मध्य प्रदेशराजनीति

बुंदेलखंड में कांग्रेस ने बनाया लोधी स्वाभिमान को मुद्दा टिकाऊ दलबदल का मुद्दा

ब्यूरो चीफ : भगवत सिंह लोधी
दमोह । लोकसभा चुनाव में बुंदेलखंड में बिहार जैसा चुनाव देखने को मिल रहा है। बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट में जातिवाद का तड़का ऐसा लगा है कि लोधी मतदाता बाहुल्य सीट में लोधी स्वाभिमान बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. दरअसल दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ने लोधी जाति बाहुल्य दमोह सीट से लोधी उम्मीदवार को टिकट दिया है लेकिन भाजपा के उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी पहले कांग्रेस से विधायक थे और दलबदल कर बीजेपी में चले गए थे। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक तरवर सिंह लोधी को उम्मीदवार बनाया है। जो 2018 में बंडा से चुनाव जीते थे, लेकिन 2023 में चुनाव हार गए। कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी को बीजेपी में लाने भरसक प्रयास किए गए, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के चलते भारी दबाव के बाद भी कांग्रेस नहीं छोड़ी. ऐसे में कांग्रेस लोधी मतदाताओं के बीच लोधी स्वाभिमान का मुद्दा बना रही है कि आप अपनी ही जाति के उम्मीदवार को चुनो, लेकिन बिकाऊ को नहीं टिकाऊ को चुनो। दमोह लोकसभा सीट के समीकरण बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट की बात करें, तो 2008 के परिसीमन में दमोह ऐसी सीट के रूप में सामने आयी है. जिसमें लोधी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. सागर की 3, दमोह की 4 और छतरपुर की एक विधानसभा को मिलाकर दमोह लोकसभा बनी है. जिसमें सागर की देवरी, रहली और बंडा सीट है, तो दमोह की दमोह, पथरिया, हटा और जबेरा सीट और छतरपुर की बड़ा मलहरा सीट है. इन सीटों में सिर्फ रहली और हटा ऐसी विधानसभा है, जहां लोधी मतदाता कम संख्या में है, लेकिन बाकी 6 विधानसभा सीट देवरी, बंडा, पथरिया, दमोह, बड़ा मलहरा और जबेरा में लोधी मतदाता निर्णायक स्थिति में है और जीत हार के फैसले में अहम भूमिका निभाते हैं. जातिगत समीकरणों के आधार पर दमोह में लोधी मतदाताओं की संख्या करीब साढे़ तीन लाख से 4 लाख के बीच है. लोधी मतदाता एकजुट होकर जिस दल को समर्थन करते हैं, वो दल आसानी से चुनाव जीत जाता है।
परिसीमन के बाद लगातार चुनाव जीत रही बीजेपी 2008 के परिसीमन के बाद दमोह सीट के लोधी मतदाता बाहुल्य सीट हो जाने के बाद 2009 लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक भाजपा चुनाव जीतती आ रही है. 2009 में बंडा के भाजपा के पूर्व विधायक शिवराज सिंह लोधी, 2014 में प्रहलाद पटेल और 2019 में प्रहलाद पटेल ने चुनाव जीता था. ये दोनों नेता लोधी समुदाय से आते हैं. प्रहलाद पटेल तो नरसिंहपुर के निवासी होने के बाद दमोह में अंगद की तरह पांव जमा बैठे थे, लेकिन विधानसभा चुनाव नरसिंहपुर से लड़ने और मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद प्रहलाद पटेल की जगह अब कांग्रेस से भाजपा में आए राहुल सिंह लोधी को जातीय आधार पर टिकट दिया गया है. ऐसे में कांग्रेस ने राहुल सिंह लोधी को घेरने के लिए बंडा के पूर्व विधायक तरवर लोधी को मैदान में उतारा है।
दमोह विधानसभा क्षेत्र में हिंडोरिया कस्बे के निवासी राहुल सिंह लोधी की बात करें, तो युवा कांग्रेस के नेता के तौर पर राहुल सिंह लोधी की किस्मत तब चमकी, जब कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में जातिगत समीकरणों के आधार पर भाजपा के दिग्गज जयंत मलैया के सामने राहुल लोधी को मैदान में उतारा. नया युवा चेहरा और जातीय समीकरण के कारण कांग्रेस कई सालों बाद दमोह सीट जीतने में कामयाब रही और राहुल सिंह लोधी राजनीति में नए चेहरे के रूप में उभरे. लेकिन 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद राहुल सिंह लोधी को भाजपा ने आसानी से तोड़ लिया और राहुल सिंह कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए। कोरोना की दूसरी लहर के बीच उपचुनाव हुआ और दमोह की जनता ने राहुल सिंह लोधी को अच्छा सबक सिखाया और 20 हजार से ज्यादा मतों से हार गए. एक युवा नेता के बाद राहुल सिंह लोधी निजी तौर पर भले ही शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला और लोकसभा चुनाव में टिकट भी मिल गया, लेकिन अपने ऊपर लगा दाग राहुल लोधी अब तक नहीं मिटा पाए।
तरवर सिंह की लोधी सरल, सहज और प्रतिबद्ध नेता की
कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी की बात करें, तो तरवर सिंह लोधी भी बिल्कुल राहुल सिंह लोधी की तरह अचानक चुनाव मैदान में आए और चुनाव जीतकर विधायक बने. 2020 में कमलनाथ सरकार गिराने के बाद बीजेपी ने राहुल सिंह लोधी की तरह तरवर सिंह लोधी को भाजपा में शामिल कराने की कोशिश की। भाजपा के दिग्गज लोधी नेता उमा भारती और प्रहलाद पटेल ने कई बार तरवर सिंह लोधी को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मे और सरल और सहज छवि के तरवर सिंह लोधी किसी लालच और दबाव में नही आए और भाजपा में शामिल नहीं हुए. हालांकि 2023 चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उन्हें बंडा से हार मिली, लेकिन कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरणों को ध्यान रखते हुए तरवर सिंह लोधी की छवि भुनाने का बड़ा दांव खेला है।
लोधी स्वाभिमान और बिकाऊ और टिकाऊ का मुद्दा
लोकसभा चुनाव में देश भर में अलग-अलग मुद्दे सामने आ रहे हैं, लेकिन दमोह लोकसभा सीट पर लोधी जाति का स्वाभिमान बड़ा मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस लोधी जाति के मतदाताओं के बीच जाकर कह रही है कि हमने भी आप ही की जाति के ऐसे युवा चेहरे को टिकट दिया है, जिसकी छवि बेदाग है.भारी लालच के बाद भी उसने अपनी पार्टी नहीं छोड़ी और लोधी जाति का मान बढ़ाया। कई तरह के दबाव तरवर सिंह पर भी आए, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ा. जाति के स्वाभिमान के आधार पर कहा जा रहा है कि आप अपने समाज के उस व्यक्ति को आगे बढ़ाओगे, जो भरोसेमंद है।

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