क्राइम

वन विभाग के संरक्षण में धधक रहे ईट भट्टे, जंगल किनारे भट्टा लगाकर लूट रहे प्राकृतिक संपदा

रिपोर्टर : सतीश चौरसिया
उमरियापान ।
शासन की लाख कोशिशों के बावजूद भी भ्रष्टाचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है जबकि आये दिन सरकारी कर्मचारियों के टे्रप होने की खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं रहती है इसके बाद भी सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार करने के लिये नये-नये प्रयोग कर रहे है और अपने संरक्षण में प्राकृतिक संपदा का दोहन करवा रहे है।
उल्लेखनीय है कि ढीमरखेड़ा, उमरियापान के कई गांवों में जंगलों के पास में ही ईट भट्टा लगाने वालों की बाढ़ सी आ गई है और हर वर्ष भारी संख्या में ईट-भट्टों को अवैध रूप से लगाया जा रहा है। इस काम को उमरियापान वन मंडल में पदस्थ कुछ कर्मचारी-अधिकारी द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जंगल के पास भट्टा लगाने से भट्टा वालों को लड़की नहीं खरीदनी पड़ती और वन विभाग के तथाकथित कर्मचारियों के संरक्षण में आसानी से हरे-भरे वृक्षों का कत्लेआम कर दिया जाता है और कुछ दिनों पश्चात उसका उपयोग ईटों को पकाने में कर दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि यह वन विभाग को दिखता नहीं है बल्कि वन विभाग के संरक्षण में ही जंगलों से अवैध रूप से लकड़ी काटी जा रही है। उमरियापान के करौंदी अन्य क्षेत्रों में भारी संख्या में ईट भट्टे लगाने का प्रचलन बढ़ गया है जिसमें भट्टा लगाने वालों के द्वारा सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देकर आसानी से प्राकृतिक संपदा का दोहन किया जा रहा है। इसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को भी इसके बाद भी साहबों को इतना समय नहीं है कि फील्ड पर जाकर वस्तु स्थिति देखें। लिहाजा साहबों की निष्क्रियता के चलने यह धंधा जमकर फल-फूल रहा है और कभी कभार जांच भी की जाती है तो मामले को वहीं पर निपटा दिया जाता है।
नहीं लेते प्रदूषण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र
क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में ईट-भट्टे लग रहे है लेकिन शायद ही दो-चार लोगों के पास प्रदूषण विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र हो। ईट भट्टा लगाने वालों के द्वारा जानबूझकर प्रदूषण विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया जाता है। चूंकि प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिये शासन द्वारा कुछ राजस्व निर्धारित किया गया है। लिहाजा ईट भट्टा संचालकों द्वारा जानबूझकर शासन को राजस्व की हानि करवाई जाती है। वहीं दूसरी ओर प्रदूषण विभाग की टीम भी कभी मुआयना नहीं करती है जिस कारण से इन लोगों के हौसले और बुलंद हो जाते है। ग्रामीणों ने बताया कि भट्टों से निकलने वाले धुएं के कारण बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और जिन लोगों को सांस की बीमारी है उनके लिये और तकलीफदेह हो जाता है। चूंकि ईट पकाने के लिये लड़की, कोयला, धान की भूसी सहित अन्य सामग्रयियों का उपयोग किया जाता है जिससे इससे निकलने वाला धुंआ कई बीमारियों को जन्म देता है।

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