मध्य प्रदेशहेल्थ

जिले से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिना रजिटेशन के धल्ले से चल रहें हैं दवाखाने

किन के सरक्षण में चल रहे हैं ये झोला छाप डॉक्टर 
रिपोर्टर : मनीष श्रीवास
जबलपुर । जबलपुर जिले के ग्रामीणों में विगत दिवस मीडिया के कुछ लोगों ने मझगवा क्षेत्र में नर्मदा दवाखाना के डॉ प्रियेश पाठक होम्योपैथिक डॉक्टर से उनके चेम्बर्स में जा कर बात की और उनसे उनका रजिस्टेशन नम्बर और अधिकार पत्र पूछा तो उन्होनें बात को घुमाते हुए नजर आन्दाज कर दिया। इतना ही नहीं जब इनसे वर्किंग को लेकर इनका छोटा सा इंटर व्यू लेना चाहा तो माईक आई डी देख घबराइए और कुछ भी कहने से मना कर दिया । वही मीडिया के सामने धल्ले से ये डॉक्टर साहब अपनी पेथी से हटकर (ऐलोपेथी तरीके) से लोगो का इलाज करते नजर आये । जिनका इनको कोई ज्ञान ही नही है कि इंजेक्शन लगाना, बॉटल लगाना और तो और शुगर- बीपी तक किट लगा कर तत्कालीन मौसमी बीमारियों का लाज कर पीड़ित को ईजेशन लगा रहें है । देखा जाये तो इन डॉक्टर को अंग्रेजी दवाई करने का कोई अधिकार प्राप्त ही नही है। पर  डॉक्टर आम जनता की जान से खिलवाड़ कर रहे है लगता है शासन प्रशासन कोई बड़ी अनहोनी होने का इन्तजार कर रही है।
वही इन होम्योपैथिक डॉक्टर्स की आइडियल केयर एसोसिएशन की उस याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया । जिसमें हाईकोर्ट से मांग की गई थी कि एलोपैथी डॉक्टर्स की तरह उन्हें भी इंजेक्शन लगाने, दवाइयां लिखने की अनुमति दी जाए । लेकिन हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं किया जा सकता। फिर तो इस तरह से  मेडिकल दुकान चलाने वाला भी ऑपरेशन करने की अनुमति मांगने लगेगा। इतना ही नहीं वह सर्जरी संबंधी दवाइयों की जानकारी रखता है, इसलिए उसे परमिशन दी जाए ।
याचिका की सुनवाई – जस्टिस सतीशचंद्र शर्मा की खंडपीठ के समक्ष याचिका की सुनवाई हुई। शासन की तरफ से अधिवक्ता निधि बोहरा ने पैरवी की। एसोसिएशन ने याचिका में उल्लेख किया था कि होम्योपैथी डॉक्टर्स की डिग्री को भी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त है। यह डिग्री भी एलोपैथी के एमबीबीएस के बराबर ही मानी जाती है। होम्योपैथी का कोर्स भी मेडिकल साइंस के तहत आता है। प्रदेशभर में होम्योपैथी डॉक्टर्स की प्रैक्टिस को मान्यता प्राप्त है। ऐसी स्थिति में होम्योपैथी डॉक्टर्स को भी एलोपैथी की तरह इंजेक्शन लगाने, दवाइयां लिखने की अनुमति मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला दिया कि न केवल होम्योपैथी बल्कि, प्राकृतिक चिकित्सक, यूनानी, आयुर्वेदिक डॉक्टर्स भी एलोपैथी की दवाई या उस पद्धति से इलाज नहीं कर सकते । हर पद्धति की अपनी-अपनी इलाज की शैली है उसी तरह से प्रैक्टिस भी की जाना चाहिए। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रैक्टिस की व्यवस्थित रूपरेखा बना रखी है। उसे इस तरह बिगाड़ा नहीं जा सकता। 
जिले से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में लगीं पड़ी है लाई- इन आयुर्वेदीय डाक्टरों की दवा दुकानों की चरों तरफ लाईन लगीं हैं और जब कोई गरीब की हालत बिगड़ जाति हैं तो उससे कहते कि नागपुर में ले जा कर दिखाना होगा ।
गरीब परिवार के लोग- जबलपुर जिले के सिहोरा, कुण्डम, मझगवा, बरेला, पाटन, मझौली, पनागर, बरगी सहित अन्य बहुत से गावों में गरीब,मजदूर परिवार के सदस्यों को इनके ईलाज से कोरोना काल में जीवन से हाथ धोना पड़ा ।और जिला चिकित्साधिकारी की मेहरवानी से सब जलता रहा ।
जहाँ तक कि जिले में भर्ती 8 मरीजों की जल जाने से भी मौत हो गई थी । और जिला स्वास्थ्य विभाग फायर एनो सी ढ़ूँढ़ने में व्यस्त नजर आया ।
अब ये देखना है कि मरीजों की सुरक्षा इन दवाखाना चलाने वालों के हाथ में होगी या फिर एम बी बी एस सर्जन डाक्टरों के हाथ में । शिकायत तो जयाएज हैं पर स्थानीयकृत लयेसेंस और रजिस्टर होना भी चाहिए । 
इस संबंध में डाक्टर दीपक गायकवाड़ खण्ड चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि सभी ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे हैं झोला छाप डॉक्टर पर कार्यवाही जारी है ।

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