मध्य प्रदेश

धरती पर स्थाई निवास करने शंभु शैक माधव की अनुमति लेना जरूरी

सिलवानी । धर्माचार्य दीवान शाह धुर्वे सालीवाड़ा सिवनी द्वारा चल रही पांच दिवसीय शंभू नरका ज्ञान यज्ञ पुनेम कथा ग्राम पंचायत चैनपुर के पुस्वार धाम में धर्मा आचार्य संभू शेक की गण्डोदीप के कोयामुर्री दीप में किसी भी विदेशी व्यक्ति के प्रवेश पाना निषेध (प्रतिबंध) था। इस धरती पर प्रवेश पाने के लिए, यहाँ स्थायी रूप से बसने निवास करने के लिए, अपने वंश विस्तार करनें के लिए और मरणोपरांत इसी धरती पर समाधिस्थ होने के लिए इस धरती के राजा संभू शेक मादाव (महादेव) की अनुमति लेना जरूरी था। जो कोई बिना अनुमति के ऐसा करता या प्रवेश किया करता उसे संभू शेक अपने तंदरी जोग (योग साधना) के बल (ताकत) पर जलाकर भस्म (राख) कर दिया करते थे। तंदरी जोग (योग साधना) को ही आजकल संभू के तीसरा नेत्र कहते हैं। उसे संयुग भुई तोर राजा (पंचखण्ड धरती के राजा) और हमारे सगा समाज के धरती से मिलते-जुलते क्रियाकलापों और संस्कृति के कारण कोइतूर आदिवासी समाज को धरती पुत्र कहा जाता हैं। ऐसे संभू शेक की धरती पर विदेशी आक्रमण हुए, कोइतूर आदिवासी गण्डजीवों और आर्यो में युध्द छिड़ गया कोइतूरों आदिवासियों के संभू (महादेव) बहुत शक्तिशाली थे इसलिए आर्यो का गोंडवाना लैंड (धरती) पर प्रवेश पाना असम्भव हो गया इस धरती पर कब्जा जमाने के लिए अंत में आर्यो ने कूटनीतिक तरीके, अन्याय का सहारा लिया। साधु-सन्तों के रुप में जासूस भेजने शुरू किए, जिन्होने कोइतूर आदिवासी के शक्तियों का पता लगाया। जब जासूसों द्वारा आर्यो को पता चला कि कोइतूरों के शक्तियों के स्रोत संभू, लिंगो और सगा वेन (सगा समाज) का समूह में एकता में रहना हैं। उनके राजा संभू जब तंदरी जोग योग साधना में लीन होते हैं तब तक उनको हराना असम्भव हो जाता है। इसलिए संभू शेक की शक्तियों को निष्क्रिय करने के लिए आर्यो के राजा इन्द्र ने अपने राज्य के रूपवती कन्या पार्वती को संभू शेक की सेवा में भेजा, ताकी उनको अपनी मोहजाल में फंसा सके किन्तु वह भी संभू शेक की उपासक, भक्त, और अर्धांगनी बन गई। आर्यो के फेका हुआ जाल विफल हो गया। अबकी बार उन्होंने दूसरी कूटनीतिक चाल चलने का फैसला किया। आर्यो और कोइतूरों आदिवासियों में भीषण युध्द चल रहा था कोइतूर शांतिप्रिय थे तो आर्य हिन्साचारी थे। दोनों पक्षों में शांतिपूर्ण जीवन जीने के अनेक प्रस्तावों पर सहमति बनी और अंत में प्रीतिभोज का प्रस्ताव पास किया गया संभू शेक इस षडयन्त्र को समय पर समझ गए । उन्होंने अपनी सगा समाज को भोजन करने के लिए मना कर दिया और पहले स्वयं भोजन ग्रहण कर लिया। विषयुक्त भोजन से संभू बेहोश हो गया। जिससे समूचे कोइतूरों आदिवासियों में क्रोध फूट पड़ा और वे सभी आर्यो को मार भगाया इधर संभू शेक को जबर्दस्त विषबाधा हो गया था कई तरह के प्रयास करने के बाद भी संभू (महादेव) होश में ना आ सके। संभू शेक को अपनी तंदरी जोग योग साधना योग सिध्दी के बल पर उस खतरनाक जहर को पचाने के लिए 13 दिन का समय लगाया और सभी सगा समाज उनके सुरक्षा कवच बनकर रहें और अंत समय पर सच्चाई की जीत हुई। प्रीतिभोज माघ पूर्णिमा को आयोजित किया गया था और उसके 13 दिन बाद संभू होश में लौट आए थें इसलिए इस पर्व या रात्रि को संभू शेक नरका अर्थात संभू के जागरण की रात कहा जाता है। उसे ही अन्य लोग महाशिवरात्रि कहते हैं। इसलिए संभू शेक के कोइतूर आदिवासी सगा समाज इस पर्व पंडुम को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं पुनेम कथा को सुनने के लिए क्षेत्र के बड़ी संख्या में आदिवासी ग्रामीण के लोग पहुंच रहे है।

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