धर्म कार्य करने वाली व्यक्ति पुण्य का भागीदार होता हैः- ब्रहमाचारीजी महाराज
भैरो डुंगरिया गांव मे रघुवंशी भोपा परिवार द्वारा किया जा रहा है श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन
रिपोर्टर : राजकुमार रघुवंशी
सिलवानी । वर्तमान में व्यक्ति अभिमान के साए में जी रहा हैै। अभिमान इंसान कभी भी सफलता को प्राप्त नही कर सकता है। शालीनता से ओत प्रोत व्यक्ति धर्म कार्य करते हुए जीवन में सफलता को प्राप्त करता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को धमण्ड ना करते हुए जीवन को धर्म पथ पर आरुढ़ करना चाहिए ।यह उद्गार बापौली धाम मांगरोल से पधारे हुए संत ब्रह्मचारीजी महाराज ने व्यक्त किए। वह भैरो जी डुंगरिया गांव में आयोजित की जा रही मद् भागवत कथा सप्ताह के तहत तृतीय दिवस को श्रद्वालुओं को संबोधित कर रहे थे। कथा प्रांरभ के पूर्व श्रद्वालुओं के द्वारा व्यास गादी की पूजा अर्चना की गई। कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुंच रहे हैं।उन्होने बताया कि धर्मषास्त्रों में असत्य बोलने को सबसे बड़ा पाप का कार्य बताया गया है। हालांकि व्यक्ति जानता है कि झूठ बोलने से पाप का बंध होता है। लेकिन जानते हुए भी व्यक्ति झूठ बोलने व पापाचरण के कार्य में लगा हुआ है। धर्म के अनुसार आचरण करने व सत्य का पालन करने वाला इंसान पुण्य का भागीदार कहलाता है। मानव को अपनी सोच सदा ही पवित्र रखनी चाहिए। पवित्र सोच से पवित्र भाव मन में आते है पवित्र भावों से जीवन में सात्विकता का समावेष होता है। उपकार करने वाले व्यक्ति के उपकारो को कभी भी नही भूलना चाहिए । ना ही उपकारी क साथ छल, कपट, अनाचार, अत्याचार करना चाहिए।
श्री ब्रह्मचारी जी ने कहा कि कर्म के अनुसार ही मानव सुख और दुख को प्राप्त करता है। धर्म के बताए सिद्वांत का पालन कर सात्विकता के साथ आचरण कर छल कपट आदि पापो से दूर रहने वाला मानव सुख को प्राप्त करता है। जवकि अनाचार, अत्याचार, व्याभिचार, झूठ, चोरी आदि कार्यो मे लीन रहने वाले की जीवन दुखो से भरा रहता है। एैसे इंसान का कदम कदम पर परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। मानव जीवन में जैसे कर्म करेगा, उसे कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति के जीवन में यदि अध्यात्म योग आ गया तो उसका आत्म कल्याण सहज ही हो जाता है। श्रीमद् भागवत कथा में भगवान कपिल ने अपनी माता को जो उपदेश दिया है उसको कपिल गीता के नाम से जाना जाता है जबकि महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया है उसको भगवत गीता के नाम से जाना जाता है और दोनों का ही एक ही उद्देश्य है एकि व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित करते हुएए परमात्म चिंतन में स्वयं को संलग्न करे। कपिल गीता में भगवान कपिल अपनी माता को गीता उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे मात्र अध्यात्म योग ही मनुष्यों के आत्मिक कल्याण का मुख्य साधन है।
