धार्मिकमध्य प्रदेश

अनीति से संघर्ष राम अवतार का मुख्य प्रयोजन


दिव्य चिंतन : श्री राम जन्मोत्सव पर
हरीश मिश्र, लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )
कमलनयन, धनुर्धर, भक्तों पर कृपा करने वाले, पराक्रमी, सत्यव्रत का पालन करने वाले , दशानन का शीश काटने वाले, भगवान श्री राम पांच सौ वर्ष बाद अयोध्या में दिव्य रूप में विराजमान हुए हैं।
श्री राम जन्मोत्सव मांगलिक अवसर पर पूरे भारत में, विशेष कर अयोध्या में ध्वज पताका फहरा रहीं हैं , तोरण, कलश, अंगना सजाए गए हैं। सुमन बृष्टि हो रही है। आज दीपोत्सव की तैयारी है। सूर्य तिलक से अभिषेक होगा।
राम !! जिस शब्द को सुनकर तन-मन आनंदित हो जाता है। जिनके स्वरुप के दर्शन से रोम-रोम अभिभूत हो जाता है। उन सर्वमंगलकारी प्रभु श्री राम की जय-जयकार हो रही है।
राम की आराधना भक्ति भावना से होती है। भक्ति का अर्थ है प्रेम। प्रेम से जय राम जी बोलोगे तो राम मिलेंगे।वेद की ऋचाओं में ,वाल्मीकि रामायण की चौपाई में , तुलसी के छंद में, सरयू की पवित्र जल धारा में, अलौकिक तीर्थ स्थल अयोध्या में, चित्रकूट की पर्वत श्रृंखला में, दंडकारण के जंगल में चहुं ओर राम ही राम है।
आदर्शों के प्रतिनिधि, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम जी का जीवन आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण की पाठशाला है। परिवार संचालन से लेकर, आध्यात्मिक प्रेरणा, मनुष्य जीवन का सदुपयोग, कर्म और उसका प्रतिफल, अनीति से लड़ना, देवत्व की रक्षा , संघ शक्ति के महत्व का प्रतिनिधित्व श्री राम ने किया है।
अनीति से संघर्ष राम अवतार का मुख्य प्रयोजन था। अनीति का विरोध करना मानवता का अत्यंत महत्वपूर्ण कर्तव्य है। इसके बिना नीति का समर्थन हो ही नहीं सकता। श्री राम सदैव नीति पथ पर चले।
पहले समुद्र से विनय करते हैं, किंतु जब समुद्र के आचरण से यह प्रकट होता है कि वह शालीनता की भाषा नहीं समझेगा तो वे उसका उपचार करते हैं।
जब सीता को हरण करके रावण लिए जा रहा था और माता सीता विलाप कर रहीं थीं । तब जटायु ने अनीति के विरुद्ध संघर्ष किया। प्राणों की आहुति दी। ऐसे ही निषाद राज को लगा भरत, राम-लखन पर आक्रमण करने आ रहे हैं, तो वह हार-जीत की परवाह किए बिना अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार हो गए।
विभीषण ने लंकाधिपति रावण को भरी सभा में अनीति का बोध कराया। बुद्धिजीवी मंत्री माल्यवंत ने भी विभीषण का समर्थन किया।
जहां मत व्यक्त करना हो वहां तो भय को छोड़कर न्याय और विवेक युक्त बात कहनी ही चाहिए। यही राम नीति है। रावण की सभा में सभी चापलूस वही बातें कहते थे जो दशानन को पसंद थीं, जिसमें उसे आनंद आता था। हितैषी मित्र यदि सत्य परामर्श न दें, चुप रहें तो सर्वनाश ही होता है।
कुटिल, छलिया, प्रपंची, राम विरोधीयों को आक्रोश की भाषा से ही समझाया जा सकता है। निकृष्ट स्तर के मानवों को विनय के स्थान पर भय दिखाना जरूरी है। दुष्टों को दण्ड देना ही राम नीति है।

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