धार्मिक

तीज त्यौहार संस्कृति बने व मनोरंजन और व्यापार, बाबा पवन चौरसिया की जुबानी

ब्यूरो चीफ : मनीष श्रीवास
जबलपुर । जिले के सिहोरा नगर वासी बाबा पवन चौरसिया ने मीडिया को जानकारी देते हुए उन्होने आज के माहौल व नये कलचर को देखते हुए अपने शब्दो में लिखा है कि हमारे तीज त्योहार और संस्कृति बने मनोरंजन और व्यापार”
अज्ञानता और संपन्नता और अभिमान तथा बहुत बडे़ षड़यंत्र के कारण”
” मात्र बाजार का संतुलन बना रहे है त्योहार !
” बहुत खर्चीले और भड़कीले तथा सिद्धांत विरोधी होते जा रहे है त्योहार, संस्कार और संस्कृति !
आखिर कौन है जबाबदार
संसार मे सनातन् की सभ्यता संस्कृति और संस्कार मनोरंजन के लिऐ नही है अपितू ये जनमानस तथा प्रकृति के कल्याणानार्थ सनातन् की व्यवस्थाऐ है !
जब भी हमने अपने तीज त्योहार संस्कृति संस्कार और सभ्यता का हनन होते देखा आप लोगों की अज्ञानता और अहं मे इन सनातनी व्यवस्थाओं का दुरूपयोग करते हुऐ देखा तब हम और हमारे अग्रजों ने कई अवसरों मे बार बार बताया !
आज जब जब हमारी संस्कृति संस्कार और सभ्यता पर प्रहार होता है हमे तथा हमारे अग्रजों को बहुत कष्ट होता है औय जब जब ऐसा आभास होता है हमें चिन्तन करने पर मजबूर कर देता है !
आज हमने हमारे अग्रजो ने चिंतन किया हमने पाया
आज आप सनातन् सिद्धांतों को दूषित कर इन्हें अज्ञानता के कारण इन सनातन् व्यवस्थाओं को मात्र मनोरंजन या मजबूरी समझ कर कर रहे है ये प्राणियों के लिऐ विनाशक तो है ही हमारी धरा, प्रकृति के लिऐ भी महाविनाशक है और इसके लिऐ जितना आप लोग जबाबदार है उससे कहीं जादा हमारे आपके वे भोले भाले मजबूर पूर्वज रहे है और वे लोग जिन्हें सनातन् की सभ्यता संस्कृति और संस्कार से आर्थिक तथा समाजिक सम्मान का लाभ मिलता रहा है वे लोग है इन्होंने ने लालच और डर के कारण कुछ अनजाने मे और बहुत कुछ जानबूझकर हमारे सनातन् की सभी व्यवस्थाऐं बदल दी क्योंकि हमारा समाज इनहें अपना पूज्यनीय तथा समाज मे ज्ञानी तथा सनातन् का ज्ञाता मानता है इसलिऐ इनका सम्मान करता रहा और इनके बताऐ मार्गदर्शन पर चलता रहा और आज समाज मे इसका परिणाम ये है की हमारे सनातन् की व्यवस्थाऐं संस्कृति, सभ्यता तथा संस्कार कुछ लोगों की मजबूरी बन गई है और कुछ लोगों के मनोरंजन की व्यवस्था तथा कुछ लोगों का व्यापार!
हमारे सनातन् की हर एक व्यवस्थाऐं लोक कल्याण
तथा प्रकृतिके अलवा जनमानस तथा समाज के संतुलन के लिऐ है!
हमारे कुछ वृद्धजन इस सत्य को जानते है तथा इतिहास की कथाओं को सूक्षमता से समझने पर प्रमाण भी मिलते है हमारे सभी त्योहारों के विधी विधान पूजन सामग्री प्रसाद सभी प्राकृतिक ही रहे और जब तक इन्हें अपने मूल सिद्धांतों मे मनाया गया तब तक ना ही समाज का अनहित हुआ और ना ही प्रकृति का वल्की जब जब आपदाऐं आई इन्ही व्यवस्थाओं से निराकरण हूऐ! परंतू आज जैसे जैसे हमारी सभ्यता,संस्कार और संस्कृति का सैद्धान्तिक चलन प्रचलन मे आता जा रहा है प्रत्येक प्राणियों सहित प्राकृतिक वातावरण मे हानीकारक विनाशक बदलाव आ रहे है जिसे हमारा मानव समाज मूर्ख की भाती भोग रहा है और दोष “बदलते वातावरण को देने लगा है ईश्वरबादी युग को कोस रहे है!
आखिर इन विनाशक कष्टदायक प्रभाव का जाबावदार कौन है क्या आप और हम नही!
आज नशे की सारी व्यवस्थाऐं तथा समाज तथा प्रकृति को नुकशान पहुचाने वाली सारी व्यवस्थाओं ने हमारी सभ्यता संस्कृति और संस्कारों मे जगह वना चुकी है!
” आप इतने मूर्ख कैसे हो गये ?
जिस विज्ञान को आप अपने एवं अपनो के जीवन के भविष्य का सहायक मानते है उसी के बताई हुई नुकशान दायक व्यवस्थाओं का उपयोग कर रहे है वह बार बार चेतावनिया देता है आप उसे अनदेख,अनसुना कर रहे है!
“ध्यान रहे विज्ञान ईश्वर नही है जो कोई चमत्कार कर देगा और स्वयं के द्वारा निर्मित विनास को रोक देगा” यह गुण ईश्वर मे है प्रकृति मे मात्र है इसे समझने का प्रयास करें हमारे मानव समाज को ईश्वर ने समहलने के लिए ऐसे कई संदेश दिये है
जिन्हें हम आपदाओं के रुप मे मानते है
भूकंप, भूस्खलन, सुनामी, और महामारी जैसी आपदाऐं ईश्वर के द्वारा तथा प्रकृति को हुऐ और होते नुकशान की चेतावनी है “विकाश और विनास मे मात्र “का औ “ना का फर्क है सावधान हो जाओं हमारी सनातन् व्यवस्थाओं से मत खेलो ये हानी कारक है विनासक है!
जय जनक जय जननी !
जय जय जय श्रीराम!!

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