मध्य प्रदेश

दान पर्व अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर जैन मिलन नगर प्रमुख शाखा दमोह द्वारा इच्छू रस का वितरण किया

ब्यूरो चीफ भगवत सिंह लोधी
दमोह । दान पर्व अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर जैन मिलन नगर प्रमुख शाखा दमोह द्वारा इच्छू रस का वितरण किया गया है, क्योंकि भगवान ने गन्ने का रस आहार के रुप में लिया था इसलिए आज जैन मिलन नगर प्रमुख शाखा दमोह द्वारा सभी चौंकों में मुनिराज को आहार देने हेतु गन्ने के रस का वितरण किया गया।अक्षय तृतीया पर्व है जैन मत अनुसार अक्षय तृतीया की कथा जो पूज्य मुनि श्री आस्तिक सागर जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कही जब भारत में भरत चक्रवर्ती का शासन हुआ करता था और राजा ऋषभदेव उनके पिता थे जो कि इस जैन धर्म के काल के प्रथम तीर्थंकर थे। नीलाजंना का नृत्य देखते हुए वैराग्य हो गया था तभी समस्त राजपाट त्याग कर वन में आत्म अराधना के उद्देश्य से जिन मुनि दीक्षा धारण कर वन को चले गए। उनके साथ चार हजार राजाओं ने भी दीक्षा ले ली। एक बार जो मुद्रा मुनि ऋषभदेव ने धारण की तो सर्दी, गर्मी, भूख प्यास सभी कुछ जीत कर इन्द्रियों का दमन कर तपस्या में बैठ गए उन्हें शरीर से मोह नहीं था। ऐसा एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, छ माह तक मुनि ऋषभदेव देव कठोर तप अराधना करते रहे। छ महीने बाद जब ऋषभदेव अपने ध्यान को रोकते है तब ऐसा विचार करते हैं, इस काल में किसी को आहार देने की विधी का बोध ही नही है अतः असि मसि कृषि शिल्प कला वाणिज्य की शिक्षा देने के पश्चात अब दानतीर्थ आहार दान की स्थापना का कार्य होना चाहिए। फिर आहार हेतु नगर में प्रवेश करते हैं, आहार मुद्रा धारण कर जब नगर में प्रवेश करते हैं तव नगरवासी आनन्द से भर उठते हैं क्यों कि आज उनके सामने तीर्थंकर मुनि राज का प्रवेश जो हुआ है लोगों के आनन्द का कोई पार नहीं था, छ महीने बाद तीर्थंकर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो गया है। नगर में ढिंढोरा पिट गया सभी लोग अपने अपने घरों के बाहर खड़े हो गए सभी भगवान को भोजन के लिए आमंत्रित करने लगे, लेकिन यह सही विधि थोड़े ही थी, कोई कहता है मेरे घर आईए मेरे घर में अनेकानेक अत्यंत पवित्र मिष्ठान आपका इन्तजार कर रहे है, आप नग्न क्यों है वस्त्र धारण कीजिए कोई सम्पत्ति देने को उत्सुक हैं, यहां तक कि नगर के सेठ अपनी बेटी के साथ खड़े हैं और मुनि भगवान से कहते हैं मेरी बेटी से विवाह कर लीजिऐ और इस सारी सम्पत्ति को भोगिये, अब इन विचारों को क्या मालूम जिनकी सेवा स्यंव सौधर्म इन्द्र किया करता हो ऐसे ऐसे भोगों को त्याग bकर मुनि हुऐ है उन्हें विषय भोगों की दरकार नहीं लेकिन प्रजा को आहार विधि का सच्चा ज्ञान ना था। इस तरह छ महीने व्यतीत हो गए उस समय हस्तिनापुर में राजा सोमप्रभ वहां के राजा हुआ करते थे इनका छोटा भाई था जिसका नाम कुमार श्रेयांस था जब मुनि ऋषभदेव हस्तिनापुर के समीप होते हैं तो रात्रि में श्रेयांस कुमार सात मंगल स्वप्न देखते है सुमेरूपर्वत, सिंह, वैल, कल्पवृक्ष, सूर्य चन्द्रमा, समुद्र, भूत जाति के व्यन्तर देवो की मूर्तियां सुबह होते ही कुमार श्रेयांस इन स्वप्नों को राजा सोमप्रभ और पुरोहितों को बताते है और उनका फल जानने की इच्छा करते हैं तव पुरोहित कहते हैं तुम्हारे अति पुण्य का उदय आने