धार्मिक

मनुष्य के शरीर की सुन्दरता, कर्म, वाणी, विचार, संस्कार, चरित्र से ही निमार्ण होते है: डॉ. पं. रामानंददास जी महाराज

पुण्य के उदय से व्यक्ति विजय को प्राप्त कर सुखी जीवन जीता है
सिलवानी।
मनुष्य के शरीर की सुन्दरता सब कुछ नहीं होता उसके कर्म, वाणी, विचार, संस्कार ही उसे महान बनाते हैं, जिससे वह अपना अपने परिवार समाज का नहीं बल्कि पूरे भारत देश का नाम रोशन करता है। इस मृत्युलोक की धरा धाम से मनुष्य के जाने के बाद सिर्फ उसके संस्कार सत्कर्म मनुष्य के साथ जाते हैं, चरित्र से संस्कारो का उदय होता है लेकिन आज के परिवेश मे संसार के लोग धनवान लोगों को ज्यादा महत्व देता है ना कि चरित्रवान व्यक्ति को। जैसे पेड़ के नीचे बैठने से व्यक्ति को छाया स्वतः ही मिल जाती है उसे छाया के लिए भटकना नहीं पड़ता। यह उद्गार श्रीराम कुंज पीठाधीश्वर आचार्य पं. डॉ. रामानंद दास जी महाराज श्रीधाम अयोध्या द्वारा व्यक्त किए गए। वह भगवान तिरुपति बालाजी के दर्शन करने जाते समय अल्प प्रवास के लिए सिलवानी नगर में रात्रि विश्राम कर जमुनियापुरा स्थित करीब 1000 वर्ष से भी ज्यादा पुराने श्रीराम जानकी मंदिर के दर्शन करने के लिए पहुंचे। मंदिर के महंत नागा रामदास महराज के साथ मिलकर भगवान राम राजा सरकार के नव निर्माण मंदिर का चल रहे भवन और शिखर निर्माण की सराहना की। साथ ही उन्होंने श्रद्धालुओं को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा कि संतों गुरु व भगवान की शरण में जाने से मनुष्य के अंदर सात्विक विचार आते हैं और चारित्र को धारण करता व चरित्रवान व्यक्ति की शरण में जाने से रागद्रेष छूट जाता है। बल्कि सोच में सात्विकता आने के साथ ही जीवन में सुचिता आने लगती है। धर्म श्रद्धा का विषय है, प्रत्येक व्यक्ति सुख प्राप्ति के लिए धर्म करता हैं। वास्तव में रागद्रेष कम करने के लिए धर्म किया जाता है। धर्म से ही राग द्रेष को समाप्त किया जा सकता हैं। डाॅ. रामानंद दास महाराज ने बताया कि जो मनुष्य धर्म को मानता है धर्म के अनुसार जीवन यापन करता है। वह समाज के नियमों के अनुसार चलेगा। जो धर्मात्मा नही है वह कभी भी धर्म की भाषा नहीं समझ सकता है।

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