धार्मिक

10 जून 2025 वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजा विधि व शुभ मुहूर्त एवं कथा

Astologar Gopi Ram : आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
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🔮 10 जून 2025 वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजा विधि व शुभ मुहूर्त एवं कथा
HIGHLIGHTS
▪️ वट सावित्री पूर्णिमा व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
▪️ इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं।
▪️ इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
📚 हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. इसे सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जोड़ा जाता है, जिसमें सावित्री ने अपनी पतिव्रता धर्म और निष्ठा से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह व्रत पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है. कुछ क्षेत्रों में संतान प्राप्ति और परिवार की वृद्धि के लिए भी इस व्रत का पालन किया जाता है. यह व्रत परिवार में सुख, शांति और समृद्धि लाता है. वट वृक्ष (बरगद का पेड़) को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का निवास स्थान माना जाता है, इसलिए इसकी पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है.वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं स्नान करके सोलह श्रृंगार करती हैं. फिर वे बरगद के पेड़ के नीचे जाकर सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करती हैं. वे पेड़ के तने पर कच्चा सूत या लाल धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं, फल, फूल, मिठाई और भीगे चने आदि अर्पित करती हैं. वट सावित्री व्रत कथा का श्रवण किया जाता है और पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की जाती है.
🤷🏻‍♀️ कब करें वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2025?
पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 10 जून, मंगलवार की सुबह 11 बजकर 35 मिनिट से शुरू होगी जो 11 जून, बुधवार की दोपहर 01 बजकर 13 मिनिट तक रहेगी।आचार्य श्री गोपी राम के अनुसार, वट सावित्री व्रत को लेकर भक्त बिल्कुल भी भ्रमित न हो, ये व्रत 10 जून, मंगलवार को किया जाएगा। इस दिन सिद्ध, साध्य और रवि नाम के शुभ योग भी रहेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
⚛️ वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2025 शुभ मुहूर्त
सुबह 09:05 से 10:45 तक
सुबह 10:45 से दोपहर 12:26 तक
सुबह 11:59 से दोपहर 12:53 (अभिजीत मुहूर्त)
दोपहर 12:26 से 02:06 तक*
✡️ कैसे करते हैं वट सावित्री पूर्णिमा पूजा
वट पूर्णिमा के दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं. इसके लिए बांस की दो टोकरियां ली जाती हैं. एक में सात प्रकार के अनाज को कपड़े के दो टुकड़ों से ढक कर रखा जाता है. दूसरी टोकरी में मां सावित्री की प्रतिमा रखकर धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, मौली से उनकी पूजा की जाती है. महिलाएं आसपास के किसी वट वृक्ष के नीचे जमा होकर वट वृक्ष की पूजा करती है. इसके लिए महिलाऐं वट वृक्ष को रोली, कुमकुम, हल्दी लगाने के साथ ही कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा करती हैं. वट वृक्ष की 7, 11 या फिर 21 बार परिक्रमा करनी चाहिए. इसके बाद वट वृक्ष के नीचे दिए जलाती हैं. पूजा के बाद महिलाएं सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं. मान्यता है कि विधि पूर्वक वट सावित्री का व्रत रखने से सावित्री की तरह सभी महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
📖 वट सावित्री पूर्णिमा पूजा विधि
◻️ सुबह जल्दी उठें स्नान करें और लाल रंग के कपड़े पहनें।
◻️ सोलह शृंगार करें।
◻️ वट वृक्ष के नीचे सफाई करें और पूजा स्थल तैयार करें।
◻️ सावित्री और सत्यवान की पूजा करें, और वट वृक्ष को जल चढ़ाएं।
◻️ लाल धागे से वट वृक्ष को बांधें और 7 बार परिक्रमा करें।
◻️ व्रत कथा सुनें और आरती करें।
◻️ गरीबों को धन, अन्न और वस्त्र का दान दें।
◻️ यह व्रत निर्जला भी रखा जाता है, लेकिन अगर स्वास्थ्य कारणों से ऐसा करना मुश्किल है, तो फलाहार कर सकते हैं।
◻️ इस दिन नीले, काले या सफेद रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
◻️ पूजा समाप्त होने के बाद अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीर्वाद जरूर लें।
◻️ उन्हें भिगोए हुए चने और कपड़े प्रसाद के रूप में दें।
◻️ व्रत के दिन किसी का अपमान न करें, झूठ न बोलें और झगड़े से बचें।
◻️ इसके अलावा वट वृक्ष को किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचाएं।
🗣️ ये है सावित्री और सत्यवान की कथा
किसी समय अश्वपति नाम के एक राजा था। उनकी पुत्री सावित्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था लेकिन दुश्मनों द्वारा पराजित होने के कारण सत्यवान अपने परिवार सहित जंगल में रहता था और उसकी आयु में कम थी।
ये सब जानकर भी सावित्री ने उससे विवाह किया। जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया तो उस दिन सावित्री भी अपने पति के साथ गई। जब यमराज उसके शरीर से प्राण निकालकर ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी।
यमराज ने सावित्री को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नहीं मानी। यमराज ने सावित्री को अनेक वरदान दिए और आखिरकार सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े। वट सावित्री के व्रत में ये कथा जरूर सुननी चाहिए, तभी व्रत का पूरा फल मिलता है।

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