दूसरों के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह प्रश्न विचारणीय है : शास्त्री कमलेश

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । हम देश और समाज में रहते हैं। हम जहां निवास करते हैं वहां हमारे पड़ोसी भी रहा करते हैं। विद्यालय में हमारे अनेक सहपाठी व गुरुजन होते हैं। समाज में भी अनेक आयु के स्त्री पुरुष होते हैं। इन सबसे व परिवारजनों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा हो, यह प्रश्न विचारणीय होता है। इसका उत्तर है कि हमें सबसे प्रीतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
उक्त उद्गार मढ़देवरा में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण के पंचम दिवस में पंडित कमलेश शास्त्री ने व्यक्त किए उन्होंने कहा कि अब प्रश्न उठता है कि सभी मनुष्य अच्छे नहीं होते, बुरे भी होते हैं, स्वार्थी व हिंसक प्रति के भी होते हैं, जो लोभ लालच, बल व येन केन प्रकारेण दूसरों का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश करते रहते हैं और बाहर से छल से अपने आप को बहुत सज्जन, शिक्षित व विनम्र दिखाते हैं। ऐसे लोगों से सावधान रहना होता है। अतः प्रीतिपूर्वक व्यवहार के साथ यह भी ध्यान रखना आवश्यक होता है कि हम जिस व्यक्ति से व्यवहार कर रहे हैं, उसकी मंशा व प्रवृत्ति का भी हमें ज्ञान होना चाहिए। यदि वह अच्छा व सज्जन है तो हमारा व्यवहार उसके प्रति प्रीतिपूर्वक होना चाहिए। दूसरी विशेष बात यह है कि हमारा व्यवहार धर्मानुसार होना चाहिए। धर्म का अर्थ है कर्तव्य। इसके लिए हमें देखना है कि हम माता, पिता अथवा आचार्य से व्यवहार कर रहे हैं तो हमारा व्यवहार उनके प्रति हमारे कर्तव्यों के अनुरूप शिष्टता का होना चाहिए। इसी को धर्मानुसार व्यवहार करना कहा जाता है। माता, पिता व आचार्य से इतर भाई, बन्धु, परिवार व सम्बन्धियों के अतिरिक्त समाज के अनेक लोगों से व्यवहार करते हुए भी हमें अपने कर्तव्य व धर्म को सम्मुख रखकर उनके प्रति अपने व्यवहार का निश्चय करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हमारे प्रति छल कपट व इसी प्रकार का व्यवहार कर रहा है तो हमें अपनी सोच व समझ से उसका आंकलन कर उसके प्रति अपने कर्तव्य के अनुसार उसको उत्तर देना होता है। तीसरी प्रमुख बात यह भी देखनी होती है कि हम दूसरों के प्रति जिनसे हमारा पारिवारिक एवं आचार्य-आचार्या आदि का सम्बन्ध नहीं है, उनके प्रति हमें यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए। चोर, डाकू, हिंसक, छल, कपट व लोभ की प्रवृत्ति के व्यक्ति व व्यक्तियों के साथ यथायोग्य अर्थात् जैसे को तैसा का व्यवहार उचित होता है। यदि हम ऐसा करेंगे तो जीवन में सुखी व सफल होंगे और ऐसा नहीं करेंगे तो हम दुःखी व दूसरों के अन्याय, शोषण व अत्याचार से ग्रस्त होकर अपनी व अपने बन्धुओं की हानि कर सकते हैं। यथायोग्य व्यवहार पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आजकल अनेक दल हैं जो अपना अपना स्वार्थ व सत्ता के लिए जनता को वाक् छल से सम्मोहित करने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों से भी मनुष्यों को सावधान रहने की आवश्यकता है और उनके साथ यथायोग्य व्यवहार कर उन्हें सबक सिखाने की आवश्यकता है।
