राम मंदिर बना है तो राम राज्य भी आएगा : ब्रह्माकुमारी नीलम दीदी

श्रीमदभागवत गीता का सार, सुखमय जीवन का आधार, गीता ज्ञान यज्ञ का छठवां दिवस
सिलवानी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिलवानी के तत्वाधान में श्रीमदभागवत गीता का सार, सुखमय जीवन का आधार, गीता ज्ञान यज्ञ के छठवें दिवस में प्रवक्ता राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी नीलम बहन ने सर्वप्रथम श्रीमदभागवत गीता जी की आरती के बाद परमपिता परमात्मा शिव का आह्वान करते हुए कहा कि राजयोग सभी योगों का राजा है। राजयोग करने से हमारे जीवन में कार्य करने में कुशलता आती है एवं विचारों का शुद्धिकरण होता है। विचारों की शुद्धिकरण के लिए पहले विचारों, संकल्पों पर ध्यान देना होगा। अब ध्यान करते वक्त हमारी सोच बहुत चलती है, लेकिन हमें क्या सोचना हैं? मैं क्यों सोच रहा हूं’ ? फिर कुछ देर के लिए सोच रुक जाती है। सिर्फ श्वास पर ही ध्यान देते हैं और उसी समय संकल्प करें – मैं कौन हूँ ?अंतत: ध्यान का अर्थ हैं – ध्यान देना। हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी हैं। कहते हैं कि जैसा खायेंगे अन्न, वैसा होगा मन, जैसा पियोगें पानी, वैसी होगी वाणी, जैसा देखोगें चित्र, वैसा बनेगा चरित्र।
तो यह सत्य ज्ञान जिनसे हमें प्राप्त होता हैं हमें सत्य/असत्य, पाप/पुण्य, अच्छा/बुरा का बोध होना और फिर सत्यकर्म करना ही श्रेष्ठ जीवन कहलाता हैं ।
आज हर मानव के लिए श्री राम मर्यादा के प्रतीक है उनके हर कर्म से हमे सीख मिलती हैं । राम का अर्थ विवेक है ,सीता का अर्थ पवित्रता है और लक्ष्मण का अर्थ मर्यादा है अब इन तीनो ही गुणों को धारण करना होगा तब राम राज्य आएगा। हर मानव को श्रीराम के जीवन चरित्र को अपनाना होगा तब ये दुनिया राम राज्य होगी ।
कहते है कि सदगुरु वह है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर और बुराइयों से अच्छाइयों की ओर ले जाते हैं । अंधकार को मिटाकर सत्यप्रकाश लाने वाला ही सच्चा सदगुरु परमपिता परमात्मा शिव है। कहा जाता हैं कि, जीवन में सबसे कठिन है सरल होना और जो कठिन को सरल बना दे, वही सच्चा सद्गुरु हैं। अर्थात किसी भी मनुष्य को हम गुरु कह सकते हैं। सतगुरु तो एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव ही है जो अंधियारी रात अर्थात कलियुग के अंतिम समय पर और कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर आकर हम पतितों को पावन बना, पत्थर बुद्धि से पारसबुद्धि बना कर ले जाते हैं ।वह हमें स्वयं की और हमारी सत्य पहचान कराते हैं, कि हम एक अविनाशी चैतन्य शक्ति हैं और यह शरीर विनाशी हैं। यह कोई भी मनुष्य मात्र विद्वान, गुरु हमें नहीं बता सकते। यह सिर्फ एक सद्गुरु का ही कर्तव्य है कि वह हम आत्माओं को स्वयं की भी सही पहचान देकर सही रास्ता बताते और हम आत्माओं को अपने घर शान्तिधाम की ओर ले जाते हैं। परमपिता परमात्मा शिव ही सर्व आत्माओं का गति-सदगति दाता हैं।जो हमें दुःखों से, बुराइयों से, 63 जन्मों के विकर्मों के विनाश के लिए सहज राजयोग सिखा अपनी कर्मेन्द्रियों पर नियंत्रण करना सिखला रहा है। जो जन्म-जन्मान्तर के पापों से मुक्त कराने वाला है। ये जिंदगी एक प्रतिध्वनि है, जिसमें सब कुछ वापस आता है….। फिर चाहे वो अच्छा हो या बुरा हो। सुख हो,या दुःख हो। क्योंकि कहा जाता है कि जैसी करनी वैसी भरनी। तो आइये हम सभी सुख और शांतिमय जीवन जीने के लिए अपने कर्मों पर विशेष ध्यान दें। आपने देखा होगा, कि देवी देवताओं के सभी चित्र भारत के उस गौरव को वर्णित करते हैं जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था।कंचन काया और सिर के चारों तरफ दिव्यता का एक ताज उनकी पवित्रता और संपूर्ण निर्विकारी अवस्था थी।हीरे मणियों से सुशोभित ताज और गले तथा हाथों में पड़े हीरे जवाहरात के आभूषण उस समय की भारत की समृद्धि को दर्शाते हैं।चहरे पर मुस्कान आंखों में एक रूहानियत उनकी निश्छल और निष्कपट अवस्था को दर्शाते हैं। अगर ये देवी देवता आकाश से नीचे उतरते तो फिर सारे विश्व के लोग ही इनको मानते और पूजते लेकिन केवल भारत के लोग ही इन्हें अपना भगवान मानकर पूजते हैं क्यों?
क्यूंकि ये देवी देवता केवल भारत की पावन भूमि पर ही होके गए हैं यानी राज्य करके गए हैं जब भारत स्वर्ग के समान था तब शिवालय कहलाता था । यही वो सृष्टि का स्वर्ण काल था जिसके लिए भारत को सोने की चिड़िया कह कर पुकारा गया।जब रामराज्य था, तो कभी घरों में ताला नहीं डालते थे, क्योंकि राम राजा और राम प्रजा, अर्थात राजा और प्रजा सभी सम्पन्न स्थिति थे कोई भी कमी नहीं थी। फिर बताते हैं राजा दशरथ की रानियां थी कौशिल्या, कैकेयी, सुमित्रा। अर्थात कौशिल्या माना जिसके अंदर सर्व कौशल हो, कैकेयी माना जो हर बात में, कर्म में संतुष्ट हो, सुमित्रा माना जिसकी सभी से मित्रता हो, जिसका कोई भी शत्रु न हो। फिर तीनों रानियों के चार पुत्र दिखाते हैं- राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न। राम अर्थात विवेक, मर्यादा पुरूषोत्तम, लक्ष्मण अर्थात अपने लक्ष्य के अनुरूप लक्षण धारण करना ,भरत अर्थात संयम धैर्य को धारण करना, शत्रुघ्न अर्थात बुराइयों पर जीत हासिल करना। कहते हैं, बुद्धिमान व्यक्ति वह जो अपने पूर्वजों से शिक्षा ले अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाये तो हमें भी अपने पूर्वजों के श्रेष्ठ कर्मों से शिक्षा लेनी चाहिए।
साथ ही मेडिटेशन कराकर आत्म-अनुभूति कराई। इस के बाद श्रीमदभागवत जी की आरती कर प्रसाद वितरण किया गया।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी ज्योति बहन, ब्रह्माकुमारी मोहिनी बहन,ब्रह्माकुमारी दीपिका बहन, ब्रह्माकुमारी आरती बहन, ब्रह्माकुमारी निधि बहन, और अन्य भाई-बहन, माताएं और क्षेत्रवासी शामिल रहें।