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सरकार बनाने का संवैधानिक मताधिकार जनता को, तो सरकारें गिराने का अधिकार सांसदों, विधायकों के पास कैसे ?

भारत का संविधान निराशाजनक है…
दिव्य चिंतन : हरीश मिश्र : लेखक (स्वतंत्र पत्रकार) स्वरदूत क्रमांक ९५८४८१५७८१
   आज भारत का संविधान दिवस  है। भारत के संविधान में सरकार के पास अथवा राजसत्ता के पास जो भी शक्तियां हैं, वह जनता से मिली है । संविधान का प्रथम  वाक्य  हम भारत के लोग  का अर्थ है- ” *भारत की प्रभुता जनता में निहित है ।* ”  संविधान  जनता के लिए है । ” परंतु आजादी के 76 साल बाद हम संविधान का मूल्यांकन करें तो कह सकते हैं कि भारत की प्रभुता जनता में निहित नहीं है ।
     भारत की प्रभुता जनता में निहित होती तो राजनैतिक दल के नेता अपनी मर्जी महत्वाकांक्षा सत्ता की लालसा के लिए सरकारें नहीं गिरा रहे होते । जब सरकार बनाने का संवैधानिक मताधिकार जनता को, तो सरकार गिराने का अधिकार सांसदों, विधायकों के पास कैसे सुरक्षित रहा ? सरकार गिराते समय सांसदों, विधायक को जनता से पूछना चाहिए और कारण बताना चाहिए कि हम एक चुनी हुई, निर्वाचित सरकार को क्यों गिराना चाहते हैं ।
       कुल मिलाकर संविधान निराशाजनक है । मतदाताओं को उनके मताधिकार का प्रयोग करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर निर्वाचन आयोग यह तो बताता है कि आपके मत की कीमत  है, लेकिन निर्वाचित सांसद, विधायक मतदाताओं से प्राप्त मतों को बेच देते हैं । 
      मन में एक ही विचार आता है‌ कि पांच प्रदेशों के चुनाव परिणाम के बाद क्या फिर जनता द्वारा निर्वाचित सरकार गिरा दी जाएगी या जनता को प्रभुता की शक्ति प्रदान की जाएगी ?

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