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“सामाजिक हीरो” सोनू सूद, 20 करोड़ की टैक्स चोरी की है…तब भी वह वंदनीय हैं !

हरीश मिश्र
आज के दौर में समाज सेवा क्या है ? एनजीओ के माध्यम से तिकड़मबाजी, जोड़-तोड़, गुणा भाग से शासकीय भूमि हथियाना, सरकारी सम्पत्ति, धन हड़पना, काल्पनिक छद्म सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना।
तिकड़म बाजी से सफलता प्राप्त की जा सकती हैं, पर इससे समाज सेवा, पीड़ित मानवता के दिलों पर राज नहीं किया जा सकता। आज के समाजसेवी उल्टे सीधे हथकंडे अपनाते है, अनैतिक कृत्य करते हैं, दूसरों को मूर्ख बनाते हैं और झांसा देते हैं।
लेकिन फिल्मी दुनिया के खलनायक सोनू सूद ने विश्व व्यापी कोरोना संक्रमण काल में पीड़ित मानवता की सेवा कर देश में “सामाजिक हीरो” के रूप में अपना नाम दुखी, पीड़ित मानवता के दिलो-दिमाग पर अंकित किया। कोरोना विश्वव्यापी संकट में जब सरकारों की व्यवस्थाएं चरमरा गईं, तब सूद ने निस्वार्थ भाव से मानवता की आंखों के आंसू पोंछने के निमित्त सद्भावना पूर्वक कार्य किए। फिल्मी दुनिया का ऐसा खलनायक जिसे मानवता की सेवा में ही सच्चा सुख एवं संतोष मिला। सूद का स्वरूप एक साधु का, संत का स्वरूप है। जिसे अपनी साधना में न भूख है न प्यास, न थकान न नींद। वक्ता भी बड़े प्रखर और प्रभावशाली। शारीरिक शक्ति अपार।
” सामाजिक हीरो ” सूद ने सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए तिकड़म बाजी नहीं की‌। उल्टे सीधे हथकंडे नहीं अपनाए । अनैतिक कृत्य नहीं किए। दूसरों को मूर्ख नहीं बनाया । तब सूद पर आईटी के अधिकारियों ने 20 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का आरोप लगाया है। आयकर विभाग के छापे सामान्य प्रक्रिया के तहत हो सकते हैं या सुनियोजित षड्यंत्र। लेकिन सूद ने अपनी अकूत संपदा का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए तब किया जब इसकी बहुत बड़ी आवश्यकता थी। इसलिए यदि उन्होंने 20 करोड़ की टैक्स चोरी की है तब भी वह वंदनीय हैं !
दूसरी तरफ ऐसे मंत्री, विधायक, सांसद, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, डॉक्टर हैं , जो हजारों करोड़ों रुपए की टेक्स चोरी कर रहे हैं। लेकिन अपने साधनों का समुचित, सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे, इसीलिए वह कंगाल हैं। उनके मन में स्वार्थ का भाव है। पर्याप्त धन होते हुए भी उसका सही उपयोग नहीं कर पा रहे । परोपकार में धन नहीं लगाते और संग्रह के लिए सदैव आतुर रहते हैं। यह भी एक तरह की दरिद्रता ही है। जो सदैव समाज, सरकार से मांगते तो हैं और समृद्धि शाली होने पर भी समाज को देते नहींं। देने की जिसमें वृत्ति नहीं ऐसे व्यक्ति के पास यदि अतुल धन संग्रह है तो भी उसका क्या अर्थ ?
विडंबना है कि मनुष्य का विचार है कि संग्रह में समृद्धि है‌। जबकि समृद्धि तो दुखी, पीड़ित मानवता की सेवा में है,परोपकार में हैं । परहित अर्थात और उनकी खुशी के लिए, औरों की पीड़ा मिटाने के लिए स्वयं को उत्सर्ग कर देना ही धर्म है। परहित से जीवन में वास्तविक शांति आती है ‌। पुण्य अर्जन होता है और जीवात्मा संतुष्ट होती है। जिसकी आत्मा संतुष्ट है वहीं “सामाजिक हीरो” है।
लेखक- वरिष्ठ पत्रकार एवं एंटी हॉर्स ट्रेडिंग फ्रंट, राष्ट्रीय संयोजक

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