विश्व में शनिदेव शिव के रूप विराजमान, 2 हजार वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन शनि मंदिर उज्जैन : यहां ढय्या शनि की अद्भुत प्रतिमा
राजा विक्रमादित्य द्वारा उज्जैन में शनि मंदिर के बनाने के बाद ही विक्रम संवत आरंभ
रिपोर्टर : पंकज पाराशर छतरपुर
भारत में करोड़ों मंदिर है। सबके अलग अलग पहचान हैं। कई मंदिरों की कहानी भी दिलचस्प है। कई मंदिरों के बारे में जानकर आश्चर्य भी होता है। आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। जिस मंदिर के बारे में हम बात कर रहे हैं वह मध्य प्रदेश के उज्जैन में है। इस मंदिर को शनि मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसे नवग्रह मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर है। बताया जाता है कि लगभग दो हजार साल पहले इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी। कहा जाता है कि विक्रमादित्य ने इस मंदिर के बनाने के बाद ही विक्रम संवत की शुरुआत की थी l यहां पर मुख्य शनिदेव की प्रतिमा के साथ साथ ढय्या शनि की भी प्रतिमा भी स्थापित है। विक्रम संवत का इतिहास भी इस मंदिर से जुड़ा हुआ है। यही नहीं, यह शनि मंदिर पहला मंदिर भी है, जहां शनिदेव शिव के रूप विराजमान है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां साढ़ेसाती और ढय्या की शांति के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। हर शनिवार को यहां 5 क्विंटल से अभी तेल शनिदेव पर चढ़ता है। मंदिर प्रशासन को इसके लिए कई टंकी की व्यवस्था करना पड़ता है। बाद में इस तेल को नीलाम किया जाता है। श्रद्धालु शिव रूप में शनिदेव को तेल चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं। जो भी यहां सच्चे मन से शनिदेव को प्रसन्न करता है उसे शनिदेव कभी दुख नहीं देते हैं, सारे कष्ट दूर कर देते हैं।