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क्या यही गणतंत्र है ? लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाया

दिव्य चिंतन : हरीश मिश्र
गणतंत्र दिवस के बाद राजनैतिक स्वार्थ के लिए लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाया गया। जिस सत्ता-हस्तांतरण पर शर्म आनी चाहिए, उस पर
ढोल की थाप पर बेशर्मी से नृत्य किए जा रहे हैं।
जो राजनैतिक दल तात्कालिक लाभ के लिए समझौते करते हैं, वे इतिहास में कूड़ेदान में फेंके जाते हैं।
विपक्ष तो है नहीं, मीडिया को ही साहस के साथ पूछना होगा कि क्या यही गणतंत्र है ?

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