धार्मिकमध्य प्रदेश

शरीर से जब आत्मा अलग होती है शरीर कोई मतलब का नही होता हैं : ब्रह्मचारी महाराज

रिपोर्टर : राजकुमार रघुवंशी
सिलवानी । ग्राम भैरो डुंगरिया में रघुवंशी (भोपा) परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन शनिवार को श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुये ब्रह्मचारीजी बापोलीधाम ने कहा कि मृत्यु काल मे जीव का जैसा स्वभाव होत है वैसा ही जन्म लेती हैं। आत्मा शरीर नही हैं। आत्मा दिव्य है। आत्मा शरीर मे कुछ समय के लिए आती है। इसी तरह शरीर से जब आत्मा अलग होती है शरीर कोई मतलब का नही होता हैं। मृत्यु में जो होता है वह ही नींद में होता है। शास्त्रों में इस का वर्णन हैं इसे छोटी मौत कह सकते है।
उन्होने बताया कि लोभ, मोह, राग, दुश्मन, दोस्त, अपना पराया, कुछ नही रहता है। किंतु आत्मा चेतना रहती है। इसी तरह ये शरीर मे सिर्फ आत्मा के बल पर चढ़ रहा है। इसलिए सत्य कर्म करते रहे, पर मानव अज्ञान में रूप में लगकर मानव पाप का भगदीर बन रहा है। मानव को मानव का बोध नही हैं सिर्फ
अज्ञानता बस इस संसार मे मेरा तेरा में लगा है मानव है। तेरा मेरा, यहां सिर्फ जग में मानव का परमात्मा है। मानव को जिस दिन ये बोध हो गया कि इस जग में उस का कुछ नही है। उसे परमात्मा की प्राप्ति हो जावेगी। तेरे ही अपने एक दिन तेरे को इस दुनिया से विदा कर देंगे। श्रीमदभागवत कथा के महत्व को समझाते हुए कहा कि भागवत कथा में जीवन का सार तत्व मौजूद है आवश्यकता है निर्मल मन ओर स्थिर चित्त के साथ कथा श्रवण करने की। भागवत श्रवण से मनुष्य को परमानन्द की प्राप्ति होती है। भागवत श्रवण से प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है। चित्त की स्थिरता के साथ ही श्रीमदभागवत कथा सुननी चाहिए। भागवत श्रवण मनुष्य के सम्पूर्ण क्लेश को दूर कर भक्ति की ओर अग्रसर करती है। उन्होंने अच्छे ओर बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया ओर धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वही धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल कपट से पुत्र प्राप्ती ओर उसके बुरे परिणाम को समझाया। मनुष्य जब अच्छे कर्मो के लिए आगे बढता है तो सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है ओर हमारे सारे कार्य सफल होते है। ठीक उसी तरह बुरे कर्मो की राह के दौरान सम्पूर्ण बुरी शक्तियॉ हमारे साथ हो जाती है। इस दौरान मनुष्य को निर्णय करना होता कि उसे किस राह पर चलना है। छल ओर छलावा ज्यादा दिन नहीं चलता। छल रूपी खटाई से दुध हमेशा फटेगा। छलछिद्र जब जीवन में आ जाए तो भगवान भी उसे ग्रहण नहीं करते है। निर्मल मन प्रभु स्वीकार्य है। छलछिद्र रहित ओर निर्मल मन भक्ति के लिए जरूरी है।पहले दिन भगवान के विराट रूप का वर्णन किया गया। श्रीमद भागवत कथा के इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में कथा श्रवण की। आयोजक परिवार ने समस्त धर्म प्रेमी बंधुओ से कथा श्रवण करने का आग्रह किया है।

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