संपूर्ण भारतवर्ष का परिचय श्री राम के बिना अधूरा है : जगदगुरू रामस्वरूपाचार्य महाराज
मर्यादा युक्त जीवन जीने की शिक्षा देता है, रामचरितमानस
राष्ट्र भक्ति ही राम भक्ति है। राम और राष्ट्र एक दूसरे के पूरक है। संपूर्ण भारत वर्ष का परिचय श्रीराम के बगैर अधूरा है
श्रीराम कथा तृतीय दिवस
सिलवानी । नगर के हेलीपैड ग्राउंड में पांच दिवसीय रामचरित मानस कथा का विराट आयोजन किया जा रहा है। जिसमें तृतीय दिवस पर जगद्गुरु रामस्वरूपाचार्य कहा कि हमारे जीवन में मर्यादा से जीवन यापन करने की जो शिक्षा है, वह हमें रामचरितमानस से प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में समस्त पात्र अपनी अपनी मर्यादाओं का पूर्ण विवेक के साथ पालन करते हैं।
दूसरी ओर भगवान राम ने अपनी पूर्ण मर्यादा का पालन करते हुए पिता के वचन का निर्वाह करने के लिए, वन में चौदह वर्ष तक निवास करना स्वीकार किया । दूसरी और भरत का मर्यादा पालन बहुत अनुकरणीय है, उन्होंने अपने भ्रात प्रेम के वशीभूत होकर, उनको मिला हुआ राज्य स्वीकार न करके, केवल राज्य संचालन का सामान्य भार स्वीकार किया ,एवं चौदह वर्ष के उपरांत प्रभु श्री राम को राज्य हस्तांतरित कर दिया। श्री हनुमान जी अपनी समस्त मर्यादाओं का भली- भांति पालन करते हुए, उन्हें कभी कर्ता का अभिमान नहीं होता है, और अपने को सामान्य सेवक निरूपित करते हैं। अनेक पात्रों के मर्यादित आचरण के माध्यम से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करता है। जिससे कि उसे सर्वथा मर्यादा से जीवन जीने की शिक्षा जीवन में प्राप्त होती है।
रामचरितमानस की मर्यादा सदैव अनुकरणीय है। इसीलिए रामचरित मानस को एक समग्र जीवन दर्शन के रूप में निरूपित किया जाता है,जिससे कि मानव सामान्य से सामान्य शिक्षाओं को प्राप्त करके, अपने जीवन को उत्कृष्ट बना सकता है। रामायण की मर्यादा, अनुशासन सदैव अनुकरणीय है, जो कि हमारी भारतीय परंपरा का एक दिव्य उदाहरण है
संपूर्ण भारतवर्ष का परिचय श्री राम के बिना अधूरा है जगद्गुरु रामस्वरूपाचार्य महाराज
राष्ट्र भक्ति ही राम भक्ति है। राम और राष्ट्र एक दूसरे के पूरक है। संपूर्ण भारत वर्ष का परिचय श्रीराम के बगैर अधूरा है। यह उद्गार जगद्गुरु रामस्वरूपाचार्य महाराज ने व्यक्त किए। वह नगर के हेलीपैड ग्राउंड में चल रही श्री रामचरितमानस कथा के तृतीय दिवस उपस्थित श्रद्वालुओं को सबोधित कर रहे थे। संतो की वाणी का रसा स्वदन करने बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुंच रहे है।
उन्होंने कहा कि जब श्री हनुमान जी महाराज श्री सीता जी की खोज करने के लिएए समुद्र तट पर विराजमान हैं और श्री जामवंत जी के द्वारा प्राप्त प्रेरणाओं के माध्यम से उन्होंने विराट स्वरूप धारण किया हैए एवं श्री जामवंत से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं कि आप मुझे मार्गदर्शन कीजिए कि मेरा जो अवतरण है राम काज के लिए ही हुआ है । राम काज तव लगि अवतारा।और दूसरे अवसर पर उनके कथन हैं राम काज किन्हें बिन मोहिं कहां विश्राम। हनुमान महाराज ने अपना जीवन राम काज के लिए संपूर्ण रूप से समर्पित किया है।