धार्मिक

सब धर्म में सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है : कमलेश कृष्ण शास्त्री

सुल्तानगंज । हनुमान बाग मंदिर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के छठवें दिन में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा – शरणागत भाव से की गई सेवा और सुमिरन परमात्मा प्राप्ति के सर्वोपरि साधन हैं। सेवा में अहम् भाव का नाश हो जाता है, जो परमात्मा प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक है। सेवा साधना का एक उत्कृष्ट फल है। भक्ति की तल्लीनता का एक अंग है – सेवा। इसकी उपलब्धि ही सर्वस्व है। ‘सेवा’ एक छोटा-सा शब्द है, लेकिन गुरुओं की शिक्षा को आत्मसात करने वाले श्रद्धालुओं के लिए, चाहे वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय से सम्बन्ध रखते हों, इसके अर्थ बहुत बड़े हैं। गुरु घर की सेवा यानी विनम्रता का वरण, गुरु का अंग-संग, कृपा और अनुकम्पा पाने की सीढ़ी है। सिख धर्म में सेवा एक जीवन-पद्धति या व्यवहारिकता है। आत्म-विकास के लिए, सामाजिक उत्तरदायित्व एवं मानवीय कर्तव्य के नाते हमें जन-सेवा को जीवन का महत्वपूर्ण नियम बना लेना चाहिए। नित्य किसी न किसी रूप में कम से कम किसी पीड़ित की सेवा का व्रत तो हम निभा ही सकते हैं। गौतम बुद्ध ने यही कहा है – “जिसे मेरी सेवा करनी है, वह पीड़ितों की सेवा करे – “सेवा परमोधर्म: …” यह उक्ति हमारी रगों में दौड़ती है। “नर कर्म करे, तो नारायण हो जाए …”, इससे बड़ा सिद्धान्त और क्या हो सकता है? सेवा भाव के कारण ही कई महापुरुषों का नाम इतिहास में अंकित हो गए हैं। किसी ने राष्ट्र की सेवा कर अपना परचम लहराया, तो किसी ने मानव जाति, तो कोई पशु-पक्षियों से प्रेम और सेवा कर अपना नाम इतिहास के पन्नों में अंकित कराया। सेवा ही मनुष्य का सर्वोपरि धर्म है। सेवा से मनुष्य का तन, मन, धन सब कुछ पवित्र हो जाता है। सेवा से सन्त-सत्पुरुषों का सान्निध्य प्राप्त होता है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है। दूसरों से सेवा लेने से हमारे पुण्य नष्ट होते है, जबकि दूसरों की सेवा करने से हमारे पुण्य बढ़ते हैं। इसलिए हमें निरन्तर सेवा करते रहना चाहिए। सुखी जीवन जीने के लिए जीवन में नियम व नीति से रहने की प्रेरणा देते हुए जो व्यक्ति धर्म के पथ पर चलकर नियम व नीति से जीवन जीता है, सुख स्वयं उसके पीछे दौड़े चले आते हैं, क्योंकि बिना नीति से, नियम से, मूल्य से, सिद्धान्तों एवं परम्पराओं से व्यक्ति अधूरा रहता है। इसलिए मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। अतः सात्विक निष्काम सेवा से ही जीव को मोक्ष की प्राप्ति होता है। सन्त-सत्पुरुषों का सदा से ही यह प्रयास होता है कि लोगों का यह लोक तो सुधरे ही साथ ही उनका परलोक भी सुधर जाये …। कथा की आयोजक श्री भगवान दास महाराज जी हैं मुख्य अजमान अभिषेक शर्मा डॉक्टर जगदीश सिंह दांगी मनीष जी हैं कथा में नगर के बहुत से गणमान्य लोगों उपस्थित रहे।

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