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भारत का संविधान निराशाजनक है…

संविधान दिवस पर विशेष
सरकार बनाने का संवैधानिक मताधिकार जनता को, तो सरकारें गिराने का अधिकार सांसदों, विधायकों के पास कैसे ?
आज भारत का संविधान दिवस है। तब मन में आया संविधान पर कुछ लिखूं।

भारत के संविधान में सरकार के पास अथवा राजसत्ता के पास जो भी शक्तियां हैं, वह जनता से मिली है । संविधान का प्रथम वाक्य हम भारत के लोग का अर्थ है- भारत की प्रभुता जनता में निहित है । ” संविधान जनता के लिए है । ” परंतु आजादी के 70 साल बाद हम संविधान का मूल्यांकन करें तो कह सकते हैं कि भारत की प्रभुता जनता में निहित नहीं है ।
भारत की प्रभुता जनता में निहित होती तो राजनैतिक दल के नेता अपनी मर्जी महत्वाकांक्षा सत्ता की लालसा के लिए सरकारें नहीं गिरा रहे होते । जब सरकार बनाने का संवैधानिक मताधिकार जनता को, तो सरकार गिराने का अधिकार सांसदों, विधायकों के पास कैसे सुरक्षित रहा ? सरकार गिराते समय सांसदों, विधायक को जनता से पूछना चाहिए और कारण बताना चाहिए कि हम एक चुनी हुई, निर्वाचित सरकार को क्यों गिराना चाहते हैं ।
कुल मिलाकर संविधान निराशाजनक है । मतदाताओं को उनके मताधिकार का प्रयोग करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर निर्वाचन आयोग यह तो बताता है कि आपके मत की कीमत है, लेकिन निर्वाचित सांसद, विधायक मतदाताओं से प्राप्त मतों को बेच देते हैं ।
मन में एक ही विचार आता है‌। जनता को प्रभुता की शक्ति प्रदान की जाए या हम भारत के लोग शब्द मिटा दिया जाए ।
लेखक : हरीश मिश्र एंटी हॉर्स ट्रेडिंग फ्रंट, राष्ट्रीय संयोजक एवं संपादक दैनिक दिव्य घोष, मासिक मूक माटी

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