उन्होने बताया कि हनुमान जी राम काज के लिए सदैव तत्पर रहते हैं हनुमान से प्रेरणा हमें लेना चाहिए किए जब संपूर्ण राष्ट्र ही राममय है और संपूर्ण राष्ट्र में राम समाए हुए हैं एतो राष्ट्र कार्य के लिए हमें सदैव समर्पित रहना चाहिए। राष्ट्र रक्षा से बढ़कर कोई संकल्प नहीं हो सकता । जो व्यक्ति राष्ट्र सेवा राष्ट्र रक्षा में संलग्न हैं वह भी परोक्ष रूप से राम काज में संलग्न हैं। इस बात का हमें विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ।
उन्होने कहा कि संपूर्ण जीव चराचर मेंए संपूर्ण जगत में वही परमात्मा शक्ति समाहित है उसी शक्ति को सर्व रूप से प्रत्यक्ष मानकर सेवा सुरक्षा में स्वयं को संलग्न करना ही राष्ट्रभक्ति है। जोकि राम भक्ति का पर्याय है । आगे डॉ उपाध्याय जी ने राम कथा की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि राम कथा का श्रवण करते करते व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता है । उसके जीवन में इससे कभी तृप्ता का भाव जागृत नहीं होता है । इसलिए रामकथा का आयोजन बार.बार होता है यह रामकथा रूपी दृढ़ नाव हमें भवसागर से पार ले जाती है ।
जिनके भाग्य में परमात्मा की कृपा है और पूर्व जन्मों के कर्मो का उदय से ही मानव रामकथा श्रवण कर सकता है : श्री 1008 मानस रत्न श्री अशोक दास जी रामायणी
रामायण श्रवण करने के लिए बहुत ही ध्यान एवं बुद्धि की आवश्यकता हैं।यदि आत्मा को परमात्मा से मिलना है और भगवान का वास्तविक तत्व जानना है तो रामकथा सहित भगवान की कथा सुनना पड़ेगी,कथाएं एवं सत्यसंग ही सिर्फ मनुष्य को सीधा भगवान के धाम ले जा सकती है। जगतगुरु रामस्वरूपाचार्य श्री कहते हैं कि रामकथा के श्रवण से हमारे कल्पकलापन्तर जन्म जन्मजन्मांतर के पापों का नष्ट हो जाते है। श्री शास्त्रों में पुराणों में मनुष्य के जीवन मरण का वास्तिवक तत्व हैं। कर्म बड़े सोच समझ कर करना चाइये नही तो जीव आत्मा को बड़ा कष्ट होता है एवं बड़ी विरलता से भोगना पड़ता है। एवं मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म तो भोगना ही पड़ेगा परमात्मा सब देख रहा है। मानव को जीवन रहित सभी पापों का निवारण कर लेना चाइये, यदि व्यक्ति पापों का प्रष्चित नही करता तो जीव आत्मा को लाखों अरबो बर्षो तक पाप की आग में तपना पड़ता है। कथा के तत्व को समझो मानव जीवन मिला है।कथाएं,पुराण श्रवण करे, विना सत्यसंग के बुद्धि प्राप्त नही होगी, इसलिए बुद्धि परमात्मा में लगायो।
सत्य सिर्फ परमात्मा हैं। कथाएं मनोरंजन के लिए नही होती कथाएं आत्मरंजन के लिए होती है। मानव का कल्याण सिर्फ भगवान की भक्ति में, संसार की मोह माया में नही : राष्ट्रीय संत पं.अभिषेक कृष्ण शास्त्री
भगवान की भक्ति, मानव का सत कर्म ही धर्म है।धर्म की क्रिया में कष्ट जरूर होता हैं।पर परिणाम मीठा होते हैं भारत राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित गोल्ड मेडलिस्ट राष्ट्रीय संत पं.अभिषेक कृष्ण शास्त्री
रामायण मृत्युलोक के साथ परलोक सुधारने की विधि है रामचरितमानस शास्त्र हमें संस्कार और मर्यादा में रहना सिखाता है मनुष्य के जीवन में संस्कारों से ही सुख शांति समृद्धि ऐश्वर्य का उदय होता है
