भगवान पर अटूट विश्वास होना चाहिए, यदि अटूट विश्वास है तो भगवान हर स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं : चंद्रगोपाल पौराणिक

श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनकर श्रद्धालु हुए भाव-विभोर
ब्यूरो चीफ : भगवत सिंह लोधी
दमोह। दमोह के मांगज वार्ड नंबर 04 सरदार वल्लभ भाई पटेल रेलवे ओवरब्रिज के पास दमोह के प्रसिद्ध कथा वाचक नगर पुरोहित कथा व्यास आचार्य पंडित चंद्र गोपाल पौराणिक जी (बड़े महाराज) जी के मुखारविंद से चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा मे श्रीकृष्ण-रुक्मणी के विवाह, सुदामा चरित्र एवं परीक्षित मोक्ष की कथा का वर्णन किया। श्रीकृष्ण के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ। रुक्मणी को हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं।और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती हैं। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो बहुत प्रभावित हुईं और मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया।रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। इसीलिए श्रीकृष्ण ने हरण कर रुक्मणी से विवाह किया।कार्यक्रम के दौरान कलाकारों द्वारा कृष्ण-रुक्मणी विवाह से जुड़ी मनोहारी झांकी प्रस्तुत की गई। जिसे देख पूरा पंडाल श्रीकृष्ण के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। भजन गीतों से सुरों में सभी श्रोता झूमने लगे। कथा व्यास आचार्य पंडित चंद्र गोपाल पौराणिक जी (बड़े महाराज) ने कहा कि भगवान पर अटूट विश्वास होना चाहिए, यदि अटूट विश्वास है तो भगवान हर स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। तदोपरांत सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सुदामा जी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते। गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश है। उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते । मित्र की महिमा बताते हुए महंतजी ने बताया कि “जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी। निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दु:ख रज मेरु समाना ।। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सुदामा जी को सिंहासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। इस लिए कहा गया है कि जब जब भक्तों पर विपदा आई है प्रभु उनका तारण करने जरुर आए हैं। अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है।
श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का सौभाग्य ममता/ प्रेमनारायण चौबे परिवार को प्राप्त हुआ।
श्रीकृष्ण और रूक्मिणी विवाह के प्रसंग पर श्रद्धालु भक्ति में लीन होकर जमकर झूमे। एक-दूसरे को श्रीकृष्ण और रूक्मिणी विवाह की बधाईयां देकर श्रद्धालुओं ने फूल बरसाए।
कथा में प्रमुख रूप से कथा श्रवण करने वालों में ममता/ प्रेमनारायण चौबे दिनेश चौबे, भाजपा युवा नेता मोंटी रैकवार, पार्षद संजू पटेल, प्रकाश पटेल,राजू चौबे, संजू चौबे, राजेश चौबे, गोविन्द पटेल,गुड्डा पटेल, जितेंद्र पटेल
सहित हजारों भक्त जनों ने पहुंचकर व्यासपीठ की पूजन कर महाराज जी का आशीर्वाद लेकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया।