मकर संक्रांति पर होगी जमकर पतंगबाजी, कागज की पतंग महंगी, पॉलीथिन की सस्ती
रिपोर्टर : शिवलाल यादव
रायसेन। संक्रांति पर्व के चलते शहर की पतंग की दुकानों पर पतंगों की बिक्री शुरू हो गई है।पॉलीथिन के इस्तेमाल को भले ही प्रतिबंधित कर दिया गया हो।लेकिन पतंगों के रूप में आज भी पॉलीथिन का इस्तेमाल हो रहा है। कागज की पतंग जहां महंगी होती है । वहीं पॉलीथिन की बनी पतंग सस्ती होने के साथ टिकाऊ भी होती है ।इसलिए पॉलीथिन की पतंगों की डिमांड ज्यादा बनी हुई है। बाजार में पतंग की अलग- अलग वैरायटी मौजूद है। 3 रुपए से 70 रुपए तक पतंग मिल रही है। गंजबाजार वार्ड 8 निवासी पतंग विक्रेता अब्दुल समीर, जमाल मियां बताते हैं कि उनके परदादा के जमाने से पतंग बनाने बेचने का कारोबार परिवार करते आ रहा है। चूंकि पुश्तैनी काम हैं इसलिए चल रहा है। साल में सिर्फ एक बार मकर संक्रांति पर्व जनवरी में ही पतंग का कारोबार होता है। उन्होंने बताया कि चाइनीज मांझा बैन है इसलिए बरेली मांझा और वर्धमान का मांझा ज्यादा बिकता है। वे स्वयं चाइनीज मांझा के विरोध में है इसलिए लोगों को सादा मांझा इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
मकर संक्रांति से पतंगबाजी का दौर शुरू हो जाएगा। पतंगों का बाजार भी सज गया है। दुकानों पर देशी मांझा रखा हुआ है।लेकिन चाइनीज मांझा डिमांड में होने के कारण चोरी-छुपे बेचा जा रहा है। कुछ लोग बाहर से भी इसे बुलवा रहे हैं। चाइनीज मांझा सूती धागे वाले मांझे से मजबूत होता हैं, क्योंकि यह मांझा प्लास्टिक या नायलॉन का बना होता है। जिसे काट पाना मुश्किल होता है ।इसलिए पतंगबाजी में युवा इस मांझे का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। हालांकि पतंग विक्रेताओं का कहना है कि सरकार ने चाइनीज मांझा को बैन कर रखा है। इसलिए वे इसे नहीं बेचते हैं।लेकिन कुछ लोग पतंगबाजी के लिए बाहर से इस मांझे को बुलवा रहे हैं।
इसलिए खतरनाक है चाइनीज मांझा: चाइनीज मांझे में पांच तरह के कैमिकल और कई धातुओं का प्रयोग होता है। इसमें एल्युमिनियम ऑक्साइड और लेड का इस्तेमाल होता है। यह सभी चीजें मिक्स होकर तेज धार वाला चाइनीज मांझा बनाती है। जिसे कोई नहीं काट सकता है इसलिए इस मांझे की पतंगबाजी में काफी डिमांड रहती है। इसके विपरित शहर में बरेली मांझा, नागराज रील, बड़ी साकल, छोटी साकल रील चल रही है। जो पतंगबाजी में इस्तेमाल की जाती है। वर्तमान में वर्धमान रील सबसे ज्यादा डिमांड में चल रही है।