धार्मिक

कंस के अत्याचार असुरी शक्तियों के विनाश के लिए बसुंधरा पर अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण : पं रेवाशंकर शास्त्री

चतुर्थ दिवस पर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव उत्साह धूमधाम से मनाया गया
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव मे संगीतमयी भजनों पर जम कर नाचे श्रद्धालु, भक्तों ने लगाए भगवान के जयकारे, डीजे की धुन पर नाचे श्रद्वालु
सिलवानी।
व्यास गादी से श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस के अवसर पर शनिवार को व्यासपीठ पंडित रेवाशंकर शास्त्री ने ग्राम मवई के श्री राम जानकी मंदिर में चल रही भागवत कथा में कहा कि संसार में मानव को कर्मरत रह कर अपनी शारीरिक अवस्था, मन, वुद्वि, चित्त की वृतिंयों से परे रह कर आत्म कल्याण का मुख्य लक्ष्य जीवन काल में प्राप्त कर लेना चाहिए। अपनी अपनी संसारिक भूमिकाओं का निर्वाह करते हुए ईश्वर प्राप्ति और अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की अवधारना को लेकर साधना, सदाचार, कर्तव्य परायणता से जीवन जीना चाहिए। कार्यक्रम का आयोजन राजकुमारी दुबे की पुण्य स्मृति में पंडित राधेलाल दुबे तथा पं रेवाशंकर शास्त्री एवं परिजनों के द्वारा कराया जा रहा हैं। पं रेवाशंकर शास्त्री ने कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म होते ही बृज में खुशियां मनाई जाने लगी। आकाश से देवताओं के द्वारा फूलों की वर्षा की गई। जब गोकुल में भगवान का आगमन हुआ तो नंदबाबा भी प्रसन्न हुए। यहां पर भगवान की लीलाओं का भी विस्तार से वर्णन किया गया। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अदभुत् है, कहां जन्म लेते कहीं अपना बालपन गुजारते है। बाल्यावस्था में ही इतनी लीलाएं करते है लोग उन्हे भगवान मानने को मजबूर हो जाते है। कुछ अदभुत् लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान- भगवान होता है, और उसका स्वरुप श्रद्वालुओं को काफी देर बाद दिखाई देता है। पं रेवाशंकर शास्त्री ने बताया कि संसार में जब असुरी शक्तियां अपने प्रचण्ड वेग से उत्पात मचाती है, और सज्जनों को कष्ट देकर धर्म को हानि पहुंचाती है, तब संतों के कष्टों को दूर करने के लिए बसुंधरा पर परमात्मा का अवतरण होता है। मथुरा के राजा कंस की, सज्जनों को कष्ट देने की प्रवृत्ति कारण ही परमात्मा के अतःकरण की करुणा जागती है।
उन्होंने बताया कि वसुदेव देवकी के समक्ष वह ईश्वरीय सत्ता का
प्राकट्य हो जाता है। कंस के कारागार में जहां पर, कंस द्वारा वसुदेव देवकी को यातना दी जा रही है, परमात्मा के प्रकट होते ही वह बंधन मुक्त होकर देवकी वसुदेव श्रीकृष्ण की वंदना करते है, और उनसे प्रार्थना करते है कि आप लघु रुप बनाले। भगवान का आदेश मिलते ही वसुदेव भगवान को नंदबाबा के यहां गोकुल यहां ले जाते हैं। यमुना में भीषण जल का प्रवाह पार कर गोकुल पहुंचते है। जहां माता यशोदा के घर उनको छोड़ दिया गया।
पं रेवाशंकर ने बताया कि प्रातः के समय जब जागरण होता है नंद के आनंद का कोई ठिकाना नहीं होता है, वह परमानदं में विभोर होकर जन्मोत्सव मनाने लगते है। चारों तरफ मिठाईयां, माखन, मिश्री की वर्षा होने लगती है। सभी प्रसन्नता, हर्ष, आनंद्र से भर कर जन्म उत्सव मनाते है। आकाश से देवता पुष्पवर्षा करते है, चहुं और से बधाईयां आने लगती है। कृष्ण का नामकरण गर्गाचार्य के द्वारा किया जाता है। गर्गाचार्य ने कृष्ण का नामकरण उपरांत उन्होंने अपनी लीलाओं का सुरम्य प्रारंभ कर दिया। राजा बलि अपने जीवन में इंद्र पद प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर रहे थे तव उनको अभिमान हो गया कि में बहुत बड़ा दानी, हूं तथा मेरे ऊपर मेरे गुरु शुक्राचार्य की अमोल कृपा है जिससे
में यज्ञ कर इंद्र पद को प्राप्त कर लूंगा। यज्ञ के अवसर पर भगवान विष्णु ने एक ब्रम्हचारी बालक का रुप धारण कर लिया जो तेजस्वी था, और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच कर राजा बलि से तीन गज भूमि मांगी, तो दान के कारण राजा बलि के मन में पूर्व से व्याप्त अहंकार के कारण उन्हे यह सामान्य दान लगा, और सहज ही तीन पग भूमि दान में देने को तैयार हो गए।
उन्होंने बताया कि गुरु के द्वारा मना कराने के बाद भी राजा बलि नहीं माने और तीन पग भूमि देने का संकल्प देने को तैयार हो गए। लेकिन इसके बाद भी शुक्रचार्य संकल्पि के जलपात्र में लघु रुप रख कर बैठ गए। तो वहां सक जल का निकलना बंद हो गया तो भगवान बावन ने तिनके के सहारे उस अवरोध को हटाने का प्रयास किया, जिससे उनके नेत्र से रक्त धारा प्रवाहित हो गई। और तीन पग भूमि देने का संकल्प पूरा हो गया । भगवान बामन ने एक पग में आकाश नाप लिया, दूसरे पग में संपूर्ण बसुंधरा तथा तीसरा पग शेष रहने पर राजा बलि अपने अभिमान पर लज्जित हो गए तथा प्रभु के चरणो में मस्तक झुका दिया। कथा में गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा के ऊपर धारण किए जाने का वर्णन भी पंडित रेवाशंकर के द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त अनेक प्रसंगों के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जाकर श्रद्वालुओं को भाव विभोर किया गया।
खुशी से झूम नाचे श्रद्वालुः- भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होते ही श्रद्वालु खुशी से झूम उठे, संगीतमयी भजनों पर नृत्य करने लगे, पुष्पों की वर्षा की जाने लगी। कथा स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। भगवान का जन्म होते ही समूची बृज नगरी हर्ष उल्लास में डूब गई। श्रद्वालुओं के द्वारा बधाई गाई जाने लगी। नृत्य किया जाने लगा। मिश्री, माखन, के प्रसाद का वितरण किया गया। यहां पर भगवान श्री कृष्ण जी की बाल रूपी मूर्ति को जहां भी वह लेकर लोग पहुंचते थे श्रद्वालु उनका चरण स्पर्ष करते रहें। कार्यक्रम के समापन पर आरती की जाकर प्रसाद का वितरण किया गया। कथा के प्रारंभ में श्रद्वालुओं के द्वारा व्यास गादी की पूजा अर्चना की गई।

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