कृषिमध्य प्रदेशव्यापार

29 एकड़ में 150 परिवार करते थे पान की खेती नुकसान से अब 3 एकड़ में 30 परिवार कर रहे

शासन की गाइड लाइन में पान की खेती का नहीं है उल्लेख, इसलिए मुआवजा मिलता है न ही होता है बीमा
पान बरेजे के नाम से जिले की देवरी तहसील की थी पहचान, अब अस्तित्व बचाना भी मुश्किल

रिपोर्टर : प्रशांत जोशी
देवरी । जिन पान बरेजे के कारण देवरी की पहचान है। वही पान बरेजे को बचाना मुश्किल हो रहा है। स्थिति यह है कि शासन प्रशासन की लगातार अनदेखी के कारण किसान अब पान बरेजों की खेती करने से परहेज करने लगे हैं। पान बरेजे का काम छोड़कर दूसरी खेती और व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं।
नवाबी शासन काल में नवाब और उनके दरबारियों को पान का शौक था। पान खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है, इसलिए नवाब ने यहां के लोगों को पान लगाने के लिए प्रेरित किया। पान लगाने में सहायता भी करवाते थे, यहां तक कि नुकसान होने पर पान बरेजे के मालिकों को राशन पानी की व्यवस्था करवाते थे, लेकिन जब से सरकारों का गठन हुआ तो राज्य शासन ने इन पान बरेजों की अनदेखी करना शुरु कर दिया। अब तक पान को पारंपरिक फसलों में भी शामिल नहीं किया गया, पान को कृषि का दर्जा दिलाने के लिए वर्षो से समाज संघर्ष कर रहा है। जिसके इन पान बरेजों का बीमा भी नहीं हो पाता और न ही शासन से कोई आर्थिक सहायता के रूप में मुआवजा मिल पाता है। यही वजह है कि 29 एकड़ में 150 परिवार पानी बरेजे की खेती करते थे वह अब महज 3 एकड़ में 30 परिवार बचे हैं। आगामी दो तीन साल में यह भी पान की खेती करना छोड़ देंगे क्योंकि लगातार नुकसान के चलते यह किसान आर्थिक रूप से टूट चुके है। हिन्दू संस्कृति एवं पूजन पाठ, हवन यज्ञ में पान को देवताओ को अर्पण किया जाता है। पान का स्वास्थ्य के साथ धार्मिक महत्व भी है।
खेती कैसे बनेगी लाभ का धंधा
एक और सरकार पारंपरिक खेती गेंहू, चना, सोयाबीन के अलावा अन्य फसलों को करने के लिए प्रेरित कर रही है, लेकिन जो लोग पहले से पारंपरिक खेती से हटकर काम कर रहे हैं। उन्हें जरुरत पड़ने पर कोई आर्थिक सहायता और नुकसान की भरपाई करने मुआवजा या बीमा राशि नहीं मिलती है। यही नहीं पान की खेती को शासन के मापदंडों में भी शामिल नहीं किया गया है, ऐसे में खेती लाभ का धंधा कैसे बनेगी।
पिछली बारिश में पान बरेजे का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था, जिसको लेकर इन परिवारों ने मिलकर तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा था। अफसरों ने तक्जों नहीं दी थी. जिसके चलते यह लोग राहत की उम्मीद न मिलने के कारण कागज फाड़कर वापिस आ गए थे। पान बरेजे करने वाले राधेलाल चौरसिया ने बताया कि पान बरेजे से लगातार नुकसान हो रहा है। दो बाय 100 फीट की एक क्यारियां में लगभग 3 हजार रुपए लागत आती है और 10 हजार की उपज होती है, लेकिन अब नुकसान की संभावना अधिक रहती है। लगातार हो रहे नुकसान से परेशान किसानों ने अब पान बरेजे की जगह दूसरी खेती और व्यवसाय की ओर रुख कर लिया है।
पूर्व में शासन द्वारा बरेजे निर्माण के लिए रियायती दर पर बांस उपलब्ध कराएं जाते थे, वह भी नही मिल रहे है।
अशोक चौरसिया, संजय चौरसिया, रामसनेही चौरसियां, विकास चौरसिया, दिनेश चौरसिया ने बताया कि इन दिनों पान बरेजे में कोई रोग लग रहा हैं, जिससे पान लाल होकर अचानक झड़ रहे हैं, जिसको किसान समझ नहीं पा रहे हैं। वहीं कीटनाशक दवा विक्रेता भी जानकारी न होने के कारण दवाएं नहीं दे रहे हैं। किसानों ने बताया कि ऐसा रोग पहली बार देखा है। एक बच्चों के पालन पोषण की तरह इन पान बरेजे की देखरेख करना पड़ती है। अब इन पान बरेजे को बचाने के लिए इनमें कौन सी दवाएं डालें।
इस संबंध में दिनेश बरगले, तहसीलदार देवरी का कहना है कि चुनाव के बाद देखते हैं पान खेती में किस प्रकार का मुआवजा देने का प्रावधान है। किसानों की जो भी समस्या है। उसमें हर सभंव तरीके से मदद की जाएगी।

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