धार्मिक

जंगल की पहाड़ियों के बीच स्थित है करीब 5000 वर्ष पुराना शिव मंदिर

आस्था: त्रिलोकचंद से कोई नहीं जाता खाली, सैकड़ों महिलाओं की भरी हैं गोद
सिलवानी। तहसील मुख्यालय से करीब 25 किमी की दूरी पर स्थित त्रिलोकचंद मंदिर जो कि 5000 वर्ष पुराना है जिसे शिव मंदिर, त्रिलोकचंद के नाम से जानते है। प्राचीन काल के शिव मंदिर में शिव जी की पिंडी एवं त्रिलोकचंद भगवान की मूर्ति विराजमान है।
क्या है मंदिर का रहस्य
त्रिलोकचंद मंदिर के पुजारी शिवस्वरूप महाराज द्वारा बताया गया कि चारों ओर से पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच में स्थित करीब पांच हजार वर्ष पुराने त्रिलोकचंद स्थान का रहस्य काफी पुराना है। बुजुर्ग बताते है कि भक्त त्रिलोकचंद महाराज द्वारा शिव मंदिर का नग्न अवस्था में निर्माण करते थे उनकी एक बहन भी थी। भक्त त्रिलोकचंद महाराज द्वारा मंदिर निर्माण से पहले ही अपनी बहन से यह षर्त रखी थी कि वह जब भी मंदिर में प्रवेश करें तो घंटा बजाकर ही अंदर आए। जिसकी वजह से उन्होंने मंदिर के पास में एक घंटा लगा रखा था। काफी समय व्यतीत जाने के बाद भक्त त्रिलोकचंद महाराज द्वारा प्राचीन शिव मंदिर के निर्माण के अभी तीन स्तंभ पूरे हुए ही थे कि उसकी बहन के मन में कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न हो रहे थे वह इन जिज्ञासों को जानने के लिए कि भाई अकेले मंदिर में क्या करते है तो वह एक दिन उनकी बहन बगैर घंटा बजाए मंदिर परिसर में आ गई जिनको देखने के बाद श्री भक्त त्रिलोकचंद जी अपनी बहन पर रूष्ट हो गए और उन्होंने अपनी बहन से कहा कि अब यह मंदिर अधूरा ही रहेगा। मैं भी पत्थर की मूर्ति हो जाउंगा। जो कि आज भी त्रिलोकचंद में विराजमान है। वही उनकी बहन भी अंर्तध्यान हो गई। इसके बाद आज तक उनका कोई पता नहीं लगा।
वर्तमान में मंदिर में पुजारी शिवस्वरूप महाराज द्वारा बताया गया कि पूर्व में इस स्थान को कोई नही जानता था। 16 वर्ष की उम्र में यहां पर ब्रहमचारी श्री महंत 1008 गंगा स्वरूप जी महाराज द्वारा एक बैठक में 21 माह साधना की। और वह लगभग 80 साल से अधिक इस स्थान पर उन्होंने तपस्या की। बुर्जुग बताते है कि 105 वर्ष की उम्र में 22 अप्रेल 2021 को गुरूजी ब्रह्मलीन हो गये। इस तरह प्राचीन मंदिर में उन्होंने अपना पूरा जीवन काल लगा दिया। साथ ही घने जंगलों के बीचों बीच होने के कारण शेर, तेंदुआ सहित कई प्रकार के जंगली जानवर जंगल में निवास करते थे। पूर्व में यह जंगल बड़ा घनघोर था, यहां कोई भी व्यक्ति दर्शन करने अकेला नहीं आता था। जनवरों का हमेशा डर बना रहता था। अनेकों के झुण्ड में श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने आते थे।
जानकारी के अनुसार इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां से हजारों लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण कर अपने जीवन को धन्य कर चुके। महाशिवरात्रि के अवसर पर हजारों भक्त अभिषेक करने पहुंचते है। त्रिलोकचंद मंदिर में चैत्र की नवरात्रि पर विशाल मेला एवं नवदिवसीय गायत्री यज्ञ का आयोजन किया जाता है जिसमें सिलवानी तहसील सहित आसपास के या कहें कि पूरे जिले से लोग इसमें शामिल होते हैं और बडे़ ही धूमधाम से इस मेले में शामिल होकर भगवान से अपनी मनोकामना के लिए अपनी अर्जी लगाते हैं।
जिसने जो मांगा वह पाया
भगवान त्रिलोकचंद जी की कृपा ऐसी होती है कि जिसने इस स्थान पर पूरी श्रद्धा के साथ जो मनोकामना मांगी है वह उसकी पूरी होती है। त्रिलोकचंद के सिद्ध स्थान पर सैकड़ों की गोदी भरी है जहां पर सैकड़ों निःसंतान दंपत्ति को ईश्वर की असीम कृपा से संतान प्राप्ति हुई है जिसकी वजह से ही आज त्रिलोकचंद पूरे क्षेत्र में जाना जाता है।
हर वर्ष बढ़ती है एक इंच मूर्ति, चढ़ाया जाता है सिंदूर का चोला
मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं ने बताया कि विगत कई वर्षों से हम लोग देख रहे है कि त्रिलोकचंद में बम्हचारी महाराज त्रिलोकचंद जी की मूर्ति भी विगत कई वर्षों से बढ़ रही है और आकार भी ले रही है इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आज भी त्रिलोकचंद में ईश्वर किसी न किसी रूप में विराजमान है।
मंदिर के लिए मार्ग
त्रिलोकचंद जाने के लिए सिलवानी बरेली राजमार्ग 15 के गुन्दरई से पूर्व में 5 किलोमीटर है जो आधी सड़क पक्की एवं कच्ची है। वही इसी मार्ग के गैलवानी से 4 किलोमीटर से भी इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। मंदिर से ही लगकर गजंदा नदी बहती है।

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