धार्मिकमध्य प्रदेश

जीव और ब्रह्म का मिलन ही महारस कथा है : पं. संजय शास्त्री

श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस पर भक्त हुए भावविभोर श्रीकृष्ण लीला से गूंजा अनगढ़ हनुमान मंदिर
सिलवानी। नगर के बजरंग चौराहा स्थित अनगढ़ हनुमान मंदिर प्रांगण में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के छठवें दिवस पर शनिवार को कथा व्यास पं संजय शास्त्री ने श्रीकृष्ण लीला का रसपान कराते हुए कहा कि जीव और ब्रह्म का मिलन ही महारस है, जब मनुष्य अपने भीतर के अहंकार को त्याग देता है तभी वह ईश्वर से एकाकार होता है। उन्होंने गोपी प्रेम और भक्ति की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भक्ति ही वह सेतु है जो मनुष्य को भगवान तक पहुंचाती है। श्रीकृष्ण लीला का श्रवण करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। गोपी प्रेम भगवान और भक्त के बीच निर्मल एवं निश्छल प्रेम का प्रतीक है।
पं. शास्त्री ने कहा कि मनुष्य को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि आहार से ही विचार निर्मित होते हैं। सात्विक जीवन से मनुष्य का मन और बुद्धि दोनों निर्मल होते हैं।
कथा व्यास पंडित संजय शास्त्री ने श्रद्धालुओं भागवत कथा का रसास्वादन कराते हुए कहा कि गोपीजनों के साथ भगवान ने श्रेष्ठतम महारास लीला का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि रास तो जीव का परब्रह्म ईश्वर के साथ मिलन की कथा है। आस्था और विश्वास के साथ भगवत प्राप्ति का फल प्राप्त होता है तो उसे रास कहा जाता है। कथा प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी के विवाह की लीलाओं ने सभी भक्तों को खूब आनंदित किया। संजय शास्त्री ने कहा कि जो भक्त ईश्वर प्रेम में आनंदित होते हैं और श्रीकृष्ण तथा रूक्मिणी के विवाह की लीलाओं को सुनते हैं उनकी समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। कथा व्यास श्री शास्त्री ने कहा जब जीव में अभिमान आता है तो भगवान उनसे दूर हो जाता है। लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ। लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती। मनुष्य को अपना धन को परमार्थ में लगाना चाहिए
श्रीकृष्ण भगवान व रुक्मणि के अतिरिक्त अन्य विवाहों का भी वर्णन किया गया।
कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और भजन-कीर्तन में झूम उठे। कथा श्रवण से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। कथा का आयोजन स्व. श्री खुशीलाल यादव की पुण्य स्मृति में श्रीमती तुलसाबाई यादव श्रीमती रितू सुरेन्द्र यादव एवं समस्त यादव परिवार द्वारा कराया जा रहा है। कथा के मूल पाठकर्ता पं. शुभम शास्त्री एवं मंत्रजपकर्ता पं. नरेन्द्र अवस्थी हैं।

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