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अधिक संतान पैदा करना लघु उद्योग या औधोगिक इकाई नहीं है कि अधिक संतान पैदा करते रहो और सरकार सब्सिडी देती रहे

योगी जी को कर्तव्य का बोध जागा है…
लेखक : हरीश मिश्र
उत्तर प्रदेश हमेशा देश में क्रांति का क्षेत्र रहा है। 1857 में मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने आज़ादी की चिंगारी प्रज्जवलित की। अब साढ़े चार साल सत्ता में रहने के बाद योगी जी का कर्तव्य का बोध जागा है। जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए यह एक क्रांतिकारी कदम है। देर से ही सही अधिक जनसंख्या पर नियंत्रण कानून लागू करने का योगी जी का विचार स्वागत योग्य कदम है।
विश्व जनसंख्या दिवस पर योगी सरकार प्रदेश में नई जनसंख्या नीति लागू करने पर विचार कर रही है । मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि ” आबादी विस्तार के लिए गरीबी और अशिक्षा बड़ा कारण है। कुछ समुदायों में जनसंख्या को लेकर जागरूकता का अभाव है। ” संकेतों में कही बात से उठने वाला तूफान तहज़ीब और तमीज़ के शहर लखनऊ के इमामबाड़े से शुरू होगा।
देश में कुछ राजनैतिक दलों, नेताओं और समाज का नेतृत्व करने वाले ठेकेदारों की मान्यता है ” अधिक संतान होगी तो आय के संसाधन भी अधिक होंगे। सत्ता में भागीदारी भी अधिक होगी।” जबकि अधिक जनसंख्या प्रलय है । जो सब कुछ नष्ट करती है। अधिक जनसंख्या का गुण धर्म ही ऐसा है जिससे जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। गरीबी, भूखमरी और अपराध को जन्म देती है।
देश के राजनीतिक दलों के ठेकेदार जनसंख्या नियंत्रण कानून को यदि निरपेक्ष भाव से नहीं देख सकते तो परिणाम अमंगलकारी, अनर्थकारी होने में विलंब नहीं लगेगा।
राहुल, माया, अखिलेश, केजरीवाल और औवेसी जनसंख्या निरोधक कानून को कलह का रुप देंगे। योगी भी चाहेंगे कलह हो। सभी सत्ता के सूत्रधार कलहग्नि में घृत डालकर उसे हवा देंगे। उत्तर प्रदेश में चुनाव जो हैं।
सन्तानोत्पादन करते समय कुटुम्ब, समाज और देश की स्थिति को देखना चाहिए। अधिक संतान वृद्धि से साधनों की कमी, रोजगार की कमी और जीवन यापन में जटिलता आती है। वोट से सत्ता पर काबिज होने की घृणित सोच से जन्मी संतान अविकसित, अभावग्रस्त, कुपोषण का शिकार होती है। अधिक संतान उत्पादन कर माता-पिता अपनी संतान के साथ अन्याय करते हैं।
संतान दो से अधिक नहीं होना चाहिए। अधिक संतान होने पर माता-पिता उन्हें समुचित स्नेह एवं साधन दे सकने में असमर्थ होते हैं एवं बच्चों का जीवन स्तर ऊंचा नहीं उठ पाता। जो माता-पिता अपने बच्चों को समुचित शिक्षा-दीक्षा व जीवन यापन के साधन जुटाने में असमर्थ होते हैं ,उनके बच्चे कुपात्र ही बनेंगे। कुपात्र व्यक्ति अपना अपने परिवार का तथा समाज का कल्याण नहीं कर सकता।
यदि बच्चों का भरण पोषण नहीं कर सकते, उन्हें संस्कार नहीं दे सकते तो अधिक बच्चे पैदा करना उचित नहीं है। ये लघु उद्योग या औधोगिक इकाई नहीं है कि अधिक संतान पैदा करते रहो और सरकार सब्सिडी देती रहे। संतान उत्पन्न करना उसी का सार्थक है, जो बच्चों को योग्य बना सके।
लेखक- एंटी हॉर्स ट्रेडिंग फ्रंट राष्ट्रीय संयोजक 9584815781

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