मध्य प्रदेश

रमजान कुरान के नुजूल का महीना है: मौलाना सामिद नदवी

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया कि शाबान मेरा महीना है वही रमजान खुदा का महीना है। और यह कुरआन पाक के नुजूल का महीना भी है। इसलिए इस माह में कसरत से कुरआन पाक की तिलावत करना चाहिए। कुरआन पाक को अगर आप सवाब की नियत से पड़ेंगे तो सवाब मिलेगा, हिफाजत की नियत से पढ़ोगे तो हिफाजत मिलेगी, हिदायत की नियत से पढ़ोगे तो हिदायत मिलेगी।
उक्त बात जुमे के खुतबे से पहले मरकज मस्जिद के इमाम मौलाना सामिद खां नदवी ने कहते हुए उपस्थित लोगों से माहे रमजान की कद्र करने की नसीहत की। और कहा कि रोजे़दार को अपने रोजे़ की हिफाज़त भी करते रहना चाहिए और हर वो काम छोड़ देना चाहिए जो गुनाह हो । जैसे हराम कमाई , गी़बत, चुग़ली वगै़रह ।
पैग़ंबरे इस्लाम का इरशाद है जो शख्स गुनाह के काम ना छोड़े तो खुदा को इसकी कोई ज़रूरत नहीं है कि वह अपना खाना पीना छोड़ दे।
मदीना मस्जिद पठान वाली में मुफ्ती रुस्तम खान नदवी ने अपने बयान में कहा कि
रोजे़ की हालत में कोई भी वक्त बेकार और फिजू़ल कामों में न लगाया जाए । कारोबार या घर के कामकाज से फारिग़ होने के बाद जो वक्त बाकी़ बचे , उसे खुदा की इबादत में लगाना चाहिए। पैग़ंबरे इस्लाम और सहाबा सख्त गर्मी में रोजा़ रखकर खुदा की राह में जिहाद करते थे और दीन इस्लाम की बातें दूसरों तक पहुंचाते थे । आज हम मुसलमान इतना ना कर सके तो कम से कम अपने रोजो़ं को गुनाहों से हरगिज़ खराब ना करें। इससे बेहतर है कि कुछ वक्त आराम कर लिया जाए ताकि गुनाहों से बचे रहें, मगर सबसे बेहतर काम तो यह है कि अपना वक्त इबादत में खर्च करें,अगर हम रोजे़ के मक़सद को समझकर इसमें करने वाले काम करते हुए और हर किस्म के गुनाहों से बचते हुए रोजा़ रखें तो हमें बेहतरीन नताइज मिलेंगे।
मक्का मस्जिद वालाई टेकरी के पेश इमाम मौलाना नजर मो. गोंडवी ने उपस्थित लोगों को समझाया कि खुदा का कोई भी हुकुम दुनिया व आखिरत के अज्र व सवाब से खाली नहीं । इसी तरीके़ से रोजा़ भी आखिरत के अज्र के साथ हमारी सेहत के लिए भी मुफीद है और आज के दौर में इंसान सबसे ज़्यादा सेहत को लेकर ही परेशान है।खुदा का इरशाद है और तुम्हारा रोजा़ रख लेना तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम्हें समझ हो । हदीस पाक में आया है रोजा़ मोमिन के लिए शिफा है । रोजा़ इबादत के साथ – साथ इंसान की सेहत के लिए भी बेहद मुफीद है ! रोजा़ रखने से इंसान के जिस्म में कमजो़री या कोई कमी पैदा नहीं होती । रोजा़ जिस्म को आराम पहुँचाने का ज़रिया है। इंसानी जिस्म एक मशीन की तरह है ! जिस तरह मशीन को मुसलसल काम करने के बाद आराम की ज़रूरत होती है इसी तरह हमारे बदन के आजा़ को भी रोजे़ में इनके काम से फुर्सत मिल जाती है। और यह फिर से पूरे साल काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
‌‌ मस्जिद अमीर दाद खा़ के पेश इमाम और जमीयत उलेमा के सदर मौलाना सैयद जैद कासमी ने बताया कि रमजानुल मुबारक में सरकश शैयातीन जकड़ दिए जाते हैं ताकि वह रोजे़दार को बेहका न सकें । हदीस मुबारक है जब रमजानुल मुबारक की पहली रात आती है तो शैयातीन जकड़ दिए जाते हैं। इस माह में तीन असरे हैं पहला अशरा रहमत दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा जहन्नम की आग से खुलासी है। इसलिए हमें इस माह में अपने कामों को थोड़ा सा रोककर या कम करके ज्यादा से ज्यादा इबादत करना चाहिए। जिससे खुदा हमसे राजी हो जाए। उन्होंने बताया कि उलेमाओं की मशवरे से सदका ए फित्र फी नफर 40 रु. तय किया गया है जो साहिबे निसाब हैं उनहें अभी से लेकर ईद की नमाज से पहले पहले तक मुसतहिक लोगों को देना जरूरी है। जो किसान गल्ला देना चाहते हैं वह 1 किलो 633 ग्राम के हिसाब से अदा कर सकते हैं।

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