संस्कारवान व्यक्ति भगवान और संतों की असीम कृपा से भक्त भगवान को पा लेता है रामकथा के तृतीय दिवस के अवसर पर वृंदावन धाम से पधारे भारत राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित गोल्ड मेडलिस्ट राष्ट्रीय संत पं.अभिषेक कृष्ण शास्त्री जी द्वारा राम कथा का भक्तों को रामचरित मानस का दिव्य रस पान कराया
श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुये कहा कि रामचरित मानस हमे सत्य बोलने धर्म पर चलने का सही रास्ता दिखाती है मानव अपनी दिनचर्या ही सुधार ले तो भी पुण्य का भागी होगा, खाने, पीने, सोने उठने, बैठने,-सब का नियम है। दिनचर्या में नियमिति करन लाएं धर्म है रामचरितमानस शास्त्र कहता है एक पहर रात्रि के बाद भोजन नही करना चाइये, ब्रह्म महूर्त में जागकर सूर्य नारयण के दर्शन पूजन करना चाहिये भगवान का स्मरण करना चाहिये जब ही परमात्मा की कृपा होती है, पंडित अभिषेक शास्त्री ने कहा कि माता पिता की जिम्मेदारी हैं। पुत्रो को संस्कार दे, किस समय संध्या भजन, पूजन करें, मानव वर्तमान परिवेश में अपने समय का दुरुपयोग कर रहा हैं। इसलिए स्वीकृति अपने नियम बदल रही है इसी कारण विपरीत प्रभाव पड़ रहे हैं। शास्त्र के अनुसार धर्म करोगे तो पुण्य प्राप्त होता हैं। पुण्य प्राप्त होने से जीवन सरल हो जाता हैं। सत्य की पहचान करो उसे मानो, शास्त्र की कथाएँ भगवान के चरण पकड़ो सत्य सिर्फ परमात्मा हैं। कथाएं मनोरंजन के लिए नही होती कथाएं आत्मरंजन के लिए होती है। मानव का कल्याण सिर्फ भगवान की भक्ति में, संसार की मोह माया में नही, बर्ष बीत जाएंगे पता भी नही चलेगा, इसलिए अभी भी मौका हैं, प्रभु भक्ति का।
पंडित अभिषेक शास्त्री कहते हैं। परलोक में सिर्फ मानव के कर्म जाएंगे, कर्म सुधारो, कर्म करने से पहले विचार करें, पाप भोगना पड़ेगा, परम सत्य मृत्यु हैं। और मानव का सत्य सिर्फ भगवान की भक्ति, मानव का सत कर्म ही धर्म है। धर्म की क्रिया में कष्ट जरूर होता हैं। पर परिणाम मीठा होते हैं।। समय से पहले, दान धर्म ,भजन करें, भजन के विना जीवन निकल गया तो कई जन्म बिगड़ जाएंगे। नित्य भजन करें, वेदों में लिखा हैं। जहां भगवान की कथा होति है वहाँ अदृश्य रूप में देवी, देवता निवास करते है। भगवान की कथा चिंत मन से कथा श्रवण करें भगवान की कथा अमृत है ये संसार आपत्तियों का विशाल घर हैं। असत्य व्यक्ति कभी पुण्य प्राप्त नही कर सकता, ओर सत्य बोलने वाला व्यक्ति यश प्राप्त करता हैं। श्री राम चरित मानस ही सारे ग्रंथों का सार है रामचरितमानस पढ़ने मात्र से पुण्य ओर संस्कार प्राप्त होते है।
श्रीराम कथा मंच संचालक नगर खेड़ापति पण्डित नरेश शास्त्री ने कहा कि मनुष्य का जब से जन्म हुआ है उसी समय से तीन बाण लगे हैं मृत्यु बाण, दु:ख बाण, अज्ञान बाण । इन तीन बातों से मुक्त होकर ही मनुष्य निर्वाण को प्राप्त होता है। निर्वाण प्राप्ति केवल सत्संग से भगवत स्मरण से संतो के आशीष से प्राप्त होती है। उन्होंने रामायण के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से धर्म कर्म के मर्म की व्याख्या की। कथा 22 दिसम्बर तक दोपहर 1 बजे से सायं 5 बजे तक सम्पन्न होगी।

