मनुष्य होने के साथ ही मनुष्यता के भाव भी होना चाहिए : पं. रेवाशंकर शास्त्री
सिलवानी। संसार में मोह का कारण हमे अपने कर्तव्य से विमुख करती है। जवकि ईश्वर का दिव्य तो चहुं ओर व्याप्त है। लेकिन समर्थ हम उसे देखने की है। परमात्मा से संबंध स्थापित कर उनकों प्राप्त करने का लक्ष्य होना चाहिए। मनुष्य होने के साथ ही मनुष्यता के भाव भी होना चाहिए। यह उद्गार पंडित रेवाशंकर शास्त्री ने व्यक्त किए। वह जमुनिया गांव में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिवस कथा श्रवण करने पहुंचे श्रद्वालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि मनुष्य को किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार ही मनुष्य के जीवन के विनाश का मूल कारण है अहंकारी व्यक्ति से भगवान कभी प्रेम नहीं करते इसलिए कहा गया है भगवान किसी धन के भूखे नहीं है भगवान तो प्रेम के भूखे हैं। पंडित रेवाशंकर ने कहा कि ब्रह्माजी जो सृष्टि के सृजनकर्त्ता हैं, उनको घमंड हो गया था एक बृज में नंदगोप के पुत्र के रूप में यह जो है, वह श्रीकृष्ण एक साधारण बालक हैं यह लीलाओं के माध्यम से बृज वासियों को भ्रमित कर रहे हैं, तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की परीक्षा लेने की ठानी। परीक्षा लेने के उद्देश्य से वह पृथ्वी लोक पर आए, बृज वासियों को गोवंश के साथ एक गुफा में बंद कर दिया। यह देख कर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी योग माया से उतने ही गोवंश और गांव वालों को तैयार करके गोकुल आ गए। यह देख कर ब्रह्मा जी ने अपनी गलती का सुधार करते हुए भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना की और उन्हें पर ब्रह्म परमात्मा का अवतार स्वीकार करके उनकी चरण वंदना की इस तरह से ब्रह्मा जी का घमंड भगवान श्री कृष्ण के द्वारा नष्ट कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि कथा श्रवण से यह शिक्षा मिलती है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्माजी के अहंकार को दूर करके सामान्य मानव को यह संदेश दिया कि ब्रह्मा का अहंकार भी नष्ट हो जाता है, तो आप लोग तो सामान्य मनुष्य हो जिसका अगला पल भी आपके हाथ में नहीं है वह भी परमात्मा के हाथ में है। आपका जो जीवन है वह परमात्मा की कृपा और संयोगवश आपको मिला है इस जीवन को श्रेष्ठता पूर्वक जीते हुए परमात्मा की राह का अनुसरण करते हुए दिव्य सत्संग को श्रवण करके हमारे धर्म ग्रंथों हमारी परंपराओं हमारी धार्मिक मान्यताओं हमारे देवस्थान का सम्मान करते हुए सत्कर्म के माध्यम से अपना जीवन यापन करते रहो। जिससे कि यह देव दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त करके आप मोक्ष को प्राप्त कर सको। पंडित रेवाशंकर शास्त्री ने अनेक उदाहरणों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की दिव्य बाल लीलाओं का मनोहारी वर्णन करते हुए समस्त श्रोता सज्जनों का मार्गदर्शन किया।
उन्होंने बताया कि मनुष्य होना तो ठीक है परन्तु मानव धर्म मानवता से जीना तथा दूसरों को शांति प्रदान करना ही बड़ा धर्म है श्री कृष्ण द्वारा माखन चोरी कर व्रज की गोपियों को आनंद प्रदान करना जीवन में तीन प्रकार के आनंद है विष्यानंद ब्रह्मानंद तीसरा आनंद परमानंद जो ब्रज बासियों को प्राप्त हुआ। गर्गाचार्य द्वारा श्री कृष्ण बलराम का नाम करण किया इसके बाद बाबा नन्द को अपने रक्षा हेतु नन्दगाँव वरसाना में भगवान् श्री कृष्ण दर्शन हेतु भगवान् शंकर का नटरूप से जाना परंतु मैया द्वारा अपने लाला को बाहर जाने से मना करना परंतु महादेव द्वारा सुन्दर गीत नृत्य करना जिसमे सभी का मोहित चकित होना भगवान् कृष्ण शंकर का मिलन इसके बाद बृंदाबन को जन्म की कथा ब्रजबसियो का बृंदाबन निवास भगवान् कृष्ण बछड़े चराना उसी दिन से कन्हैया का नाम वत्सपाल पड़ा तथा वकसुर अघासुर संघार एवं ब्रम्हा का मोहित होना एवं ब्रम्हा का अहिंकार नष्ट करना इत्यादि कथा श्रवण कराई गई।