धार्मिक

समस्त जीवों के पास केवल व्यथा है। भगवान की कथा जीवन की व्यथा मिटा देती है : पंडित रेवाशंकर शास्त्री

सिलवानी। श्री ठाकुर बाबा सिद्धधाम नवदुर्गा कुटी गगनवाड़ा में हो रही भागवत कथा के पाचवे दिवस के उपलक्ष्य पर पंडित रेवा शंकर शास्त्री ने कहा कि राम कथा श्रवण से मिट जाते जन्म-जन्मांतर के पाप संसार में समस्त जीवों के पास केवल व्यथा है। भगवान की कथा जीवन की व्यथा मिटा देती है उक्त बातें कथा वाचक पंडित रेवाशंकर ने श्रद्धालुओं को भागवत कथा का रसपान कराते हुई कहीं उन्होंने कहा कि भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं यह समझना आवश्यक है कि भगवान की प्रेममयी भक्ति का आश्रय लिए बिना कल्याण हो पाना मुश्किल है और इसे प्राप्त करना ही भक्त ही सबसे बडी़ कठिनाई।
ग्राम गंगनवाड़ा चल रही श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन कथा बाचक पं रेवा शंकर शास्त्री ने कहा कि वास्तव में जीव को भक्त बनने के लिए 9 सीढियां चढ़नी होती हैं उनमें से भक्त ध्रुव, प्रहलाद, जड़ भरत आदि ने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भक्ति का मार्ग ही चयन किया। भक्ति का बहुत महत्व है भक्ति के महत्व को बताते हुए शिक्षा रूपी संसार में समाहित करते हुए कहा कि राक्षस कुल पैदा होने के बाद भी प्रहलाद भगवान के प्रिय हुए और भगवान को प्रसन्न उनके कृपा पात्र हुए। वास्तव में संस्कार ही जीव को सदमार्ग दिखाकर उसे महान बनाता है। वास्तव में भक्ति का जन्म जीवन और ईश्वर को जोड़ने के लिए हुआ है इसलिए हमें भक्तो के उदार जीवन का अनुसरण कर भागवत के चरित्रो को अपने जीवन में उतारना चाहिए। जिससे समाज और देश का कल्याण हो सके।
प्रभु भगवान की कथा बार-बार सुननी चाहिए। इससे हृदय का विकार दूर होता है। हमेशा अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए। कभी भी बेकार की बातें नहीं करनी चाहिए। जहां भगवान की चर्चा होती है वहां भगवान वास करते हैं। जहां भगवान का वास होता है, वहां दरिद्रता नहीं आती सात्विक भोजन भी करें। इससे शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।

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