प्रभु याद से होता तन-मन-धन का शुद्धिकरण, 5 विकारों को करों स्वाहा, ज़िंदगी हो जायेगी वाह-वाह : ब्रह्माकुमारी

श्रीमदभागवत गीता का सार, सुखमय जीवन का आधार, गीता ज्ञान यज्ञ का सातवाँ दिवस
कथा स्थल पर सजा चैतन्य दैवी दरबार
सिलवानी । प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिलवानी के तत्वावधान में श्रीमदभागवत गीता ज्ञान यज्ञ के सातवें दिवस में प्रवक्ता राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी नीलम बहन ने सर्वप्रथम श्रीमदभागवत गीता जी की आरती के बाद परमपिता परमात्मा राम का आह्वान करते हुए कहा कि भागवत में चार अक्षर हैं इन चार अक्षरों को ही अगर समझ लिया,तथा अपने जीवन में धारण किया, तो आप ईश्वर के नजदीक जा सकते हैं। इसमें भा – भक्ति, ग – ग्यान, व – वैराग्य, त – त्याग और तप। भागवत कलयुग का अमृत हैं। सभी दुःखों की एक ही औषधि भागवत गीता हैं। कहते हैं, परिवर्तन ही संसार का नियम है। हमें ही कलियुग में रहते ही अपनी बुराइयों को, बुरी आदतों को अच्छाई में परिवर्तित करना हैं। अर्थात इस अनोखे गीता ज्ञान यज्ञ के द्वारा मनुष्यों के संस्कार परिवर्तन का दिव्य गुणों से परिवर्तन करना है कहा जाता है नर ऐसी करनी करें जो नारायण बन जाए और नारी ऐसी करनी करें जो श्री लक्ष्मी बन जाए।
यज्ञ का मतलब- त्याग, बलिदान, समर्पण। कहते हैं- यज्ञ कुण्ड में स्थूल सामग्री को अग्नि के माध्यम से देवता के निकट पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं । हवन कुंड में अग्नि प्रज्जवलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में घी, फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। परन्तु हमें इस श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर ईश्वरीय याद रूपी योगाग्नि में तीन चीजों को स्वाहा करना हैं- तन-मन-धन।
जवां -तन, तिल- मन, और घी- धन। ये तीनों चीजों (घी, जवां, तिल) को स्वाहा करना हैं। सबसे पहले मन करता है कि कुछ कार्य किया जाए तो फिर तन द्वारा किया जाता हैं और धन से विकर्म किया। जिससे 5 विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार) पैदा होते हैं।।
यह राजस्व अश्वमेघ अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ शिव परमपिता परमात्मा द्वारा यज्ञ आयोजित किया गया है हम सब इस अविनाशी यज्ञ के यजमान हैं , हम इस यज्ञ के रक्षक हैं, यह एक ऐसा यज्ञ हैं जहाँ मन की चंचलता, विचलित इंद्रियों, बुराइयों , विकारों को स्वाहा करना पड़ता हैं। वर्तमान में हमारा मन रूपी अश्व कलियुग में पुर्णतः फंस चुका हैं। मन कलियुगी पाप कर्मों में लिप्त हो चुका है। तो अब कलियुग के अंतिम समय, कयामत का समय हैं। इस अंतिम समय में हमें शिव परमात्मा को याद करके, उससे शक्तियां ले कर मन की चंचलता को, मन के भटकाव को दूर कर सकते हैं। तो हमें आज इस यज्ञ में बुरे कर्म कराने वाले बुरे संस्कार को स्वाहा कर तन का शुद्धिकरण करना है।नकारात्मक विचार करने वाले बुरे व्यवहार, स्वभाव को स्वाहा कर के मन का शुद्धिकरण और धन का शुद्धिकरण करना हैं, क्योंकि प्रभु याद में रहकर किये गए कार्य से ही तन-मन-धन का शुद्धिकरण और श्रेष्ठ संस्कारों का दिव्यीकरण होता हैं।
मेडिटेशन अभ्यास के बाद श्री मदभागवत जी की आरती कर प्रसाद वितरण किया गया।
इस अवसर पर कथा में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी छाया दीदी, ब्रह्माकुमारी ज्योति बहन, ब्रह्माकुमारी मोहिनी बहन, ब्रह्माकुमारी दीपिका बहन, ब्रह्माकुमारी आरती बहन, ब्रह्माकुमारी निधि बहन, और अन्य भाई-बहन, माताएं और क्षेत्रवासी शामिल रहें।
