कुसमी के मढा व डूमर के पाताल भैरवी हनुमान मंदिर आस्था का अद्भुत संगम

हनुमान जी जन्मोत्सव पर लगता है आस्था का मेला
ब्यूरो चीफ : भगवत सिंह लोधी
दमोह । जनपद जबेरा के कुसमी मानगढ़ का हनुमान मंदिर सहित देवतरा कुढी की गुफा समाधिनील संत देवतरा वाले दादा जी की निर्माण स्थली आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था के दर्शनीय स्थलों के रूप में पहचान बनाए हुए है। पुरातन कालीन मढा मंदिरों के खंडहरों का जीर्णोद्धार करके दर्शनीय स्थलों के रुप में विकसित करने वाले 1990 के दौर में समाधिलीन संत ओंकारगिरी देवतरा वाले दादा ने बिखरी पडी़ पुरातत्व महत्व की अनेकों प्रतिमाओं को खंडहर मठ का जीर्णोद्धार 1981 में मंदिर में संरक्षित करते हुए किया गया था।
मंदिर के अंदर दिव्य हनुमान जी प्रतिमाएं हैं जिनके दर्शनों के लिए हर मंगलवार लोगों की भारी भीड़ रहती है। वैसे तो इस दर्शनीय स्थल को आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है गोविंद तिवारी बताते है कि समाधिलीन संत देवतरा वाले दादा के द्वारा 1967 में अनेकों दुर्गम गुफाओं में अपना निवास स्थल बनाया। जिसमें शून्य नदी के तट पर शेर की गुफा में देवतरा कुटी वनाकर 12 वर्ष तक निवासरत् दो विशालकाय पहाड़ की गिर धारा में टपका धाम बनाया जहां पर कुछ समय बीतने के बाद कुसमी धाम मठ मंदिर में जाकर रहने लगे और इस स्थान से एक किमी की दूरी पर जंगल में जल अभाव ग्रस्त क्षेत्र की एक चट्टान पर चमिटा माररकर कपिल धारा का उद्गम करवाया। वहीं बहोरीबंद क्षेत्र में बंदर सुआ जैसे दुर्लभ मनोरम स्थान हैं। जहां पर कुदरत और संत के प्रयासों से निर्मित शिल्प कला का अदभुत संगम है। जो इन मंदिरों के प्रति लोगों का आकर्षण इस तरह से बना है कि जो एक बार इन जगहों से गुजरता है इनकी सुदरता में वसीभूत होकर बार बार आता रहता है। और परम आनंद का अनुभव करता है। जहां आस्था और शिल्म सौंद्रर्य का अद्भुत संगम है गाेविंद तिवारी बताते हैं कि कुसमी मठ सिद्ध क्षेत्र होने के साथ साथ अनेकों पुरातत्व महत्व की प्रतिमाओं का संग्रहलय है।
डूमर के पाताल भैरवी हनुमान जी।
एक पैर पाताल दूसरा पैर जमीन पर रखे
अटल खडी़ है हनुमान जी की प्रतिमा
नोहटा डूमर मार्ग पर डूमर और बडगुवां तिराहा पर पाताल भैरवी हनुमत डोंगरी हैं। जहां पर लोग बताते हैं कि पहले यहां पर सात मढा थे देखरेख के अभाव में धीरे धीरे जमीनदोज हो गए और इन मढा की मूर्ति कला की प्रमिमाओं को मंदिर निर्माण के समय मंदिर के चाहुओर दीवारों पर स्थापित की गई है। जिसमें पुरातन काल कि अधिकांश प्रतिमा प्रतिमाओं के खंड काल में खंडित की गई है। लेकिन कुछ आज भी सुरक्षित हैं। पुरातत्व महत्व वाली इन प्रतिमाओं के संरक्षण विकाश की ओर पुरातत्व विभाग की नजर नहीं पडी़ है ही पुरातन धरोहरों को संरक्षित किए जाने की ओर प्रशासन का ध्यान पंहुच जाए तो पर्यटक स्थलों के रुप में अपनी पहचान विकसित करने में देर नहीं।