मध्य प्रदेश

फर्जी लोन मामले में अधिकारियों ने साधी चुप्पी

कलेक्टर जनसुनवाई में हुई थी जिर्री सरपंच की शिकायत
बैंक अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध

रिपोर्टर : सतीश चौरसिया, उमरिया पान
उमरियापान ।
आमजन की समस्याओं का जल्द से जल्द निराकरण हो इसके लिए राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक मंगलवार को जनसुनवाई का आयोजन किया जाता है। इसी तारतम्य में लोग अपनी पीड़ा उच्च अधिकारियों को बताते हैं लेकिन यदि उच्च अधिकारियों को भी अवगत कराने के बाद समस्या का निराकरण नहीं किया जाता है तो ऐसी जनसुनवाई का कोई औचित्य ही नहीं होता है।
स्मरण रहे कि दो माह पहले ढीमरखेड़ा के झिर्री गांव निवासी महिला कोसाबाई पति स्वर्गीय शिवसिंह ने कलेक्टर मिश्रा को बताया कि गांव के सरपंच ने पेंशन दिलाने के नाम पर उससे उसके आवश्यक दस्तावेज लिए थे। कुछ दिन बाद जब वह बैंक शाखा पैसे निकालने गई तो पता लगा कि उसके खाते में होल्ड लगा है। जानकारी लेने पर बैंक के अधिकारियों ने बताया कि उसके नाम पर लोन है। इस बात की जानकारी लेने जब वह सरपंच के पास गई तो सरपंच ने 4-5 दिन में पैसा खाते जमा करने की बात कही लेकिन आज तक उसके खाते में होल्ड ही लगा है और सरपंच से बात करने वह धमकी दे रहा है। कलेक्टर मिश्रा ने महिला की शिकायत लीड बैंक अधिकारी को सौंपकर शिकायत की जांच कर निराकरण कराने के निर्देश मौके पर ही दिए थे इसके बावजूद जिम्मेदारों ने आज दिनांक तक कोई उपरोक्त मामले में कोई कार्यवाही नहीं की।
सवालों के घेरे में बैंक प्रबंधन की भूमिका
छोटी-छोटी गलती पर खामी निकालने वाले बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों से इतनी बड़ी चूक कैसे हुई यह अपने आप में संदेश पैदा करता है और इससे यह बात भी प्रमाणित होती है जब कोसा बाई पति स्वर्गीय शिव सिंह ने किसी तरह के लोन के लिये आवेदन नहीं किया और न ही वह बैंक गई तो फिर उसके नाम से जिर्री सरपंच ने कैसे लोन निकाला । यह असानी से समझा जा सकता है कि उपरोक्त मामले में बैंक प्रबंधन की भूमिका सवालों के घेरे में है चूंकि जब संबंधित महिला ने सरपंच को पेंशन चालू करने के लिये अपनी महत्वपूर्ण दस्तावेज दिये थे जिनका उपयोग जिर्री सरपंच पति द्वारा अनाधिकृत रुप से बैंक अधिकारियों से सांठगांठ करके उक्त महिला के नाम से लोन निकलवा लिया। वहीं जब मामले की पोल खुली तब उक्त तथाकथित सरपंच द्वारा यह कहा जाने लगा कि 4 से 5 दिन के अंदर हम आपका पैसा दे देंगे।
सरपंच पर मामला होना था दर्ज
जिस तरह से कूटरचना कर एवं किसी अन्य के नाम से जिर्री सरपंच द्वारा लोन लिया गया उक्त कार्य भारतीय दंड विधान की धारा 420, ,467, 468 एवं 471 के अंतर्गत दोषी है और बैंक प्रबंधन का यह नैतिक कर्तव्य था कि वह इस तरह का कार्य करने वाले जिर्री सरपंच पर मामला दर्ज कराये लेकिन चूंकि बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों के हाथ खुद भ्रष्टाचार के रंग में रखे है। लिहाजा उन्होने ऐसा करना उचित नहीं समझा और उपरोक्त मामले में पर्दा डालने का प्रयास किया गया।

Related Articles

Back to top button