मध्य प्रदेश

क्या क्षेत्र को दरकार है स्थानीय नेतृत्व की , सौगातों के नाम पर महज झुनझुना क्यों ?

रिपोर्टर : विनोद साहू
बाड़ी। इसे शहर का दुर्भाग्य कहें या फिर नियती कि यह नगर दशकों से पिछ्डेपन का दंश झेल रहा है। इसकी पृष्ठ‌भूमि में कई कारण हो सकते है उनमें प्रमुख कारण है कि राजनैतिक धरातल पर इस नगर को आज तक सशक्त स्थानीय नेतृत्व नहीं मिल पाया है। आयातित नेतृत्व इस नगर का दोहन करते रहे है। यहाँ का बासिन्दा भी धन्यवाद का पात्र है जो है जो अप‌नी भावी पीढी को पिछडा, समस्या-ग्रस्त, मौलिक सुविधाविहिन नगर सौंपने के लिए उत्साहित है।
रायसेन जिले की कभी सबसे बड़ी तहसील का मुख्यालय रहा बाड़ी नगर कई दशकों से विकास की प्रतीक्षा कर रहा है। तहसील मुख्यालय तो आज भी है लेकिन इसकी दशा दूर-दराज के सुविधा बिहिन ग्राम के समान हो गई है। इस पिछ्डेपन को लेकर हरकोई अपने स्तर से हजारों कारण गिना सकता है। इनमें सबसे प्रमुख कारण है इस नगर की स्थानीय नेतृत्व नाहीं मिल पाना है। कई आयातीत नेतृत्व को इस नगर से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इन आयातीत नेतृत्व में ऐसे भी है जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत ही इसी नगर से की है। सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद इन आयातित नेतृत्व ने इस नगर की तरफ पलटकर देखना भी उचित नहीं समझा। दूसरी पंक्ति में खड़ा रहने वाला नेतृत्व स्थानीय बासिन्दा परन्तु उसे भी नगर के विकास से कोई सरोकार नहीं है।
इस नगर का आम बासिन्दा धन्यवाद का पात्र है lदशकों से दिखाए जा रहे विकास के दिव्यस्वपनों से वह अभी तक भी ऊबर नहीं पाया है। सपनों में खोया आम बासिन्दा अपनी भावी पीढी को भी भूल चुका है। नगर के विकास के प्रयासों के बजाये निरर्थक चर्चाओं में उलझा हुआ है। रोजगार का अभाव, चौपट होते व्यापार व्यवसाय, शिक्षा का गिरता स्तर, पलायन करती मूलभूत सुविधाओं से वह बेखबर हो चुका है। अतीत और आज की तुलना करें तो आज शिक्षित वर्ग का ग्राफ काफी ऊँचा है लेकिन शिक्षित वर्ग भी अनपढ़ों कतार में खडा दिखाई देता है। गढ्डे दार सड़कें, सुविधा -विहिन् चिकित्सालय, रोजगारमूलक योजनाओं का अभाव की ओर उसका मानस पटल कार्य ही नहीं कर रहा है। जब खुद के भविष्य से वह अनजान है तो भावीपीदी के सुखद भविष्य की कल्पना कैसे कर सकता है।

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