए बगैर भगवत भक्ति तथा कृपा प्राप्त नही हो सकती है मनुष्य कितना ही भजन, पूजन, जप, तप कर ले। लेकिन उसे महापुरुषों की कृपा प्राप्त करना ही पड़ेगी। जव तक इंसान की मन, वाणी व क्रियाए एक नही होगी तव तक भगवान की प्राप्ति होंना संभव नही है।
श्रीमद भागवत कथा की सार्थकता जब ही सिध्द होती है जब इसे हम अपने जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल मनोरंजन कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी । भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है। इसलिए सद्गुरु की पहचान कर उनका अनुकरण एवं निरंतर हरि स्मरण, भागवत कथा श्रवण करने की जरूरत है यह उद्गार पंडित ब्रह्मचारी द्वारा भागवत कथा के छटवे दिवस पर कथा श्रवण कर रहे भक्तों कथा का महत्व बताते हुए कहा कि श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है।
भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद् भागवत या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है, जिसमें श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरूपण भी किया गया है। भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद्भागवत मोक्ष दायिनी है। इसके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं। श्रीमदभागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है। सत्संग व कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान की शरण में पहुंचता है, वरना वह इस संसार में आकर मोहमाया के चक्कर में पड़ जाता है, इसीलिए मनुष्य को समय निकालकर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए बच्चों को संस्कार वान बनाकर सत्संग कथा के लिए प्रेरित करें। भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दर्शन करने के लिए भगवान शिवजी को गोपी का रूप धारण करना पड़ा। आज हमारे यहां भागवत रूपी रास चलता है, परंतु मनुष्य दर्शन करने को नहीं आते। वास्तव में भगवान की कथा के दर्शन हर किसी को प्राप्त नहीं होते। कलियुग में भागवत साक्षात श्रीहरि का रूप है। पावन हृदय से इसका स्मरण मात्र करने पर करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।इस कथा को सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं और दुर्लभ मानव प्राणी को ही इस कथा का श्रवण लाभ प्राप्त होता है । श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से ही प्राणी मात्र का कल्याण संभव है।

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