ग्रामीण क्षेत्रों में जीविकोपार्जन का मुख्य जरिया बन गया है महुआ

अल सुबह जंगलों की ओर महुआ बीनने निकल जाते गरीब मजदूर परिवार
रिपोर्टर : शिवलाल यादव
रायसेन । जिले के आदिवासी दलित बहुल गांवों में महुआ लोगों के पेट पालने का जरिया बना हुआ है। जिले के रायसेन, गढ़ी, गैरतगंज, बेगमगंज, सिलवानी, गौहरगंज तहसील के दलित आदिवासी गरीब परिवार हर साल जंगलों से महुआ बीनने का काम करते हैं। अलसुबह से उक्त गरीब मजदूर परिवार जंगलों में रवाना हो जाता है। जंगल क्षेत्रों से महुआ बीनकर लाते हैं।उसे घर आंगन छतों पर सुखाने का काम कर रहे हैं।
मार्च-अप्रैल में गिरता है महुआ…
जिले के वनांचल एवं ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ का पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। मार्च अप्रैल के महीने में जमकर महुआ गिरता है और ग्रामीण महुआ बीनने में जुट जाते हैं। हालांकि इस बार मार्च महीने में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि होने की वजह से महुआ के पैदावार पर असर पड़ा है। यहां के श्रमिक बाहर काम करने जाते हैं, वह भी महुआ के सीजन में वापस गांव लौट आते हैं और महुआ बीनते हैं।
जीविकोपार्जन का जरिया बना महुआ…
रायसेन के वनांचल ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग इन दिनों सुबह से ही अपने पूरे परिवार के साथ महुआ बीनने निकल जाते हैं। बच्चे-बूढ़े, महिलाएं युवा सभी मिलकर महुआ बीनते हैं। गांव में महुआ जीविकोपार्जन का प्रमुख जरिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग महुआ को बेचकर अपनी घर की छोटी जरूरतों को पूरा करते हैं। इस तरह महुआ ने वनांचल क्षेत्रों में लोगों के चेहरों पर खुशी बिखेर दी है। हालांकि मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण महुआ के पैदावार पर असर पड़ा है। जिले के वनांचल एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए महुआ इन दिनों आमदनी का जरिया बना हुआ है। महुआ को बेचकर अपनी जरूरत के सामान खरीदते हैं। सुबह महुआ बीनने के बाद अपने घरों में ले जाकर सुखाते हैं। सूखने के बाद बेचकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं, आमदनी का अतिरिक्त जरिया बन गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी मिलकर महुआ बीनने का काम करते हैं। सुबह से ही टोकरी लेकर जंगल की तरफ महुआ बीनने निकल पड़ते हैं और दोपहर तक महुआ बीनते हैं। इन दिनों ज्यादा महुआ बीनने की होड़ ग्रामीणों के बीच लगी रहती है। यहां के जंगलों में महुआ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।