धार्मिक

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जीवन मे, मर्यादा और अनुशासन में रहने की प्रेरणा लेना चाहिए : पंडित रेवाशंकर शास्त्री

छटवे दिवस बताया सत्कर्म करने का महत्व,
सिलवानी । तहसील के ग्राम रोसरारानी में आयोजित की जा रही संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञं के छटवे दिवस रविवार को पंडित रेवाशंकर शास्त्री के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण -रुकमणी विवाह का वर्णन कर श्रद्वालुओं को भाव विभोर कर दिया। कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुंचे।
कथा व्यास पं रेवाशंकर शास्त्री ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण का विवाह रुकमणी के साथ संपन्न होता है तथा वह द्वारिका में निवास करते है। दैत्य द्वारा 16100 युवतियों को बंदी बना कर रखा गया था। जिसे कि भगवान श्रीकृष्ण ने मुक्त कराया। दैत्यों से मुक्त होते ही युवतियों के द्वारा श्रीकृष्ण को पति रुप में वरण किया गया। भगवान श्रीकृष्ण ने रासलीला के माध्यम से जीवन में रसो का समावेश किया है। श्रीकृष्ण गोपियों के साथ पवित्र भावना मय प्रेम पूर्ण रास रचाते हैं, जिसमें तनिक भी वासना का समावेश नही है। सर्व प्रथम श्रीकृष्ण के द्वारा शरद पूर्णिमा को महारास रचाया गया था।
कथा वाचक ने कहा कि इंसान को भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जीवन यापन, मर्यादा और अनुशासन में रहने की प्रेरणा लेना चाहिए। श्रीकृष्ण को लीला पुरुषोत्तम कहा गया है, उनके कहे गए वाक्यों का जीवन में अनुशरण किया जाना चाहिए। कि मर्यादाओं से जीवन यापन करो, उनकी लीला से शिक्षा मिलती है जब वसुंधरा पर कंस का अत्याचार व्याप्त हो गया तो मथुरा की प्रजा को मुक्ति के लिए अक्रुरजी के साथ श्री कृष्ण ने मथुरा प्रस्थान किया। वहां कंस के मल्लों से युद्व कर धनुष का खण्डन करके दुराचारी कंस का बंध कर प्रजा को आनंद दिया। और यमुना के किनारे विश्राम किया, जिसे कि आज विश्राम घाट के नाम से जानते है।
उन्होने बताया कि रुकमणी द्वारा पत्र के माध्यम से ब्राम्हण के हाथों श्रीकृष्ण को संदेश भेजा गया कि मेरे परिजन मेरा विवाह मेरी इच्छा विरुद्व अन्यंत्र कर रहे है, जबकि मेरा आपसे जन्म जंमान्तर का संबंध है। मैं आपको पतिदेव मेे वरण कर चुकी हूं। अतः आप मुझे यहां से ले जाकर विवाह कीजिए। तव श्रीकृष्ण- रुकमणी को ले जाकर विवाह करते है। भागवत कथा का मूल उद्देश्य है कि भगवत भक्ति से वास्तविक मोक्ष प्राप्त बताया है।
पंडित रेवाशंकर शास्त्री नेे भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला का आनंद प्रदान करते हुए बताया कि किस प्रकार शरद पूर्णिमा की दिव्य चांदनी रात में महारास का अद्भुत चि़त्रण किया। जिसका उद्देश्य जीवात्मा का परमात्मा से मिलन है। जीवन से जव पाप और पुण्य का समावेश होगा तो परमात्मा से हम नही मिल पाएंगे। परमात्मा से तो विरह की अग्नि में तप कर प्राप्ति होती है। परमात्मा की प्राप्ति मनोंभावों और पवित्र ह्रदय से ही होना संभव है। सत्य धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होने बताया कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नही हो सकता है। प्रत्येंक व्यक्ति को सत्य धर्म का पालन करना चाहिए। सत्य धर्म का पालन किए बगैर जीवन में सफलता को प्राप्त नही किया जा सकता हैं।
मंगलवार को होगा कथा का समापनः- सप्त दिवसीय श्रीमद् भगवत कथा ज्ञान यज्ञ का समापन सोमवार को किया जाऐगा। आयोजक राजेंद्र रघुवंशी फौजदार परिवार द्वारा श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि वह कथा समापन कार्यक्रम में उपस्थित होकर धर्म लाभ ले।

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