मध्य प्रदेश

स्वर्गीय हाफिज इदरीस खां को शिद्दत से किया याद

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना हमीं सो गए दास्तां कहते कहते”
जी हां हम बात कर रहे हैं उस अज़ीम हसती की जिन्होंने न सिर्फ मदरसा मिस्बाह उल उलूम मैं उस्ताद की हैसियत से तुलवा के सीने में रब के कलाम को महफूज़ कराते हुए हाफिज़े कुरआन बनाया वही मरकज़ वाली मस्जिद रंगरेजान में पेश इमाम भी रहे मरहूम हाफिज़ मोहम्मद इदरीस रह. की जिनके वालिद बुजुर्गबार मरहूम हाजी नज़ीर रह. का मरकज़ मस्जिद की तामीर में अहम किरदार रहा और मस्जिद के मोअज्जिन भी रहे।
हाफिज़ जी हम सभी को छोड़कर करीब 8 साल पहले 9 मई 2016 को अपने मालिके हक़ीकी से जा मिले।
उक्त बात उनकी आठवीं बरसी पर उनके साथी हाफिज मो. इलयास खां ने उन्हें शिद्दत से याद करते हुए व्यक्त किए।
उनके सागिर्द हाफिज मो. मतीन खान ने बताया कि आपके बेशुमार शार्गिद आज भी मुख्तलिफ इलाकों में मदारिस मसाजिद में अपनी खिदमात अंजाम दे रहे हैं। अल्लाह तआला से दुआ है कि मरहूम हाफिज़ इदरीस खां की कब्र को नूर से मुनव्वर फरमाए और जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता करें। किसी शायर ने क्या खूब कहा है “मर कर भी किसी को याद आएंगे ,किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे, कहेगा फूल हर कली से बार-बार, जीना इसी का नाम है”
बेशक आज भी हाफिज साहब लोगों के दिलों में जिंदा हैं। आप एक अच्छे आमिल भी थे, आयते करीमा के वज़ीफे आपकी ज़ेरे निगरानी में होते रहे आपके दुनिया से पर्दा फरमाने के बाद अब उसका कोई जिम्मेदार नहीं बचा है, दूर-दूर से लोग अपने बिगड़े काम बनवाने के लिए वज़ीफे की इज्तिमाई दुआ के लिए दौड़े चले आते थे और खुदा अपने कलाम की बरकत से उनके काम भी बनाता था।
यह शेर आपकी सलाहियतो पर फिट बैठता है:” नहीं ग़म जुल्मतों का नूर का सामान रखते हैं, निहा खाने में दिल के शम्मए कुरआन रखते हैं, जमाने में हम अपनी एक अलग पहचान रखते हैं, खुदा के आखिरी पैग़ाम पर ईमान रखते हैं” बेशक आपकी एक पहचान अलग ही थी सभी से मुस्कुरा कर मिलना, अपने से बड़ों का अदब करना, छोटो पर शफकत करना, और बुजुर्गों का एहतराम करना आपकी आदत में शामिल था खुदा आपका नेयमल बदल अता फरमाए आमीन।
इस मौके पर आपके परिवार और मिलने वालों ने आपको शिद्दत से याद करते हुए आपके लिए जन्नत में दरजत बुलंद करने की दुआ फरमाई।

Related Articles

Back to top button