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हाईकोर्ट गैर समझौते वाले आपराधिक मामले को आरोप सिद्ध होने के बाद भी रद्द कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

संकलन-एडवोकेट आदित्य रघुवंशी (धर्मेंद्र)
जिला एवं सत्र न्यायालय भोपाल

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिका संख्या CRIMINAL APPEAL NO. 1489 of 2012 को निस्तारित करते हुए 29/9/2021 को अपने आदेश में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता के धारा 482 में हाईकोर्ट गैर समझौते वाले आपराधिक मामले को आरोप सिद्ध होने के बाद भी रद्द कर सकता हैः सुप्रीम कोर्ट
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करके आपराधिक कार्यवाही रद्द कर सकते है चाहे अपराध की प्रकृति और पक्षों के मध्य विवाद स्वेच्छा निपटान को ध्यान में रखते हुए गैर समझौते वाल ही हो। गैर समझौते वाला अपराध वह होता है, जिसे किसी भी समझौते के तहत कोर्ट के बाहर कम या क्षमा नही किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि सजा न्याय देने का एकमात्र रूप नही है, कहा संविधान के आर्टिकल 482 के तहत हाई कोर्ट में निहित या 142 में सुप्रीम कोर्ट में निहित असाधारण शक्ति का प्रयोग दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 की सीमाओं से बाहर जाकर किया जा सकता है।
चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी की पीठ ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के संदर्भ में व्यापक आयाम की ऐसी शक्तियों का बहुत सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिये। पीठ ने मध्यप्रदेश और कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेशों से उत्पन्न दो अलग अलग अपीलों पर यह व्यवस्था दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सच है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 के तहत अपनी शक्तियों के कथित प्रयोग में आपराधिक कोर्ट द्वारा गैर समझौते वाले अपराध को क्षमा नही किया जा सकता और कोर्ट द्वारा ऐसा कोई भी प्रयास प्राविधान में संशोधन के समान होगा जो पूरी तरह से विधायिका का अधिकार क्षेत्र है।
पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत प्राप्त विशेष अधिकार में किसी अपराध के समझौते के सीमित अधिकार में लाने पर कोई रोक नही है। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट किसी मामले विशेष के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने और न्याय के हित में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 का प्रयोग कर सकते है।

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