धार्मिक

कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है -पंडित रामकृपालू

कथा के पंचम दिवस भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला,एवं गोवर्धन पूजन का प्रसंग श्रवण कराया।
सिलवानी। सिलवानी अंचल के गांव बिघर्रा में विवेक, विकास रघुवंशी द्वारा अपने पिता स्वर्गीय श्री उमेश पटेल की पुण्य स्मृति में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के पंचम दिवस कथा व्यास पंडित रामकृपालू शर्मा ने बताया कि भगवत कथा का श्रवण करने से जीवन मे सुख शांति का समावेश होता है। धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है। जहां भी जिस समय भी श्रीमद् भागवत कथा सुनने का अवसर प्राप्त हो, इस अवसर को कभी भी नही छोड़ना चाहिए। भजन में ही जीवन का सार होता है। कथा वाचक श्री कृपालुजी ने माता पिता की सेवा किए जाने का आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस ने भी माता पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा कर ली। समझ लो उसने सभी तीर्थों की यात्रा करली। माता पिता के चरणों में ही तीर्थ है। उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों मे भटकने के बाद यह मानव तन मिला है इसका उपयोग सत्य के मार्ग पर चलने में लगा दो । जन्म सफल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से जीवन में भगवान की भक्ति जाग्रत हो जाती है। संसार में चारो और मोह माया व्याप्त है जिसमें मानव फंस कर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है। जबकि मनुष्य का शरीर अनेक जन्मों के पुण्यों के फल स्वरुप प्राप्त हुआ है। जिसका उद्देश्य संसार में परमात्मा के चरणों का आश्रय लेकर सदाचारी रुप से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए, लेकिन भटकाव के कारण मानव इस संसार को नित्य मान लेता है। जबकि परमात्मा ही इसके मूल में सत्य रूप में विराजमान है। उनकी भक्ति का प्रादुर्भाव हम सभी को भागवत श्रवण से प्राप्त होता है। श्री कृपालू जी कहते है।
हमे हमारे वेदों में, पुराणों में सिखाया गया है की ब्राह्मण, गाय, साधु- संतों का, धर्म का सम्मान करना है। जीव मात्र पर दया करने का स्वभाव हमारा होना चाहिए। मात्र अपने परिवार तक सिमित नहीं होना चाहिए। पृथ्वी पर सम्पूर्ण मानव और समस्त जीव पर दया होनी चाहिए। जब हम सभी के प्रति अपने हृदय में दया का भाव रखते हैं तो भगवान नारायण हमारा कल्याण करते हैं। हम अपनी जिस क्षमता से जीवों पर दया करते हैं भगवान अपनी क्षमता अनुसार उसका फल हमे देता है। जीवों पर जो दया नहीं करता वो भी भगवान नारायण का शत्रु है। जिसके जीवन में सत्य नहीं है वो भी भगवान का शत्रु है।
अधिक से अधिक सत्य बोलना चाहिए। हमे झूठ नहीं बोलना चाहिए।।
पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख सुलक्षणा नारी, गृहस्थी का सबसे बड़ा सुख ये होता है की घर में नारी अच्छे कर्मो वाली और मृदभाषी होनी चाहिए। यही लागू पति के ऊपर भी लागू होता है।
“प्रभु से आपका संबंध कैसा भी हो वो आपका भला ही करेंगे, अतः
“पद प्रतिष्ठा मिलने पर अभिमान नहीं करना चाहिए, अभिमान करोगे तो सबकुछ बेकार हो जाएगा।
“करोड़ो जन्म निकलने के बाद भी हमे अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ेगा चाहे वो अच्छा हो या बुरा हो।
कथा के दौरान आज गोवर्धन पूजन का आयोजन किया। कथा में ग्राम एवं क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

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