वाला है तुम्हें तीर्थंकर परमात्मा के दर्शन का अतिशीघ्र ही लाभ मिलने वाला है दोनों भाई सपनों की चर्चा करते हुए बैठै ही थे कि इतने में नगर में मुनिराज ऋषभदेव का मंगल आगमन हो गया। ऐसी खबर उनके पास तक पहुंचती है उनके आवागमन के साथ ही नगर में कोलाहल मच जाता है। सभी जन आनंद आश्चर्य से भर उठते हैं और हस्तिनापुर अव मुनि भगवान ऋषभदेव की जय कार से गूंज उठता है और सम्पूर्ण नगर में विहार करते हुए भगवान ऋषभदेव राज मंदिर में प्रवेश करते है राजा सोमप्रभ और श्रेयांस कुमार को मुनि के आगमन का समाचार प्राप्त होता है और वे अतिशीघ्र ही भगवान के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं ये थी वह घड़ी जब मुनिराज अपना प्रथम पारणा ग्रहण करने वाले हैं दोनों भाई भगवान के चरणों का प्रक्षालन करते हैं। आहार के पूर्व की विधि को पूर्ण करते हुए असीम आनन्द को प्राप्त कर रहे होते हैं, भगवान का रुप देखते ही श्रेयांस कुमार को जाति स्मरण हो जाता है कि पूर्व भव में ऋषभ देव वज्रजंघ राजा की पर्याय में थे, तब विदेह क्षेत्र की पुन्डिरिकनी नामक नगरी में श्रेयांस कुमार उनकी प्रिय पत्नि श्री मति के रुप में हुआ करती थी, क्या समझे भगवान आदिनाथ और राजा श्रेयांस इससे पहले भव में पति पत्नी थे। उसी भव में इन दोनों पति पत्नी ने दो चारण ऋद्धिधारी मुनियों को आहार दान दिया था। आहार की विधि सम्पन्न कर कुमार श्रेयांस और राजा सोमप्रभ आहार करा कर दान तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं जिनके यहां भगवान का आहार होता है उसी समय पंचाश्चर्य होते हैं आकाश से फूलों की वर्षा होती है, मन्द मन्द सुगन्धित हवा चलती है, सम्पूर्ण प्रथ्वी भगवान की जयकार से गूंज उठती है, रत्नों की वर्षा होती है और धन्य है यह जीव धन्य है यह पात्र ऐसा नाद सुनाई देने लगता है सम्पूर्ण नगर स्वमेव वृद्धि को प्राप्त करता है आकाश से देवाधि मुनिराज मुनि ऋषभदेव तथा राजा कुमार श्रेयांस की भक्ति करने लगते हैं। इस तरह मुनि ऋषभदेव प्रथम पारणा राजा सोमप्रभ तथा कुमार श्रेयांस के द्वारा वैशाख शुक्ल तृतीया को ईच्छू रस गन्ने के रस को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, जिसे हम अक्षय तृतीया के नाम से जानते है आज हमें समझ आया कि आज के दिन हर धर्म के लोग दान देने में इतना महत्व क्यों रखते हैं, आज सभी जगह दान की प्रवृत्ति देखी जाती है क्यों कि आज के दिन ही दानतीर्थ आहार दान की स्थापना जो हुयी थी, जो कि मुनि ऋषभदेव ने की थी इस प्रकार अक्षय तृतीया पर्व एक बहुत ही मंगलमय पर्व है, इस प्रकार आज हमने अक्षय तृतीया के इतिहास को जाना हमने पुरी कथा पड़ी ।
आनंद जैन बीएसएनएल ने बताया कि भगवान ने गन्ने का रस आहार के रुप में लिया था इस लिए आज जैन मिलन नगर प्रमुख शाखा दमोह द्वारा सभी चौंकों में मुनिराज को आहार देने हेतु गन्ने के रस का वितरण किया गया।विनय जैन ने कहा कि आज सुबह से ही शाखा के सदस्यों द्वारा आदिनाथ भगवान का पूजन अभिषेक किया गया तद पश्चात गन्ने रस का वितरण किया गया इस आयोजन में सहयोग करने वाले में प्रमुख सुधीर जैन डबलू, अरुण जैन, कोर्ट मुकेश जैन मम्मा, राजेश जैन, ओशो जिनेन्द्र जैन उस्ताद, दिलेश जैन चौधरी, नीलेश चौधरी, संतोष अविनाशी, संजीव शाकाहारी, जिनेन्द्र जैन मडला शैलेन्द्र सराफ संजीव शाकाहारी आदि प्रमुख हैं।

Related Articles

Back to top button