गृहस्थ आश्रम सर्वश्रेष्ठ आश्रम है : पं. श्रीरामकिंकर शर्मा
रिपोर्टर : राजकुमार रघुवंशी
सिलवानी । ग्राम बीकलपुर में चल रही सप्तदिवसिय श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ सत्र की कथा श्रवण कराते हुए कथा व्यास पं. रामकिंकर जी द्वारा बताया गया कि वर्णाश्रम के चार वर्ण है जिनमें समयोचित होते हुए व्यक्ति को जीवन यापन करना चाहिए ।
प्रथम चरण में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए द्वितीय चरण में गृहस्थ आश्रम में तृतीय चरण में वानप्रहस्थ एवं चतुर्थ आश्रम में सन्यास धर्म का पालन करना चाहिए । चारों आश्रमों में जब गृहस्थ जीवन यापन करता है तब उसे भगवान सरलता से प्राप्त होते है यही गृहस्थ के लिए शास्त्र आज्ञा है एवं गृहस्थ आश्रम को शास्त्रों एवं पुराणों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि गृहस्थ के द्वारा ही संतसेवा, गौसेवा एवं अन्य सभी प्रकार के सत्कर्मों का संकल्प पूर्ण होता है।
व्यास महाराज जी द्वारा कश्यप ऋषि की कथा सुनाते हुए हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष का जन्म संध्याकाल में जो गर्भधारण हुआ इसी कारण वह राक्षस हुए थे । इसी कथा के माध्यम से यह भी बताया गया कि सायं काल में जब सूर्यास्त होने वाला हो एवं जब तक पूर्ण रूप से रात्रि प्रवेश न कर जाए तब तक मनुष्य को भोजन, अध्ययन, शयन एवं किसी भी प्रकार का भोग नही करना चाहिए यह निषिद्ध है क्योंकि स्वयं भगवान साम्यसदाशिव भ्रमण करते है इसलिए सायं काल मे केवल भगवान का भजन उनका स्मरण करना चाहिए।
इसी के साथ आज कथा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ जिनका दिव्य-भव्य जन्मोत्सव मनाया गया ।