संगठनात्मक एकता विजय व कार्यसिद्धि का मूल सूत्र है : कमलेश शास्त्री
सागर। श्रीराम कालोनी गोपालगंज सागर में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण के चतुर्थ दिवस में शास्त्री जी ने कहा दिव्य प्रतिभाओं का एकीकरण लोक कल्याणकारक है। संसार के समस्त श्रेष्ठ कार्य एकात्मभाव से ही सिद्ध होते हैं, अतः सबको साथ लेकर चलें ..! किसी भी कार्य की सफलता के लिए एकजुट होना आवश्यक है। संगठन की ताकत एकता में है। संगठनात्मक एकता समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देती है। मनुष्य के जीवन में संगठन का बड़ा महत्व है। अकेला मनुष्य शक्तिहीन है, जबकि संगठित होने पर उसमें शक्ति आ जाती है। संगठन की शक्ति से मनुष्य बड़े से बड़े कार्य भी आसानी से कर सकता है। संगठन में ही मनुष्य की सभी समस्याओं का हल है। जो परिवार और समाज संगठित होता है वहाँ हमेशा खुशियां और शांति बनी रहती है और ऐसा देश तरक्की के नित नए सोपान तय करता है। इसके विपरीत जो परिवार और समाज असंगठित होता है वहाँ आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़े होते रहते हैं, जिससे वहाँ हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है। संगठित परिवार, समाज और देश का कोई भी शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जबकि असंगठित होने पर दुश्मन जब चाहे हावी हो सकता है। संगठन का प्रत्येक क्षेत्र में विशेष महत्व होता है, जबकि बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं होता है। संगठन का मार्ग ही मनुष्य की विजय का मार्ग है। यदि मनुष्य किसी गलत उद्देश्य के लिए संगठित हो रहा है तो ऐसा संगठन अभिशाप है, जबकि किसी अच्छे कार्य के लिए संगठन वरदान साबित होता है। प्रत्येक धर्म ग्रंथ संगठन और एकता का संदेश देते हैं। कोई भी धर्म आपस में बैर करना नहीं सिखाता। सभी धर्मों में कहा गया है कि मनुष्य को परस्पर प्रेमपूर्वक वार्तालाप करना चाहिए। मनुष्य जब एकमत होकर कार्य करता है तो संपन्नता और प्रगति को प्राप्त करता है। संगठन में प्रत्येक व्यक्ति का विशेष महत्व होता है, इसलिए जब मनुष्य संगठित होकर कोई कार्य करता है तो उसके परिणाम में विविधता देखने को मिलती है। कथा के विराम पर सभी भक्तों ने कृष्ण जन्म उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया गया।