धार्मिक

रमजान का तीसरा जुमा: हजारों सिर झुके सजदे में चल रहा है दूसरा अशरा, हासिल होती है मगफिरत

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । पाक महीना रमजान के तीसरे जुमा की नमाज अदा करने के लिए मसजिदों में रोजेदारों की खासी भीड़ उमड़ पड़ी. जुमा की नमाज अदा करने के लिए रोजेदारों के मस्जिदों में आने का क्रम दोपहर 12 बजे से ही शुरू हो गया। हजारों रोजेदारों ने नमाज अदा करके मुल्क में अमन चैन की दुआ मांगी. मस्जिदों में मजा भी तकरीरें भी हुई मरकज मस्जिद के इमाम मौलाना सामिद खां नदवी ने कहा कि रमजान माह का दूसरा अशरा चल रहा है यह असरा मगफिरत का होता है हर रोजेदार को गुनाहों से तौबा कर परवरदिगार से माफी मांगनी चाहिए। एक नई जिंदगी को शुरू करने का इरादा करना चाहिए।
रमजान के माह में लोगों के साथ हमदर्दी करना रमजान का सबसे बड़ा काम है। रोजा रखने वाले को इस बात का एहसास होता है कि लोग बिना पानी के बिना खाने के कैसे जिंदगी गुजारते हैं यह एहसास जब दिल में पैदा होता है तो लोगों के साथ हमजादी करने का जज्बा उसके अंदर पैदा होता है। जहां हर एक नेक का सवाब खुदा ने बताया है लेकिन रोज का सबब खुदा खुद देगा और जब यह सब आप बंदे को मिलेगा तो जो रोज नहीं रखते हैं उन्हें इस बात का एहसास होगा विकास नबी के तरीके पर चलकर उन्होंने भी रमजान के रोजे रखे होते। इस माह में प्रत्येक साहिबे निसाब मुसलमान को ईद से पूर्व फितरा निकालना चाहिए जो 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत 50 रुपये, ईद की नमाज से पहले गरीबों को देना चाहिए खुदा इससे रोजे में होने वाली कमियों को पूरी करता है।वहीं इससे गरीबों की भी ईद अच्छी होती है। हमें फितरा निकाल कर पहले ही दे देना चाहिए।
मक्का मस्जिद बालाई टेकरी के इमाम मौलाना नजर मो. कासमी ने कहा कि इस्लाम मजहब में मगफिरत (मोक्ष) के लिए तकवा (संयम/सत्कर्म) जरूरी है. तकवा के लिए रोजा जरूरी है. रोजा यानी अल्लाह का वास्ता रोजा यानी मगफिरत का रास्ता रमजान के मुबारक माह के ग्यारहवें रोजे से मगफिरत का अशरा शुरू हो जाता है। जो बीसवें रोजे तक होता है. इस दूसरे अशरे को मगफिरत का अशरा (मोक्ष का कालखंड) इसलिए कहा जाता है कि इसमें अल्लाह से मगफिरत के लिए खसुसी दुआ की जाती है। बिना किसी पाप के यानी बुराई से बचते हुए रोजे में अल्लाह की इबादत की जाती है। और माफी मांगते हुए मगफिरत की तलब की जाती है। यानी इबादत की टहनी पर मगफिरत का फूल है रोजा।
मदीना मस्जिद पठान वाली में खिताब करते हुए मुफ्ती रुस्तम खां नदवी ने कहा कि पवित्र कुरान में ज़िक्र है ‘बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बिना देखे डरते हैं। उनके लिए मगफिरत और अज़्रे-अजीम मुकर्रर है। कुरआन की आयत की रोशनी में ग्यारहवें रोजे की तशरीह की जाए तो आधुनिक अविष्कारों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि इबादत के प्लेटफॉर्म पर मगफिरत की ट्रेन के लिए दरअसल ग्यारहवां रोजा सिग्नल है. क्योंकि ग्यारहवें रोजे से ही रमजान माह में मगफिरत का अशरा शुरू होता है. मगफिरत (मोक्ष) की बात हरेक मजहब में कही गई है।
और अब यह दूसरा अशरा भी समाप्ति की ओर है। इसके बाद शुरू होगा तीसरा असर जहन्नम की आग से खुलासी का जो अभी तक अपना वक्त लापरवाही में गुजर चुके हैं उन्हें चाहिए कि वह बाकी दोनों की कद्र करते हुए रात दिन इबादत में गुजारे आखिरी अशरें में ही लैलतुलकदर है उसको ढूंढने की कोशिश करें यह ताक रातों में पाई जाती है। जिसका बेइंतहा सवाब है।
उक्त मस्जिदों के अलावा जामा मस्जिद, मस्जिद अमीर दाद खां, मोहम्मदी मस्जिद, मस्जिद बिलाल, मस्जिद नूर आदि में भी उलेमाओं ने रमजान को लेकर लोगों को तकरीर के माध्यम से समझाइश दी।

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