धार्मिक

कथा व संत मानव को सच्चे व सत मार्ग पर ले जाते है : पंडित रेवाशंकर शास्त्री

श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस श्रद्धालुओं ने की व्यासगादी की पूजा अर्चना
सिलवानी। मानव का कर्तव्य है कि वह परमातमा के प्रति निःस्वार्थ भाव अपना कर पूर्ण रुप से समर्पित हो जावे परमात्मा के प्रति किया गया समर्पण मानव को सतमार्ग पर ले जाता है अपितु जीवन में शांति व सात्विकता का संचार भी करता है। अतः सभी को प्रण करना चाहिए कि वह परमात्मा के प्रति समर्पित रहेंगे।
यह उद्गार श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराने आए पंडित रेवा शंकर शास्त्री ने व्यक्त किए। वह ग्राम जमुनिया में संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस कथा स्थल पर उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवान की वाणी का रसा स्वादन करा रहे थे। कथा वाचक ने बताया कि कथा और संत मानव को सद्मार्ग पर ले जाते है। जिस व्यक्ति ने कथा का श्रवण कर संत का समागम कर लिया, ऎसा व्यक्ति अपने जीवन को सत मार्ग पर ले जाने की राह पर चल पड़ता हैं। संत व कथा सच्चा मार्ग बताती है। हमेशा ही यह अवसर पैदा करना चाहिए कि संत का समागम करने के साथ ही कथा का श्रवण किया जावे। ताकि वर्तमान समय की आपाधापी में मानव का मन एकाग्रचित हो सके तथा वह भगवत भजन कर सके। उन्होंने बताया कि इंसान जैसा कर्म करता है उसी कर्म के अनुसार उसके फल का निर्धारण होता है। यदि व्यक्ति धर्म के बताए मार्ग का अनुषरण कर सात्विकता का जीवन जीते हुए दीन हीन लाचार लोगों की सेवा निःस्वार्थ भाव से करता है तो वह स्वर्ग गामी होता है। यदि वह धर्म के बिरुद्व आचरण कर संतो व कथा का अनादर कर लोगों पर अनाचार अत्याचार करता है व्यसन में लिप्त रहता है तो ऎसा व्यक्ति नारकीय होता है।
पंडित रेवा शंकर शास्त्री ने बताया कि भगवत कथा श्रवण करने वाले जीव का कल्याण होना तय है। जहां भी ज्ञान की बात बताई जा रही हो संतो का सत्संग हो रहा हो। उस स्थान पर अवश्य ही जाना चाहिए। भाग्य वान पुरुष वाले ही संतो का सत्संग कर पाते है। सत्संग से जीवन की दशा और दिशा का निर्धारण होता है। उन्होंने शिक्षा अर्जन को आवश्यक बताते हुए कहा कि बुराईयो को दूर करने के लिए बालक बालिकाएघर, परिवार, गांव नगर में स्वच्छ वातावरण का निर्माण करे। जीवन में अच्छा ब बुरा दौर आता है। समय हमेशा एक सा नही रहता है। बुरा वक्त आने पर निराश नही होना चाहिए। तथा अच्छा समय आने पर सद्मार्ग से हटना नही चाहिए। जबकि बुरे वक्त के समय यह सोचना चाहिए कि मेरे द्वारा किए गए गलत कार्य की परमात्मा सजा दे कर सच्चाई के साथ बेहतर कार्य किए जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सत्य के समान दूसरा धर्म नही होता है। सच्ची मि़ता भी धर्म का एक रुप है। धर्म के चार पद होते है जिसमे सत्य, दान, दया व सोच शामिल है। कोई भी कार्य करने से पूर्व कार्य की सफलता के लिए संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प के साथ किया गया कार्य सफलता के सोपान तय करता है जबकि असफल कार्य संकल्प नही लेना तथा कार्य के प्रति लापरवाही को दर्षाता है। आर्थिक रुप से सुदृढ लोगो को हमेषा ही अपने से कमजोर निसहाय का सहयोग करना चाहिए। ताकि वह भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर हीन भावना को छुटकारा पा सके इंसानियत यह बोलती है कि किसी भी धर्म व मजहव का व्यक्ति यदि परेशान है तो उसकी मदद करना चाहिए। यहीं सच्चाई इंसानियत
होती है।
उन्होने शाकाहार अपनाने पा जोर देते हुए कि यदि किसी को जीवन नही दे सकते तो उसका जीवन लेने का हक भी नही है। जिस जीव पर परमात्मा की कृपा बरसती है उस जीव पर सभी की कृपा बनी रहती है। भगवान की कृपा हासिल करने के लिए सद्मार्ग पर चलना आवष्यक है। समान लेना व देना आवष्यक होता है। जहां सम्मान ना मिले, हेय नजरो से देखा जाता हो वहां पर कभी भी नही जाना चाहिए, चाहे वहां कंचन ही क्यो ना बरस रहे हो। तृतीय दिन की कथा के समापन पर कथा आयोजक ललित किशोर मिश्रा वा श्रद्वालुओं के द्वारा भागवत महा पुराण की आरती कर कथावाचक पंडित रेवा शंकर शास्त्री से आशीर्वाद लिया गया।

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