आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कब से है शुरू? जानें क्या है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

Astologar Gopi Ram : आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
◈〣• जय माता दी •❥〣◈
🔮 आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कब से है शुरू? जानें क्या है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि
🔘 HIGHLIGHTS
▪️ गुप्त नवरात्र देवी मां दु्र्गा को समर्पित है।
▪️ इस दौरान मां दुर्गा की पूजा की जाती है।
▪️ मां दुर्गा की पूजा से संकटों का नाश होता है।
▪️ गुप्त नवरात्रि 26 जून से शुरू होगी.
▪️ गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है.
👣 आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं, गुप्त नवरात्रि में देवी की दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इस दौरान तांत्रिक, अघोरी तंत्र मंत्र और सिद्धि प्राप्त करते हैं। ऐसे में गुप्त नवरात्रि का महत्व बहुत विशेष होता है। इस दौरान देवी की साधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती है। आइए विस्तार से जानें आचार्य श्री गोपी राम से कि गुप्त नवरात्रि शुरू होने की तिथि, नियम और महत्व…
🧉 कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
गुप्त नवरात्रि गुरुवार से प्रतिपदा तिथि से शुरू हो रही है। नवरात्रि की शुरुआत में सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 8:46 से 27 तारीख प्रातः 5:31 मिनट तक रहेगा। इस योग में किए गए कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। गुप्त नवरात्रि घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 9:09 मिनट से 11:00 बजकर 34 मिनट तक अति शुभ समय रहेगा। इसके अलावा सुबह 11:34 मिनट से दोपहर 1:24 मिनट तक शुभ समय रहेगा।
👉🏼 प्रतिपदा तिथि की शुरुआत- 26 जून, गुरुवार को सूर्योदय के पूर्व से ही प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी।
👉🏼 प्रतिपदा तिथि का समापन- 26 जून को दोपहर के समय 1 बजकर 25 मिनट पर इसका समापन होगा।
⚛️ शुभ योग
गुप्त नवरात्र के पहले दिन यानी घटस्थापना तिथि पर ध्रुव योग का संयोग बन रहा है. इसके साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग का भी संयोग है. इन योग में मां दुर्गा की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी. साथ ही जीवन में सुखों का आगमन होगा.
☄️ ध्रुव योगः रात 11:40 बजे तक
🌟 सर्वार्थ सिद्धि योगः सुबह 08:46 बजे से 27 जून को सुबह 05:35 बजे तक
📖 आषाढ़ गुप्त नवरात्रि पूजा विधि
▫️ एक चौकी पर लाल कपड़ा या पीला कपड़ा बिछाकर देवी मां की मूर्ति रखें.
▫️ चौकी घर के उत्तर पूर्व, पूर्व मध्य, उत्तर मध्य में लगाएं.
▫️ अब कलश को लेकर उस पर श्रीफल पर मौली लपेटकर उसे कलश पर स्थापित करिए.
▫️ कलश में शुद्ध जल और गंगाजल भरें, अब उसमें बतासे, दूर्वा साबुत हल्दी की गांठ, साबुत सुपारी डालिए.
▫️ इसके बाद कलश के चारों और आम या अशोक के पत्ते 7 या 11 पत्ते लगाएं.
▫️ अब मध्य में श्रीफल को रखें.
▫️ अब आप गणेश जी, कुलदेवी, नव ग्रह आदि को छोटी-छोटी चावल की ढेरी के रूप में स्थापित करें.
▫️ अब आप 9 दिन तक देवी जी की पूजा करें. हर दिन आप देवी मां की आरती करें.
▫️ जल, रोली, चावल, लौंग , गूगल, प्रसाद फल, फूल माला ,धूप, दीपक जलाकर आरती करनी चाहिए.
▫️ प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती पाठ, देवी आराधना, देवी मंत्र जाप, 24 हजार गायत्री मंत्र जाप करें.
▫️ कुशा या ऊन के बने आसन पर बैठकर पूर्व या उत्तर मुख हो कर पूजा करें
▫️ गुप्त नवरात्र में की गई साधना सैकड़ों गुणा पुण्य देने वाली होती है.
🗣️ गुप्त नवरात्रि की पौराणिक कथा
गुप्त नवरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा देवी भागवत पुराण से संबंधित है। इस कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु अपने शयनकाल (चातुर्मास) में होते हैं, तब पृथ्वी पर रुद्र, वरुण, यम आदि देवताओं का प्रकोप बढ़ जाता है। इस दौरान राक्षसी शक्तियां भी सक्रिय हो जाती हैं, जिससे मानव जीवन में विपत्तियां आती हैं। इन विपत्तियों से बचाव के लिए मां दुर्गा की गुप्त साधना की जाती है।
एक और पौराणिक कथा मां छिन्नमस्ता से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार मां पार्वती अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान कर रही थीं। उनकी सखियां भूख से व्याकुल हो गईं। उनकी भूख शांत करने के लिए मां ने अपने सिर को काटकर रक्त की धारा प्रवाहित की, जिसे सखियों ने ग्रहण किया। इस रूप में मां छिन्नमस्ता की पूजा गुप्त नवरात्रि के छठे दिन विशेष रूप से की जाती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में, एक महान तपस्वी साधक थे, जिनका नाम था ऋषि कात्यायन। वे मां भगवती के परम भक्त थे और उनकी इच्छा थी कि वे मां की सभी शक्तियों को समझें और उनकी कृपा से सिद्धि प्राप्त करें। एक बार, ऋषि कात्यायन ने गहन तपस्या की और मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए माघ महीने में नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने अपने दस महाविद्या स्वरूपों में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। प्रत्येक महाविद्या ने ऋषि को एक विशेष शक्ति और ज्ञान प्रदान किया।
🤷🏻♀️ गुप्त नवरात्रि का महत्व
गुप्त नवरात्रि का नाम ही इसकी गोपनीयता को दर्शाता है। यह पर्व उन साधकों के लिए विशेष है जो गुप्त रूप से मां दुर्गा की साधना करते हैं। सामान्य नवरात्रियों में जहां मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है, वहीं गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की आराधना की जाती है। ये महाविद्याएं शक्ति के विभिन्न रूप हैं, जो जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने और सिद्धियां प्रदान करने में सक्षम मानी जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुप्त नवरात्रि में की गई साधना अत्यंत फलदायी होती है। यह समय कुंडली के दोष, ग्रह बाधाएं और तंत्र-मंत्र की बाधाओं को दूर करने के लिए आदर्श माना जाता है। विशेष रूप से तांत्रिक, अघोरी और साधक इस दौरान कठिन नियमों का पालन कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति के लिए साधना करते हैं। हालांकि, गृहस्थ जीवन जीने वाले भक्त भी सामान्य पूजा-अर्चना कर मां की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
गुप्त नवरात्रि का एक अन्य नाम ‘गायत्री नवरात्रि’ भी है, क्योंकि इस दौरान गायत्री मंत्र की साधना विशेष फलदायी मानी जाती है। यह पर्व उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।


