रमा एकादशी पर बन रहे हैं दो शुभ योग, जानें किस दिन किया जाएगा व्रत और पूजा विधि

Astologar Gopi Ram : आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
जय श्री Զเधॆ कृष्णा
🚩 रमा एकादशी पर बन रहे हैं दो शुभ योग, जानें किस दिन किया जाएगा व्रत और पूजा विधि
🔘 HEADLINES
▪️ *एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होता है। ▪️ *इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति की जाती है।
▪️ भगवान विष्णु की पूजा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
👉🏼 हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यंत विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा का विधान होता है। यह एकादशी विशेष मानी जाती है क्योंकि यह धनतेरस से ठीक दो दिन पहले पड़ती है। इसे रम्भा एकादशी या कार्तिक कृष्ण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।आइए जानते हैं आचार्य श्री गोपी राम से रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पारण का समय, पूजा विधि, मंत्र और आरती…
⚛️ रमा एकादशी शुभ मुहूर्त….
आचार्य श्री गोपी राम के अनुसार, इस साल रमा एकादशी 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि 16 अक्टूबर की सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरु होकर 17 अक्टूबर की सुबह 11 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 17 अक्टूबर को रखा जाएगा। वहीं, रमा एकादशी का पारण शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को किया जाएगा। पारण का शुभ समय सुबह 6 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
⚛️ रमा एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त और पारण समय
◼️ *रमा एकादशी शुक्रवार, 17 अक्टूबर, 2025 को ◼️ *एकादशी तिथि प्रारम्भ- 16 अक्टूबर, 2025 को 10:35 ए एम बजे
◼️ *एकादशी तिथि समाप्त- 17 अक्टूबर, 2025 को 11:12 ए एम पर। 🌊 *रमा एकादशी पारण समय*
▪️ *पारण (व्रत तोड़ने का) समय- 18 अक्टूबर को 06:24 ए एम से 08:41 ए एम पर। ▪️ *पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय- 12:18 पी एम पी।
✡️ रमा एकादशी पर महासंयोग
इस साल रमा एकादशी के दिन महासंयोग बन रहा है। इस शुभ अवसर पर आत्मा के कारक सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे। सूर्य देव रमा एकादशी यानी 17 अक्टूबर को कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में गोचर करेंगे। सूर्य देव के कन्या राशि में गोचर करने की तिथि पर तुला संक्रांति मनाई जाएगी।
🙇🏻 रमा एकादशी व्रत की पूजा विधि
दशमी तिथि पर तैयारी- सूर्यास्त के बाद अन्न-जल त्याग: दशमी की शाम को सूर्यास्त से पहले केवल सात्विक भोजन करें। सूर्यास्त के बाद भोजन (अन्न) ग्रहण न करें।
व्रत का संकल्प: रात को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लें।
एकादशी तिथि पर पूजा- प्रातःकाल स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ और पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु का स्मरण करें और श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल की स्थापना: पूजा के स्थान को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु (या उनके वामन रूप) और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
अभिषेक और श्रृंगार: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और पीले फूल या गेंदे की माला अर्पित करें।
पूजन सामग्री: धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। भोग में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें।
मंत्र जाप और पाठ: घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
विष्णु मंत्र: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
लक्ष्मी मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें या 12वें अध्याय का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
रात्रि जागरण: दिनभर यथाशक्ति निराहार/फलाहार व्रत रखें। रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और जागरण करें।
कथा श्रवण: पूजा के अंत में रमा एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें।
💁🏻♀️ रमा एकादशी का महत्व_
शास्त्रों के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को हजार अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्त होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी पापों का नाश होता है। रमा एकादशी के दिन अनाज, प्याज, लहसुन और सरसों के तेज का सेवन वर्जित होता है। दिन भर व्रत रखकर महिलाएं शाम को भगवान विष्णु की पूजा करती हैं और रमा एकादशी की कथा सुनती है। अगले दिन शुभ मुहूर्त में जल अर्पित कर व्रत खोला जाता है।
📖 रमा एकादशी व्रत की सम्पूर्ण कथा
प्राचीन समय में मुचकुंद नाम का दानी और धर्मात्मा राजा राज्य करता था,वह भगवान विष्णु का परम भक्त था, इसलिए वह और उसकी समस्त प्रजा एकादशी व्रत करती थी।उसकी कन्या चन्द्रभागा विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ जो राजा मुचकुंद के साथ ही रहता था।एकादशी के दिन सभी के साथ-साथ शोभन ने भी व्रत किया, परन्तु उससे भूख सहन नहीं हुई और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ।
एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचेचंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई।
चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया। तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।


