धार्मिक

संस्कृति के संरक्षण के लिए शिक्षा संस्कार युक्त होनी चाहिए : आर्यिका गुरुमती माताजी

ब्यूरो चीफ : भगवत सिंह लोधी
दमोह। संस्कृति के संरक्षण के लिए शिक्षा संस्कार युक्त होना चाहिए संस्कार व्यक्ति ही संस्कृति को आगे बढ़ा सकते हैं छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों का भी संस्कार वान अति आवश्यक है युवा पीढ़ी को मध्य मांस मधु के साथ-साथ नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रखना जरुरी है सप्त व्यसन त्याग और अष्ट मूल गुणों का पालन करना जीवन उन्नति बहुत आवश्यक है।
उक्त उदगार आर्यिका गुरुगति माताजी ने जी जैन धर्मशाला में चल रही सिद्ध चक्र महामंडल मैं अपने मंगल प्रवचन में अभिव्यक्त किये । इसके पूर्व प्रातः काल शांति धारा करने का सौभाग्य निर्मल कुमार, सुनील यशपाल, महेंद्र वेजिटेरियन परिवार एवं राजू नायक परिवार ने प्राप्त किया शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य डॉआर के जैन नै प्राप्त किया। विधान में रात्रि में महाआरती करने का सौभाग्यश्रेयांश पदम लहरी को प्राप्त हुआ विधान में 512 अर्ग एवं जबलपुर नाका मंदिर समिति की ओर से द्रव्य सामग्री समर्पित की गई। आर्यिका श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहां की संस्कार विहीन लक्ष्हीन शिक्षा कोई काम की नहीं है ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए जो की शांति का मार्ग प्रशस्त करें हिंसा से विश्व शांति संभव नहीं आज हिंसा की ज्वाला में सारा विश्व जल रहा इसे आचार्य श्री के द्वारा बताए गए अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही बदला जा सकता है शांति का मार्ग मिल सकता है आचार्य श्री का पुण तीर्थंकरों के समान है।

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